सरकारी अस्पतालों में 1962 की व्यवस्था समाप्त, वेतन में कटौती, चिकित्सकों में असंतोष
सातवें वेतन आयोग की सिफारिशों से खफा चिकित्सकों में इन दिनों खासी हताशा है और सरकारी स्वास्थ्य क्षेत्र में काम कर रहे हजारों डॉक्टरों ने इस पर तीखी प्रतिक्रिया दी है

नई दिल्ली। सातवें वेतन आयोग की सिफारिशों से खफा चिकित्सकों में इन दिनों खासी हताशा है और सरकारी स्वास्थ्य क्षेत्र में काम कर रहे हजारों डॉक्टरों ने इस पर तीखी प्रतिक्रिया दी है। चिकित्सकों का तर्क है कि अब भत्ता समिति ने सभी कानूनों, नियमों और दिशानिर्देशों के खिलाफजा कर नॉन प्रैक्टिसिंग एलाउंस की कटौती को स्वीकार कर लिया है और एनपीए को सभी प्रशासनिक आदेश, उच्च न्यायालय और सर्वोत्तम न्यायालय के आदेशों के खिलाफजाकर बुनियादी वेतन के बजाय भत्ते के रूप में स्वीकार किया है।
सरकारी अस्पतालों में कार्यरत चिकित्सक बताते हैं कि इससे नई आय पिछले वेतनमान की अपेक्षा कम हो गई जो कि अपनी तरह का पहला उदाहरण है।चिकित्सक मानते हैं कि नए निर्देश नई पेंशन योजना के अंतर्गत आये हुए डॉक्टरों को प्रतिकूल रूप से प्रभावित करेगी क्योंकि उनकी पेंशन आज ही कम कर दी गई है, यह पहला वेतन आयोग है जहां पर किसी की भविष्य में लगने वाली पेंशन को वर्तमान में कम किया जा रहा है। स्वास्थ्य क्षेत्र में कई वर्षों से नुकसान हुआ है क्योंकि लगातार सरकार स्वास्थ्य क्षेत्र में सुधार लाने में नाकाम रही है और किसी भी बजट में इसका हिस्सा सकल घरेलू उत्पाद का 1 प्रतिशत से ज्यादा कभी नही हुआ है।
चिकित्सक बताते हैं कि ब्राजील, रूस, चीन और दक्षिण अफ्रीका से भारत स्वास्थ्य पर कम खर्च करता हैऔर 188 देशों के लैनसेट व विश्वस्वास्थ्य संगठन के नवीनतम अध्ययन को देखें तो भारत 143 वें स्थान पर है जो कि पाकिस्तान, बांग्लादेश, घाना और सोमालिया के भी नीचे है।
देश में 16 हजार से अधिक आबादी के लिए एक सरकारी चिकित्सक है। चिकित्सकों ने स्वास्थ्य मंत्रालय को इससे अवगत करवा दिया है कि वेतन आयोग की हालिया सिफारिशों में गैर प्रैक्टिसिंग भत्ता जो कि कैरियर के विकास में कमी तथा कठिन प्रकृति के बीच काम करने के लिए भुगतान किया जाता है वर्ष 1962 के बाद से वेतन का हिस्सा रहा है।
स्वास्थ्य मंत्रालय के एक अधिकारी मानते हैं कि मौजूदा हालात में चिकित्सकों में असंतोष बढ़ रहा है और आकलन बताते हैं किसरकारी डॉक्टरों का पलायन बढ़ रहा है यदि ये सिफारिशें लागू हुईं तो सरकारी क्षेत्र में कार्यरत डॉक्टर निजी क्षेत्र में जाने को मजबूर हो जाएंगे। इससे सबसे ज्यादा प्रभावित समाज का सबसे गरीब तबका होगा जो पूरी तरह से सरकारी स्वास्थ्य देखभाल संस्थानों पर निर्भर है।
वरिष्ठ चिकित्सक बताते हैं कि विश्व स्वास्थ्य संगठन भी चिंतित है कि भारत के सरकारी क्षेत्र में स्वास्थ्य कर्मियों वाले मानव संसाधन में खराब गुणवत्ता का कारण सरकार द्वारा अपने स्वास्थ्यकर्मियों को दी जाने वाली सुविधाएं आकर्षक नहीं हैं।


