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जर्मनी की दक्षिणपंथी पार्टी "डी हायमाट" की सरकारी फंडिंग बंद

जर्मनी की संवैधानिक अदालत ने फैसला सुनाया है कि धुर-दक्षिणपंथी विचारधारा से जुड़ी चरमपंथी पार्टी "डी हायमाट" को सरकारी फंड का फायदा नहीं मिलना चाहिए

जर्मनी की दक्षिणपंथी पार्टी डी हायमाट की सरकारी फंडिंग बंद
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जर्मनी की संवैधानिक अदालत ने फैसला सुनाया है कि धुर-दक्षिणपंथी विचारधारा से जुड़ी चरमपंथी पार्टी "डी हायमाट" को सरकारी फंड का फायदा नहीं मिलना चाहिए. इस फैसले का असर दक्षिणपंथी एएफडी पार्टी पर भी हो सकता है.

जर्मनी की संवैधानिक अदालत ने फैसला सुनाया है कि धुर-दक्षिणपंथी दल "डी हायमाट" को सरकारी सब्सिडी का फायदा नहीं मिलना चाहिए. साथ ही, उसे टैक्स में मिलने वाली राहत भी छह साल के लिए रोक दी जाएगी. जर्मन कानूनों के मुताबिक, अगर किसी राजनीतिक दल को संविधान और लोकतांत्रिक व्यवस्था के खिलाफ आचरण का दोषी पाया जाता है, तो पहली गलती की सजा के तौर पर उसे मिलने वाली सब्सिडी छह साल के लिए बंद की जा सकती है.

यह मामला बहुत हद सांकेतिक है. "डी हायमाट" पहले नेशनल डेमोक्रेटिक पार्टी ऑफ जर्मनी (एनपीडी) के नाम से जानी जाती थी. चुनावों में पर्याप्त वोट नहीं मिलने के कारण हालिया समय में उसे कोई सब्सिडी नहीं मिल रही थी. हालांकि उसे टैक्स में राहत जैसे प्रावधानों का फायदा अब भी मिल रहा था.

ऐसे में अदालत के इस फैसले को ऑल्टरनेटिव फॉर जर्मनी (एएफडी) के संदर्भ में भी देखा जा रहा है. पिछले कई दिनों से जर्मनी के कई शहरों में एएफडी के खिलाफ प्रदर्शन हो रहे हैं. धुर-दक्षिणपंथी चरमपंथ से किस तरह निपटा जाए, इस पर बहस तेज हुई है.

एएफडी के खिलाफ प्रदर्शन क्यों?

इस घटनाक्रम का संबंध एक हालिया खबर है, जिसमें नवंबर 2023 की एक गुप्त बैठक का ब्योरा दिया गया था. इस बैठक में एएफडी के अधिकारियों समेत क्रिश्चियन डेमोक्रेटिक यूनियन (सीडीयू) के भी सदस्य शामिल हुए थे. खबर के मुताबिक, बैठक में "रीमाइग्रेशन" की योजना पर चर्चा हुई कि कैसे जर्मनी में रह रहे प्रवासियों और विदेशी मूल के लोगों को देश से निकाला जाए.

इस प्रकरण के सामने आने के बाद अब जर्मन संसद के निचले सदन बुंडेसटाग में भी एएफडी से निपटने के तरीकों पर विमर्श हो रहा है. सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी (एसपीडी), ग्रीन पार्टी और फ्री डेमोक्रेट्स (एफडीपी) इस विषय पर एक प्रस्ताव ला रहे हैं.

संसद में चर्चा के दौरान एएफडी के संसदीय सचिव बेर्न्ड बाउमान ने बाकी सांसदों से कहा कि उक्त बैठक "छोटे और निजी विचार-विमर्श क्लब" से ज्यादा कुछ नहीं थी. बाउमान ने कहा कि यह "लोगों के लिए खतरनाक गुप्त बैठक" नहीं थी. लेकिन आंतरिक मामलों की मंत्री और एसपीडी की नेता नैंसी फेजर ने कहा कि वह एएफडी पर प्रतिबंध लगाए जाने की भी कल्पना कर सकती हैं, लेकिन यह एकदम आखिरी उपाय होगा.

ऐसे में डी हायमाट के खिलाफ आए कोर्ट के फैसले को अहम बताया जा रहा है. बुंडेसटाग की अध्यक्ष बैर्बल बास ने कहा कि डी हायमाट पर आया अदालती आदेश "राजनीतिक रूप से बहुत अहम" है क्योंकि आम लोगों को कभी नहीं समझाया जा सकता था कि देश विरोधी पार्टियों को टैक्स देने वालों का पैसा क्यों मिलना चाहिए.

कोर्ट ने अभी क्या फैसला सुनाया?

संवैधानिक अदालत के आगे यह सवाल था कि क्या डी हायमाट का एजेंडा इतना गैर-संवैधानिक है कि राजनीतिक दलों को मिलने वाला सरकारी फंड उसे ना दिया जाए. इससे पहले डी हायमाट को प्रतिबंधित करने की भी कोशिश हो चुकी है. 2017 में यह कोशिश नाकाम रही क्योंकि तब अदालत ने कहा कि पार्टी के पास जनाधार की कमी है. ऐसे में वह अपने असंवैधानिक लक्ष्य हासिल नहीं कर सकती.

डी हायमाट पर बैन लगाने के प्रयास असफल रहने के बाद 2017 में ही एक प्रावधान लाया गया, जिसमें पार्टियों को मिलने वाला सरकारी फंड बंद करने की गुंजाइश थी. फिर 2019 में जर्मनी की सरकार और संसद के दोनों सदनों ने डी हायमाट को सरकारी फंड से वंचित रखने के लिए आवेदन दिया था.

फंडिंग के नियम क्या हैं?

जर्मनी में पार्टियों को सदस्यता शुल्क, डोनेशन और टैक्स के पैसों से पैसा मिलता है. चुनाव में जिस पार्टी को जितने ज्यादा वोट मिलेंगे, जिसका जितना जनाधार होगा, उसे सरकारी फंड से उसी आधार पर अनुदान मिलेगा. सब्सिडी की रकम राज्य, केंद्र और यूरोपीय चुनावों में पार्टी को मिले वोट के आधार पर तय होती है.

डी हायमाट को पिछली बार 2020 में सब्सिडी मिली थी. उसे 2016 में हुए मेकलेनबुर्ग-वेस्टर्न पोमेरानिया राज्य के चुनाव में 3.02 फीसदी वोट मिले थे. इस आधार पर उसे 3,70,600 यूरो मिले थे. वहीं 2016 में पार्टी को 10 लाख यूरो से ज्यादा की रकम मिली क्योंकि इसके पहले हुए चुनावों में उसका प्रदर्शन अच्छा रहा था. 2016 में जर्मनी की सबसे बड़ी पार्टियों में से एक एसपीडी को करीब 5.1 करोड़ यूरो मिले थे. वोट शेयर के आधार पर एएफडी को मिलने वाली रकम अभी एक करोड़ यूरो से ज्यादा है.

हालांकि एएफडी का मामला अलग है. कोर्ट ने पर्याप्त जनाधार ना होने की बात कहकर डी हायमेट (तत्कालीन एनपीडी) पर बैन नहीं लगाया था, लेकिन एएफडी काफी लोकप्रिय हो रही है. थुरिंजिया राज्य के चुनाव में एएफडी के जीतने की मजबूत संभावना है.


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