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हसदो नदी हुई जहरीली

केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण संस्थान के 2009 के सर्वेक्षण की अनुसंशा के अनुसार कोरबा को भारत के सर्वाधिक प्रदूषित शहरों की सूची में पांचवे स्थान पर रखा गया हैद्य हसदो नदी कोरबा क्षेत्र की जीवन रेखा के ना

हसदो नदी हुई जहरीली
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बिलासपुर। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण संस्थान के 2009 के सर्वेक्षण की अनुसंशा के अनुसार कोरबा को भारत के सर्वाधिक प्रदूषित शहरों की सूची में पांचवे स्थान पर रखा गया है। हसदो नदी कोरबा क्षेत्र की जीवन रेखा के नाम से जानी जाती है। हसदो नदी के प्रदूषण स्तर का गहन एवं विस्तृत परीक्षण एवं आंकलन करने हेतु गुरु घासीदास विश्वविद्यालय की शोध छात्रा मोनिका भास्कर ने पिछले 3 वर्षों में समय.समय पर हसदो नदी के विभिन्न क्षेत्रों से जल के नमूने एकत्र कर उसके संपूर्ण भौतिक रासायनिक संरचना तथा विषैले धातुओं के स्तर की जांच की।

यह छत्तीसगढ़ क्षेत्र में अपनी तरह का पहला अध्ययन हैए जिसमें हसदो नदी के वर्तमान प्रदूषण स्तर की जाँच के साथ.साथ इसके विषाक्तता सम्बन्धी पहलुओं एवं संभावित उपयोग की अनुसंशा निहित हैद्य शोधछात्रा के शोध के अनुसार हसदो नदी के अधिकांश क्षेत्रों में प्रदूषण तथा विषैले धातुओं का स्तर भारतीय मानकों की तुलना में लगभग 10 गुना ज्यादा पाया गया। औद्योगिक क्षेत्रों के आस पास से एकत्र जल के नमूनों में प्रदूषण स्तर इतना अधिक पाया गया कि यह जल पीने, जलीय जीवों तथा सिंचाई किसी भी उपयोग के लिए उपयुक्त नहीं है एवं औद्योगिक क्षेत्रों से दूरी पर एकत्र जल के नमूने केवल सिंचाई के लिए उपयुक्त पाए गए हैं। हसदो नदी का प्रदूषण स्तर औद्योगिक क्षेत्रों के आसपास इतना अधिक है कि बीजों के अंकुरण पर नकारात्मक प्रभाव डालता है।

यदि यह जल सिंचाई के लिए प्रयुक्त किया जाता है तो निश्चित रूप से फसलों पर भी नकारात्मक प्रभाव डालेगा। हसदो नदी के प्रदूषण स्तर को तात्कालिक रूप से नियंत्रित करने की आवश्यकता है। यदि इस अवस्था में भी नदी के प्रदूषण नियंत्रण हेतु प्रयास किया जाए तो भविष्य में स्थिति सुधर सकती है। इस दिशा में मोनिका भास्कर ने एक सकारात्मक प्रयास किया है। जिसके अंतर्गत उन्होंने धान के पौधों का उपयोग करके एक कम लागत वाली इकोफ्रेंडली तकनीक जिसे फाइटोरेमिडियेशन कहा जाता है को प्रयोग करके विषैले धातुओं की विषाक्तता कम करने का प्रयास किया है।

धान के पौधों में क्षमता होती है कि वह विषैले धातुओं को संचित कर सकता है। यदि हम औद्योगिक क्षेत्रों से निकले उपचारित जल को नदी में विसर्जित करने के पूर्व धान के पौधों की सिंचाई हेतु प्रयुक्त कर लें तो नदी का प्रदूषण कम किया जा सकता है।

इस शोध में धान के पौधों पर विषैले धातुओं का प्रभावए विभिन्न भागों जैसे जड़ पत्तियां तथा बीजों में विषैले धातुओं के वितरण का आंकलन एवं किस सीमा तक यह तकनीक मनुष्यों एवं पशुओं के लिए सुरक्षित है इसका आकलन किया गया है। यह सम्पूर्ण अध्ययन आचार्य डॉ अश्विनी दीक्षित के निर्देशन में किया गया।


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