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ईद मुबारक : सबकी खुशहाली की दुआ

मुसलमानों के खिलाफ जहर बोने वालों को आज सोमवार सुबह बकरीद की नमाज की दुआएं सुनना चाहिए

ईद मुबारक : सबकी खुशहाली की दुआ
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- शकील अख्तर

इस लोकसभा चुनाव से पहले दलित पिछड़े एक दूसरे को शक की निगाह से देखते थे। खासतौर से विपक्ष की राजनीति में। लेकिन संघ की हिन्दुवादी विचारधारा के प्रभाव में वे दोनों भाजपा के साथ आ गए थे। मगर मोदी द्वारा सरकारी नौकरी बंद करने जहां आरक्षण के जरिए उन्हें नौकरी मिल जाती थी का बड़ा प्रभाव हुआ। उन्हें नौकरी मिलना बंद हो गई।

मुसलमानों के खिलाफ जहर बोने वालों को आज सोमवार सुबह बकरीद की नमाज की दुआएं सुनना चाहिए। देश भर की हर ईदगाह, मस्जिद में मुल्क की तरक्की की दुआएं मांगी जाएंगी। हर हिन्दू-मुसलमान सभी धर्मों के लोगों के लिए उनकी सफलता की कामना, तंदरुस्ती सुख-चैन की सामूहिक प्रार्थना की जाएगी। सुबह से ड्यूटा में खड़े पुलिस वालों, व्यवस्था में लगे दूसरे अधिकारी-कर्मचारियों के भले के लिए दुआएं की जाएंगी।

यह हर साल होता है। साल में केवल दो बार ईद और बकरीद पर ही नहीं। हर जुमे की नमाज में भी। जी हां, उस जुमे की नमाज में जिसके लिए देश के गृहमंत्री अमित शाह ने कहा था कि-मुझे मना किया गया था कि जुमे को मत निकलें, सड़कें जाम होगीं। मुसलमानों को कटघरे में खड़ा करने का यह भी एक तरीका है। मगर खैर, उस जुमे की नमाज में भी हर हफ्ते देश के लिए देश की सारी अवाम के लिए हर बीमार के लिए बिना कोई हिन्दू-मुसलमान किए दुआ मांगी जाती है।

सरकारों के पास वह सारी रिकार्डिंग पहुंच जाती है। केन्द्र और राज्य सरकार की तमाम एजेंसियां यह काम करती हैं। पिछले दस साल में आज तक किसी भी मस्जिद ईदगाह की ऐसी दुआ सरकार को नहीं मिली जिसमें केवल मुसलमानों के लिए ही दुआ मांगी जा रही हो। मगर यह सारी बातें सरकार जनता को बताती नहीं। बल्कि इसके बदले प्रधानमंत्री यह कहते हैं कि मुसलमानों को विशेष अधिकार मिल रहे हैं। और कांग्रेस आ जाएगी तो तुम्हारा सब लूट कर मुसलमानों को दे देगी। इस लोकसभा चुनाव में प्रधानमंत्री मोदी ने जितना मुसलमानों के खिलाफ बोला उतना देश में इससे पहले किसी समुदाय के लिए पहले कभी नहीं बोला गया।

इसलिए लिख रहे हैं कि प्रधानमंत्री मोदी से प्रभावित होने वाले लोगों जिनकी संख्या तेजी से कम होती जा रही उन्हें मालूम होना चाहिए कि मुसलमान सबकी खुशहाली की दुआ मांगता है।

प्रधानमंत्री ने इस चुनाव में ईसाइयों को भी नहीं छोड़ा। सन्डे की छुट्टी का सवाल उठा दिया। उधर विदेश जाते ही वहां पोप से गले मिलने लगे। भक्त बेचारे हतप्रभ हो जाते हैं। यहां ईसाइयों का विरोध और वहां ईसाइयों के सबसे बड़े गुरु पोप के गले लगना। भक्त निश्चित रूप से कम हुए हैं।

इसीलिए चार सौ पार की बात करते हुए केवल 240 पर रुक गए। यहां शंकराचार्यो का भी सम्मान नहीं। वहां पोप का ऐसा सम्मान करने की कोशिश करना जैसा कोई करता नहीं। बता दें कि पोप के गले लगने की कोई परंपरा नहीं है। ईसाई उनका माथा चूमते हैं। और गैर ईसाई केवल हाथ मिलाते हैं। अन्तरराष्ट्रीय मीडिया में इस गले लगने को पोप को ज्यादा खुश करने की कोशिश बताया जा रहा है।

प्रधानमंत्री का यह दोहरा रवैया अब पूरी तरह एक्सपोज हो गया है। इसीलिए उन्हें संघ के हमले का भी सामना करना पड़ा। संघ ने उन्हें अहंकारी कहते हुए हमला किया है। सही कहा है अहंकारी या खुद को सब कुछ समझने वाला ही ऐसा कर सकता है कि वह एक तरफ कुछ बोले और उसे सच समझे और दूसरी तरफ कुछ करे और उसे भी सच बताए। मेरी मर्जी! वह गाना है ना मैं चाहे ये करूं मैं चाहे वो करूं... मेरी मर्जी! यह कोई दंभ से भरा हुआ आदमी ही कर सकता है।

और इस चुनाव में तो चार सौ पार के गुमान में तो उन्होंने खुद को इंसान समझना भी बंद कर दिया था। अवतारी पुरुष समझने लगे थे। साफ कहा कि मैं उपर से उतारा हुआ हूं। बायलोजिकल नहीं हूं। मतलब सामान्य भाषा में मां के पेट से पैदा नहीं।

यह बात संघ को भी हजम नहीं हुई। उसके बारे में चाहे और जो भी बातें कही जाएं। उसके नेता अहंकारी नहीं है। उसके प्रभाव के कारण भाजपा के नेताओं में पहले अहंकार नहीं होता था। वाजपेयी और आडवानी जैसे बड़े नेताओं में कभी अहंकार नहीं दिखा। सुषमा स्वराज और अरुण जेटली में भी नहीं। राजनाथ, गडकरी में भी नहीं। और इन सबने भाजपा और संघ की बहुत सेवा की है। मगर अचानक इतना ज्यादा पा गए मोदी से यह हजम नहीं हो पा रहा था।

वे लगातार काम कर रहे नेताओं की तरह कुछ नहीं कह पाए थे। बल्कि एक घटना दुर्धटना ने उन्हें नेता बना दिया। गोधरा कांड से जन्मे नेता हैं वह। गोधरा के भयानक दुखद हादसे ने उन्हें मौका दे दिया।

लेकिन यह राजनीति दुनिया में न पहले स्वीकार्य थी। और न अब है। अमेरिका ने उस समय वीजा देने से मना कर दिया था। और उसके बाद जो स्वीकृति दी वह महान भारत के प्रधानमंत्री को थी। देवगौड़ा को भी दी गई थी। और चौधरी चरण सिंह को भी। भारत का प्रधानमंत्री बनना अपने आप में बड़े सम्मान की सर्वोच्च सम्मान की बात है। लेकिन आप को खुद उस सम्मान के योग्य होना भी पड़ेगा। मैं जन्मा ही नहीं प्रकट हुआ हूं- कहकर आप दुनिया में अपनी नहीं महान भारत और उसके प्रधानमंत्री पद की प्रतिष्ठा कम कर रहे हैं।

संघ बहुत डरा हुआ है, दबा हुआ भी मगर यह बात उसके अंदर से निकली कि अहंकार बहुत हो गया है। अब बात बदलने की कोशिश की जा रही है। दबाव है संघ के नेताओं पर मगर जो बात थी वह निकल गई। संघ की अपनी ग्रंथी है। हिन्दू-मुसलमान की। और हिन्दुओं में भी केवल सवर्ण हिन्दुओं को विश्वास योग्य समझने की। मगर इसके लिए संघ लगातार उपेक्षित होना अफोर्ड नहीं कर सकता।

कांग्रेस के समय संघ के अस्तित्व पर कोई संकट नहीं आया। अब तो उसे अपनी पहचान मुश्किल में लग रही है। एक साल बाद वह सौ साल का हो रहा है। उसके लिए बड़ी बात है। मगर शताब्दी का वह उत्साह गायब है। कांग्रेस का शासन होता तब भी वह जोश में होता। मगर अपनी पार्टी के शासन को वह अपना नहीं मान पा रही। एक बार भी उसने भाजपा सरकार नहीं सुना। मोदी सरकार मोदी सरकार के अलावा कोई बात नहीं।

उसे मालूम है कि पूरी मशीनरी पर कब्जा कर लिया गया है। देश में सिवाय राहुल गांघी के विपक्ष के कोई ऐसा नहीं बचा है जो मोदी से नहीं डरता हो। यह सौ साल की होने जा रही संस्था के लिए और वह संस्था जिसने मोदी को बनाया हो के लिए बहुत चिन्ता की बात है।

संघ का हिन्दू-मुसलमान उसका कोर इशु है। मगर केवल मुसलमान को किनारे करना नहीं। मुसलमान का नाम लेकर एक हौवा खड़ा करना और उसकी आड़ में दलित और पिछड़ों को उनकी पुरानी जगह पहुंचाना उसका मुख्य उद्देश्य है। लेकिन मोदी की व्यक्तिवादी राजनीति की ऐसी प्रतिक्रिया हुई कि दलित पिछड़े एक हो गए।
इस लोकसभा चुनाव से पहले दलित पिछड़े एक दूसरे को शक की निगाह से देखते थे। खासतौर से विपक्ष की राजनीति में। लेकिन संघ की हिन्दुवादी विचारधारा के प्रभाव में वे दोनों भाजपा के साथ आ गए थे। मगर मोदी द्वारा सरकारी नौकरी बंद करने जहां आरक्षण के जरिए उन्हें नौकरी मिल जाती थी का बड़ा प्रभाव हुआ। उन्हें नौकरी मिलना बंद हो गई। अगर कहीं निकली भी तो पेपर लीक ने उनकी कमर तोड़ दी। पेपर लीक तो उन्हीं को किया जाता है जो बड़ा पैसा देते हैं। दलित पिछड़े कहां से देते?
फिर उस संविधान को बदलने की बात जिसकी वजह से उन्हें सामाजिक न्याय मिला है। मोदी ने दलित पिछड़ों को विपक्ष की तरफ और खासतौर से सपा की तरफ धकेल दिया। यह संघ की राजनीति को बड़ी चोट है। यादव के ताकतवर होने के मतलब उसके पूरी मनुवादी कान्सेप्ट को खतरा। पिछड़े दलितों में यादव सबसे समर्थ जाति है। सामाजिक न्याय का नेतृत्व उसी के पास है। दलितों के साथ आने से उसकी ताकत कई गुना बढ़ गई है।

संघ इन सब खतरों को समझ रहा है। मोदी ने अपनी व्यक्तिगत राजनीति के लिए सामाजिक न्याय के सवाल को फिर तेज कर दिया है। पहले तो मंदिर से संघ ने मंडल का मुकाबला कर लिया था। मगर अब मंदिर को भी मोदी ने इस तरह अपनी व्यक्तिगत छवि बनाने के लिए पेश किया कि वह भी इस चुनाव में नहीं चला। खुद अयोध्या भाजपा को हारना पड़ा।

तो राजनीति बदल गई है। नए सामाजिक समीकरण फिर बन रहे हैं। मगर दुआएं नहीं बदलतीं। पहले भी देश की खुशहाली के लिए थीं। अब भी हैं। पहले भी सबको ईद मुबारक कहा जाता था अब भी। नफरत कभी दुआओं में नहीं आती। राजनीति में आती हो तो आए। मगर दुआएं उन सबके लिए भी होंगी जो नहीं जानते कि वह क्या कर रहे हैं।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार है)


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