ईवीएम पर बढ़ता संदेह
दुनिया के सबसे बड़े कारोबारियों में से एक एलन मस्क ने दुनिया भर के उन देशों के राजनेताओं की नींदें उड़ा दी हैं जहां पर इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनों (ईवीएम) के जरिये मतदान होता है

दुनिया के सबसे बड़े कारोबारियों में से एक एलन मस्क ने दुनिया भर के उन देशों के राजनेताओं की नींदें उड़ा दी हैं जहां पर इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनों (ईवीएम) के जरिये मतदान होता है। भारत में इसे लेकर सर्वाधिक बवाल मचना इसलिये लाजिमी है क्योंकि इसे लेकर सबसे ज्यादा विवाद यहीं हुआ है। यहां तो केन्द्र के साथ अनेक राज्यों में सत्ता पर काबिज भारतीय जनता पार्टी पर आरोप है कि उसने बड़े पैमाने पर ईवीएम को हैक कर अपने पक्ष में जनादेश पाये हैं। पिछले कई विधानसभा चुनावों के साथ कहा जाता है कि अभी हाल में हुए लोकसभा चुनाव भी भाजपा ने बड़े पैमाने पर इसके माध्यम से जीता है।
यह विवाद 2019 के आम चुनाव के तुरन्त बाद से ही सुप्रीम कोर्ट तो पहुंचा था लेकिन उस पर गम्भीर व प्रदीर्घ सुनवाई चुनाव के आते-आते ही हुई थी। जब निर्णय पहले चरण के मतदान के बाद बाद आया तभी यह साफ हो गया था कि फिलहाल देश के चुनाव इसी पद्धति से होंगे, न कि बैलेट पेपर के जरिये जिसकी मांग की जाती रही है। शीर्ष कोर्ट ने यह भी नहीं माना कि शत-प्रतिशत वीवीपैट से वोटों का मिलान किया जाये क्योंकि सरकार की दलील थी कि इस तरीके से (मतपत्रों को गणना) परिणाम आने में बहुत देर लगेगी। वैसे ईवीएम को लेकर कई सिविल सोसायटियों, वरिष्ठ वकीलों एवं कुछ राजनीतिक दलों ने भी आवाजें उठाई थीं। जो भाजपा 2014 के पहले तक इसके खिलाफ थी, वह अब इसकी सबसे मजबूत पक्षधर है और यहां तक कि उसके साथ हर कदम पर खड़ा दिखाई देने वाला केन्द्रीय चुनाव आयोग तक इसके खिलाफ कुुछ भी सुनने को तैयार नहीं है।
बहरहाल, इस मामले के फिर से उठने का कारण एलन मस्क द्वारा अमेरिका के राष्ट्रपति चुनाव में निर्दलीय प्रत्याशी रॉबर्ट एफ. कैनेडी जूनियर के उस पोस्ट को रिट्विट करना है जिसमें प्यूर्टो रिको में ईवीएम के माध्यम से हुए चुनाव में बहुत सी अनियमितताओं का हवाला दिया गया है। मस्क ने यह कहकर इसके इस्तेमाल पर प्रतिबन्ध लगाने का सुझाव दिया है कि कोई भी मशीन हैक की जा सकती है। उनका यह भी कहना है कि जोखिम चाहे छोटा ही क्यों न हो, वह है ही। भारत जैसे बड़े देश में इस खतरे का आकार और भी बड़ा हो जाता है; फिर मामला ऐसे चुनाव का हो जिसमें देश को चलाने वाली सरकार के सही या गलत तरीके से बनने का है, तो इसे कतई नज़रंदाज़ नही किया जाना चाहिये।
वैसे अनुमानों के मुताबिक यह मामला उठते ही इस पर फिर से सियासी जंग देश के अंदर छिड़ गयी है। भाजपा की पिछली सरकार में केन्द्रीय मंत्री रहे राजीव चंद्रशेखर ने तो मस्क को भारत आकर कुछ सीखने की सलाह देते हुए कहा कि 'यहां की ईवीएम मशीनों की बाहर से कोई कनेक्टिविटी नहीं है अत: उनके हैक होने का सवाल ही नहीं है।' उनका यह भी दावा है कि 'फैक्ट्री के स्तर पर ही प्रोग्राम की हुई ईवीएम को रिप्रोग्राम नहीं किया जा सकता।' मस्क के इस कथन पर कि सब तुछ हैक किया जा सकता है, चंद्रशेखर ने कहा कि 'कैलकुलेटर या टोस्टर को हैक नहीं किया जा सकता।' उनका यह प्रत्युत्तर तो बेहद बचकाना है लेकिन ईवीएम के बचाव में कई भाजपा नेता ही नहीं, उसके नेतृत्व में बने नेशनल डेमोक्रेटिक एलायंस के अनेक घटक दल के नेता गम्भीरता से पलटवार कर रहे हैं मानो मस्क ने उनके खिलाफ बयान दिया हो।
समाजवादी पार्टी के नेता व सांसद अखिलेश यादव ने कह दिया कि 'यदि प्रौद्योगिकी समस्या हो तो उसका इस्तेमाल बन्द होना चाहिये', वहीं कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने इस मशीन की तुलना हवाई जहाज के 'ब्लैक बॉक्स' से करते हुए कहा है कि इसकी जांच करने से सब साफ हो जायेगा (जैसे ब्लैक बॉक्स की जांच से दुर्घटना के कारणों का पता चलता है)। इसके जवाब में महाराष्ट्र के सीएम व शिवसेना (शिंदे गुट) के नेता एकनाथ शिंदे ने कहा है कि अगर मशीनों में गड़बड़ी है तो राहुल इस्तीफा दें। दूसरी तरफ, चुनाव के पहले कांग्रेस का साथ छोड़ने वाले संजय निरूपम ने कहा कि यदि मशीनों को हैक किया जा सकता था तो राहुल एक भी जगह से चुनाव नहीं जीतते और न ही भाजपा 240 सीटों पर ठहरती। वैसे इस विवाद के फिर से सुलगने का एक कारण महाराष्ट्र से उठ खड़ा हुआ है। आरोप है कि यहां मुंबई की उत्तर पश्चिम सीट से शिवसेना शिंदे गुट के उम्मीदवार के एक रिश्तेदार ने 4 जून (चुनावी नतीजों के दिन) को मतगणना के दौरान एक ऐसे मोबाइल फोन का इस्तेमाल किया था जो कि ईवीएम से जुड़ा था। हालांकि इसके बारे में कोई पुष्टि नहीं हो सकी है और वहां की निर्वाचन अधिकारी ने साफ कह दिया है कि ऐसा सम्भव ही नहीं है।
जो भी हो, अगले लोकसभा चुनाव में 5 वर्षों का समय है और उसके पूर्व कई राज्यों के चुनाव होंगे जिनमें से कुछ में इसी वर्ष होने जा रहे हैं। मस्क के बयान को ऐसे व्यक्ति के कथन के रूप में लिया जाना चाहिये जो अत्याधुनिक तकनीकों का जानकार है तथा उसे इस देश की सियासत से कोई लेना-देना नहीं है; और न ही वह खुद किसी भी देश की राजनीति में सक्रिय है जिसका इस मुद्दे में कोई निजी या व्यवसायिक हित संलग्न हो। सरकार, केन्द्रीय निर्वाचन आयोग और उच्चतम न्यायालय ईवीएम के मामले की बहुत गहनता के साथ जांच करे ताकि देश के चुनाव निष्पक्ष हों। पारदर्शी प्रक्रिया ही ऐसा सुनिश्चित कर सकती है।


