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बोन मेरो ट्रांसप्लांट से आठ महीने के बच्चे की बचाई जान

ग्रेटर नोएडा ! जेपी हॉस्पिटल के हिमेटो-ऑन्कोलॉजी एवं बोन मेरो ट्रांसप्लांट विभाग के चिकित्सकों की टीम ने अपने चिकित्सकीय कौशल से एक ऐसे बच्चे की जान बचाने में सफलता पाई है

बोन मेरो ट्रांसप्लांट से आठ महीने के बच्चे की बचाई जान
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अफगानिस्तान से आए शिशु के शरीर में नहीं थी रोग प्रतिरोधक क्षमता
ग्रेटर नोएडा ! जेपी हॉस्पिटल के हिमेटो-ऑन्कोलॉजी एवं बोन मेरो ट्रांसप्लांट विभाग के चिकित्सकों की टीम ने अपने चिकित्सकीय कौशल से एक ऐसे बच्चे की जान बचाने में सफलता पाई है जिस बीमारी का इलाज इससे पहले भारतीय चिकित्सकीय इतिहास में बहुत ही कम देखने को मिला है। हिमेटो-ऑन्कोलॉजी एवं बोन मेरो ट्रांसप्लांट विभाग की टीम ने अफगानिस्तान से लाए गए 8 महीने के नवजात शिशु मुजीब की बोन मेरो ट्रांसप्लांट कर उसकी जिंदगी बचाई।
खास बात यह है कि इसका बोन मेरो डोनर अरियन (बड़ा भाई), जिसकी उम्र केवल 4 वर्ष है और वह एचएलए. टाइपिंग पर केवल आधा मैच (हैपलो) पाया गया। यह कामयाबी दो वरिष्ठ चिकित्सक डॉ. पवन कुमार सिंह और डॉ. ईशा कौल की टीम को मिली। बीमारी के बारे में विस्तार से बताते हुए डॉ. पवन कुमार सिंह ने बताया कि बच्चे को सेवर कबाइंड इम्यूनो डिफेन्सी बीमारी थी। इस बीमारी में बच्चे के शरीर में जन्म से ही रोग प्रतिरक्षा शक्ति नहीं होती है जिस कारण शिशु को जन्म से ही जानलेवा संक्रमण का खतरा होता है। इस बीमारी में रोगी के बचने की उम्मीद बहुत ही कम होती है। हिमेटो-ऑन्कोलॉजी एवं बोन मेरो ट्रांसप्लांट विभाग के चिकित्सक डॉ. पवन कुमार सिंह ने कहा कि जब मुजीब जेपी हॉस्पिटल लाया गया था तो उसे बुखार, निमोनिया, डायरिया जैसे संक्रमण पहले से ही थीं, साथ ही उसका शरीर संक्रमण ग्रस्त भी था। यह बीमारी मुजीब को जन्म के समय से ही बार-बार हो रही थी। इसी बीमारी की वजह से इसके परिवार में दो बच्चों की मृत्यु भी हो चुकी थी। जब मुजीब के माता-पिता ने उसकी जांच कराई तो पता चला कि उसे भी खतरनाक बीमारी है।
शिशु की जिंदगी केवल बोन मेरो ट्रांसप्लांट द्वारा ही बचाई जा सकती थी, लेकिन केवल 8 महीने के छोटे बच्चे का जीवन इस पद्धति द्वारा बचाना अपने आप में एक बहुत बड़ी चुनौती थी क्योंकि इससे पहले भारतीय चिकित्सकीय इतिहास में यह चिकित्सा बहुत ही कम की गई है। इस बीमारी के लिए हाफ मैच बोन मेरो ट्रांसप्लांट एक नई तकनीक है जो विश्व भर में बहुत ही कम हुआ है। इसके बाद भी हमारी अनुभवी टीम ने अपने चिकित्सकीय कौशल से यह अभूतपूर्व सफलता अर्जित कर ली।


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