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नागरिकों के मूलभूत अधिकारों के लिए खड़े होना न्यायपालिका का नैतिक दायित्व: मुख्य न्यायाधीश

नागरिकों के मौलिक अधिकारों की सुरक्षा को 'न्यायपालिका का पावन कर्तव्य' बताते हुए शनिवार को भारत के मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा ने कहा कि अगर सरकार की संस्थाएं नागरिकों के अधिकारों का अतिक्रमण करती हैं

नागरिकों के मूलभूत अधिकारों के लिए खड़े होना न्यायपालिका का नैतिक दायित्व: मुख्य न्यायाधीश
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नई दिल्ली। नागरिकों के मौलिक अधिकारों की सुरक्षा को 'न्यायपालिका का पावन कर्तव्य' बताते हुए शनिवार को भारत के मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा ने कहा कि अगर सरकार की संस्थाएं नागरिकों के अधिकारों का अतिक्रमण करती हैं तो यह न्यायपालिका का नैतिक दायित्व है कि वह उनके साथ (नागरिकों के साथ) खड़े हो।

राष्ट्रीय कानून दिवस के अवसर पर यहां विज्ञान भवन में आयोजित एक कार्यक्रम में न्यायमूर्ति मिश्रा ने कहा, "नागरिकों को मौलिक अधिकार प्रदान किए गए हैं और सरकार की संस्थाओं से इनका अतिक्रमण नहीं करने की उम्मीद की जाती है। लेकिन जब वे इनका अतिक्रमण करते हैं, या उनके द्वारा अतिक्रमण करने की आशंका होती है, तो न्यायपालिका का नैतिक दायित्व हो जाता है कि वह नागरिकों के साथ खड़े हो।"

मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि ऐसी धारणा है कि इन दिनों न्यायायिक सक्रियता है। उन्होंने कहा कि वह स्पष्ट करना चाहते हैं कि हर नागरिक के मौलिक अधिकारों की सुरक्षा न्यायपालकिा का पावन कर्तव्य है, जिसे संविधान ने प्रदान किया है।

मुख्य नयायाधीश ने यह भी कहा कि न्यायपालिका नीति बनाने की इच्छुक नहीं है। उन्होंने कहा, "कोई भी नीति निर्माण की प्रक्रिया में प्रवेश करने का इरादा नहीं रखता है। हम नीति नहीं बनाते लेकिन हम नीतियों की व्याख्या करते हैं और यही हमारा काम है।"

मिश्रा ने कहा कि राज्य की तीन शाखाओं का मुख्य कर्तव्य संविधान के मूल्यों, नैतिकता और दर्शन की रक्षा करना है। राष्ट्रीय कानून दिवस के अवसर पर आयोजित दो दिवसीय सम्मेलन को राष्ट्रपति राम नाथ कोविंद, लोकसभा अध्यक्ष सुमित्रा महाजन, नीति आयोग के अध्यक्ष राजीव कुमार और कानून मंत्री रवि शंकर प्रसाद ने भी संबोधित किया।


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