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योगी सरकार ने प्राधिकरण अधिकारियों व कर्मचारियों की उड़ाई नींद

ग्रेटर नोएडा ! पिछले 14 सालों ने नोएडा, ग्रेटर नोएडा व यमुना एक्सप्रेस-वे में जिस तरह खेल चल रहा था कि न खाता न बही जो अधिकारियों ने किया वहीं सही।

योगी सरकार ने प्राधिकरण अधिकारियों व कर्मचारियों की उड़ाई नींद
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ग्रेटर नोएडा ! पिछले 14 सालों ने नोएडा, ग्रेटर नोएडा व यमुना एक्सप्रेस-वे में जिस तरह खेल चल रहा था कि न खाता न बही जो अधिकारियों ने किया वहीं सही। प्रदेश में सत्ता परिवर्तन होने के बाद मुख्यमंत्री आदित्य नाथ योगी ने प्राधिकरणों के बही खातों की सीएजी ऑडिट कराने का फैसला ले लिया है। प्रदेश सरकार के इस फैसले से प्राधिकरण के अधिकारियों व कर्मचारियों की नींद हराम हो गई। जांच होने पर सीबीआई के घेरे में फंसे यादव सिंह के कई करीबी अधिकारियों पर भी गाज गिर सकती है।
प्राधिकरण की सीएजी ऑडिट को लेकर इलाहाबाद हाईकोर्ट में एक जनहित याचिका दायर हुई है। कोर्ट ने जनहित याचिका पर सुनवाई के दौरान यह बात कही थी कि प्राधिकरणों ने सीएजी ऑडिट कराने में क्या आपत्ति है। उस दौरान सपा सरकार ने प्राधिकरण की सीएजी ऑडिट कराने का कोर्ट में विरोध किया था। सपा सरकार ने कोर्ट में अपनी बात को मजबूती से रखने के लिए पी. चिदबंरम जैसे वकीलों को खड़ा किया था, और इस पर करोड़ों रुपए खर्च किया था। यह मामला अभी तक अदालत में विचाराधीन था। भाजपा की सरकार बनने के बाद अदालत में अर्जी देकर कहा गया कि प्राधिकरण की सीएजी ऑडिट कराने पर सरकार को कोई आपत्ति नहीं है। इसके बाद आदित्य नाथ योगी ने सभी प्राधिकरण के सीएजी ऑडिट कराने का फैसला लिया है। अब दस करोड़ रुपए ज्यादा जितना परियोजनाओं का काम हुआ और उसका भुगतान किया गया वह सीएजी जांच के दायरे में आएगा। प्राधिकरण में अभी तक ऑडिट की आंतरिक जांच ही होती है, सारे आधिकारी व कर्मचारी अपने हिसाब से बही खाता तैयार कर लेते है। दिल चस्प बात यह है कि 2007 में जब प्रदेश में बसपा की सरकार बनी तो ग्रेटर नोएडा वेस्ट में बिल्डरों को भूखंड आबंटित करने में आधिकारियों को प्राधिकरण को जमकर चूना लगाया। प्राधिकरण में पहले नियम था कि आबंटन पत्र जारी होने के बाद तीस फीसदी राशि जमा करने के बाद बिल्डर को नक्शा पास किया जाता था। अन्य किश्त का भुगतान बिल्डरों को ब्याज के साथ करना होता था। प्राधिकरण ने बिल्डरों को दो साल तक किश्त न भुगतान करने की छूट प्रदान कर दी थी और उस पर कोई ब्याज न लगाने का फैसला लिया था। इससे बिल्डरों को भूखंड देने के बाद प्राधिकरण को पैसा नहीं मिल पाया और उसकी आर्थिक स्थिति डामाडोल हो गई। बिल्डर लगातार नियम के खिलाफ जाकर आधिकारियों के साथ सांठ-गांठ करके किश्त का भुगतान करने से बचते और शून्य अवधि का लाभ उठाते रहे। इसी का नतीजा रहा है कि आज बिल्डरों पर ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण का सात हजार करोड़ रुपए से ज्यादा पैसा बाकी है। सीएजी ऑडिट होने पर इसमें कई अधिकारियों व कर्मचारियों की गर्दन फंस सकती है। शासन ने पहले प्राधिकरण के आधिकारियों व कर्मचारियों के संपत्ति का ब्यौरा मांग लिया है जिसमें उनके पूरे परिवार का ब्यौरा शामिल है। दिए गए संपत्ति के ब्यौरो में कई चपरासी की पत्नियों के नाम करोड़ों की संपत्ति है।
प्राधिकरण में नहीं चलेगा न खाता न बही जो किया वहीं सही


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