महारैली से बदलाव का महासंदेश
बिहार के पटना में रविवार को इंडिया गठबंधन की जनविश्वास महारैली से देश की राजनीति में बदलाव का बड़ा संदेश निकला है

बिहार के पटना में रविवार को इंडिया गठबंधन की जनविश्वास महारैली से देश की राजनीति में बदलाव का बड़ा संदेश निकला है। पटना के ऐतिहासिक गांधी मैदान से पहले भी राजनीति की धारा बदली है। लेकिन रविवार को इस रैली के लिए जुटी 12 लाख से ज्यादा की भीड़ ने संभवत: नया रिकार्ड कायम किया है। तिल रखने की जगह न होना और जनसैलाब के असल मायने क्या होते हैं, यह गांधी मैदान के नजारे को देखकर समझा जा सकता था। सत्तारुढ़ दल की रैलियों या सभाओं में अमूमन भीड़ जुट ही जाती है। अगर प्रधानमंत्री या मुख्यमंत्री की सभा हो, तब भी लोग उन्हें सुनने आ जाते हैं। लेकिन पटना में तेजस्वी यादव की अगुवाई में हुई जनविश्वास महारैली में जुटी भीड़ को सियासत में बदलाव का प्रतीक इसलिए माना जा सकता है, क्योंकि अभी न राजद सत्ता में है, न केंद्र में इंडिया गठबंधन सत्ता में है।
दोनों जगह वे विपक्ष में हैं। बल्कि बिहार में तो जनवरी में ही राजद को सत्ता से बाहर करने का काम नीतीश कुमार और भाजपा ने मिलकर किया है। 17 महीनों तक राजद के साथ सरकार चलाने और उसी दौरान विपक्षी दलों को एक साथ लाने के बाद नीतीश कुमार ने जिस आसानी से पाला बदल लिया, उसे राजनीति के बड़े जानकार और धुरंधर भी सहजता से स्वीकार नहीं कर पा रहे हैं।
राजनीति में कोई किसी का सगा नहीं होता, इस बात को अच्छे से जानने के बावजूद यह बात न जनता के गले से उतरी, न इंडिया गठबंधन के नेताओं से कि कल तक जो नीतीश कुमार भाजपा को केंद्र की सत्ता से हटाने के दावे कर रहे थे, वे अचानक मन नहीं लगने के कारण भाजपा के ही साथी कैसे बन गए। नीतीश कुमार की इस मन न लगने वाली दलील का तेजस्वी यादव ने बिहार विधानसभा में फ्लोर टेस्ट के दौरान बखूबी जवाब दिया था कि हम मन लगाने के लिए नहीं, जनता की सेवा करने के लिए हैं।
12 फरवरी को बिहार विधानसभा में दिया गया तेजस्वी यादव ऐतिहासिक रहा और लोगों ने इसमें अपने लिए नयी उम्मीद देखी। लोगों की उम्मीदों को देखते हुए तेजस्वी यादव 20 फरवरी से बिहार में जनविश्वास यात्रा पर निकल पड़े और इस यात्रा ने भी कई कीर्तिमान रचे। बिहार के सबसे बड़े और मुख्य विपक्षी दल राजद की इस यात्रा में हर जगह बड़ी संख्या में लोग आए।
तेजस्वी यादव लोगों का विश्वास हासिल करने में सफल दिखे, जबकि नीतीश कुमार ने अपनी ही करनी से भरोसे और विश्वास जैसे शब्द को खुद से दूर कर लिया है। यही वजह है कि 2 मार्च को औरंगाबाद में हुई एक सभा में जब नीतीश कुमार और नरेन्द्र मोदी एक साथ मंच पर थे, तो नीतीश कुमार को यह कहना पड़ा कि अब हम इधर-उधर नहीं जाएंगे, इधर ही रहेंगे। उनकी इस बात पर प्रधानमंत्री भी ठहाका लगाकर हँस पड़े। इस हँसी से भारतीय राजनीति का एक विद्रूप चेहरा सामने आया, जिसमें विश्वास की भावना के लिए मखौल के अलावा और कुछ नहीं है, केवल सत्ता और स्वार्थ ही सियासत के संचालक तत्व बन गए हैं।
बहरहाल 20 फरवरी से 2 मार्च तक पूरे बिहार में जनविश्वास यात्रा निकालने के बाद पटना के गांधी मैदान में जनविश्वास महारैली का आयोजन किया गया, तो यह केवल राजद नहीं बल्कि इंडिया गठबंधन का आयोजन बन गया। मंच पर लालू प्रसाद, तेजस्वी यादव और राजद के अन्य नेताओं के साथ कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे, राहुल गांधी, सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव, भाकपा महासचिव डी राजा और माकपा महासचिव सीताराम येचुरी समेत कई नेता मौजूद रहे। पूरे गांधी मैदान में वाम दलों और राजद के झंडे लहराते दिखे। इस रैली का साक्षी बनने के लिए लोग शनिवार रात से ही जुटने लगे थे। रामधारी सिंह दिनकर की सुप्रसिद्ध कविता का अंश है-
फावड़े और हल राजदण्ड बनने को हैं,
धूसरता सोने से श्रृंगार सजाती है;
दो राह,समय के रथ का घर्घर-नाद सुनो,
सिंहासन खाली करो कि जनता आती है।
गांधी मैदान से यही कविता लाखों-लाख लोगों की मौजूदगी से गुंजायमान हो रही थी। हालांकि समय के रथ के इस घर्घर नाद को देश का सरकार समर्थित मीडिया दिखाने-सुनाने से परहेज कर रहा था, लेकिन फिर उसे भी समझ आ गया कि बिना किसी लोभ-लालच के किसी राजनैतिक रैली में लाखों लोग इकठ्ठे हो जाएं, तो इसका मतलब ये हो सकता है कि अब समय का पहिया घूमने वाला है। कुछ चैनलों ने रैली की लाइव रिपोर्टिंग की, कुछ ने देर से इसे दिखाया, यानी देर से ही सही मीडिया को भी समझ आ रहा है कि भाजपा भले ही 4 सौ पार का नारा देकर तीसरी बार जीत के दावे करे, लेकिन इंडिया गठबंधन की मजबूती से चुनाव परिणाम बदल भी सकते हैं।
जनविश्वास महारैली के मंच से राहुल गांधी, अखिलेश यादव, मल्लिकार्जुन खड़गे और तेजस्वी यादव जैसे नेताओं ने जो भाषण दिए, उसमें खास नयापन नहीं था, लेकिन जो कुछ इन नेताओं ने कहा, जनता ने उससे खुद को जुड़ा पाया और यही नयापन है जो अब राजनीति में दिखने लगा है। सत्ताधारी नेताओं की तरह ये नेता अपनी-अपनी नहीं हांक रहे हैं, न ही अपने नाम की गारंटियां दे रहे हैं, बल्कि जनता की पीड़ा और आकांक्षाओं को शब्द दे रहे हैं। रविवार को ही मध्यप्रदेश में जब राहुल गांधी भारत जोड़ो न्याय यात्रा में थे, तो उन्होंने मीडिया के लिए कहा था कि वो अंबानी के बेटे की शादी को दिखाएंगे, लेकिन भूख से मरते लोगों की बात नहीं करेंगे। जो बात मुख्यधारा के मीडिया पर लागू होती है, वही सत्ताधारियों के लिए कही जा सकती है। इसलिए अब लोगों की दिलचस्पी इंडिया गठबंधन के नेताओं के भाषणों को सुनने में बढ़ रही है।
पटना में राजद की पहल से इंडिया गठबंधन के नेताओं ने एक बार नए सिरे से अपनी ताकत और एकजुटता लोगों को दिखाई है। संयोग है कि इसी पटना से विपक्षी एकता की नींव पड़ी थी, जो अब मजबूत इमारत में तब्दील होती दिख रही है।


