संत रविदासजी जैसे महान संत समस्त मानवता के लिए हैं: रामनाथ कोविंद
राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने रविवार को कहा कि संत रविदासजी जैसे महान संत समस्त मानवता के लिए हैं और यह लोगों के लिए जरूरी है कि वे अपने सोच और दृष्टिकोण को बदलें

नई दिल्ली। राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने रविवार को कहा कि संत रविदासजी जैसे महान संत समस्त मानवता के लिए हैं और यह लोगों के लिए जरूरी है कि वे अपने सोच और दृष्टिकोण को बदलें। राष्ट्रपति नई दिल्ली में श्री गुरु रविदास विश्व महापीठ राष्ट्रीय अधिवेशन-2021 को संबोधित कर रहे थे।
Watch LIVE: President Kovind addresses 'Shri Guru Ravidas Vishva Mahapeeth Rashtriya Adhiveshan-2021 at Vigyan Bhavan, New Delhi https://t.co/6UWhbv9nWI
— President of India (@rashtrapatibhvn) February 21, 2021
श्री गुरु रविदास जैसे महान संतों का आगमन सदियों में कभी-कभी होता है। उन्होंने केवल अपने समकालीन समाज का ही नहीं बल्कि भावी समाज के कल्याण का मार्ग भी प्रशस्त किया था।
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राष्ट्रपति ने कहा, "गुरु रविदासजी का जन्म भले ही किसी विशेष समुदाय, संप्रदाय या क्षेत्र में हुआ हो, लेकिन उनके जैसे संत ऐसी सभी सीमाओं से ऊपर उठ जाते हैं। संत किसी जाति, संप्रदाय या क्षेत्र के नहीं होते। वे ऐसे कदम उठाते हैं जो पूरी मानवता के कल्याण के लिए होते हैं। संतों का आचरण सभी तरह के भेदभाव और विचारधाराओं से परे होता है।"
संत रविदास यह कामना करते थे कि समाज में समता रहे तथा सभी लोगों की मूलभूत आवश्यकताएं पूरी हों।
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सबके हृदय को छूने वाले शब्दों में उन्होंने कहा है:
ऐसा चाहूं राज मैं, जहं मिले सबन को अन्न।
छोट बड़ो सब सम बसै, रविदास रहे प्रसन्न।
संत रविदास की महिमा को अनेक तत्कालीन संतों व महाकवियों ने व्यक्त किया है। कबीर साहब कहते हैं, “संतन में रविदास संत हैं” अर्थात गुरु रविदास संतों में भी श्रेष्ठ संत हैं।
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राष्ट्रपति कोविंद ने प्रसन्नता व्यक्त करते हुए कहा, "सामाजिक न्याय, समानता और बंधुत्व जैसे गुरु रविदासजी के दर्शन और मूल्यों को हमारे संवैधानिक मूल्यों में समाविष्ट किया गया है।"
राष्ट्रपति ने कहा, "संत रविदास ने अपने प्रेम और करुणा की परिधि से समाज के किसी भी व्यक्ति या वर्ग को वंचित नहीं किया। उनके विचार से अगर संतों को किसी एक विशिष्ट समुदाय के साथ जोड़ा जाता है तो यह समावेशन के ही सिद्धांत के विरूद्ध होगा, जिसका स्वयं संत रविदासजी द्वारा प्रचार किया गया था। इसलिए लोगों के लिए अपनी सोच और दृष्टिकोण को बदलना आवश्यक है।"
संत रविदास ने अपनी करुणा और प्रेम की परिधि से समाज के किसी भी व्यक्ति या वर्ग को बाहर नहीं रखा था। यदि ऐसे संत शिरोमणि रविदास को किसी विशेष समुदाय तक बांध कर रखा जाता है तो, मेरे विचार से, ऐसा करना, उनकी सर्व-समावेशी उदारता के अनुसार नहीं है।
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उन्होंने कहा, "इस तरह के कार्यक्रमों में समाज के सभी वर्गो की भागीदारी सुनिश्चित करने के प्रयास किए जाने चाहिए। इन प्रयासों से देश में सामाजिक समानता और सद्भाव बढ़ाने में सहायता मिलेगी।"


