Top
Begin typing your search above and press return to search.

गोरखालैंड की फिर उठी मांग, पश्चिम बंगाल से केंद्र तक हलचल

पश्चिम बंगाल में विधानसभा चुनाव नजदीक आने पर फिर से गोरखालैंड की मांग जोर पकड़ने लगी है

गोरखालैंड की फिर उठी मांग, पश्चिम बंगाल से केंद्र तक हलचल
X

नई दिल्ली। पश्चिम बंगाल में विधानसभा चुनाव नजदीक आने पर फिर से गोरखालैंड की मांग जोर पकड़ने लगी है। आंदोलन से जुड़े गोरखाओं का मानना है कि दार्जिलिंग के पर्वतीय क्षेत्र को लेकर अलग केंद्रशासित या पूर्ण राज्य के गठन से ही यहां की सांस्कृतिक और राजनीतिक से लेकर हर तरह की समस्याओं का स्थाई समाधान हो सकता है।

गोरखालैंड के मसले पर कोलकाता से लेकर दिल्ली तक एक बार फिर से हलचल तेज हो गई है। गोरखालैंड आंदोलन से जुड़े क्षेत्रीय सहयोगी दलों के साथ भाजपा के दार्जिलिंग से सांसद राजू बिष्ट और राष्ट्रीय महासचिव राममाधव बैठक कर चुके हैं। मांगों को लेकर गृह मंत्रालय की ओर से पश्चिम बंगाल सरकार को पत्र भेजकर जवाब भी मांगा जा चुका है।

गोरखालैंड राज्य की मांग को लेकर चल रही कवायदों की बात करें तो दार्जिलिंग के भाजपा सांसद राजू बिष्ट ने बीते 20 फरवरी को गोरखालैंड जनमुक्ति मोर्चा, गोरखा नेशनल लिबरेशन फ्रंट, गोरखालैंड राज्य निर्माण मोर्चा, अखिल भारतीय गोरखा लीग, सीपीआरएम के साथ बैठक की थी। ये वे सहयोगी दल हैं, जो लंबे समय से अलग गोरखालैंड राज्य की मांग को लेकर आंदोलनरत रहे हैं और इस उम्मीद में भाजपा के साथ जुड़े हैं कि कभी न कभी केंद्र सरकार उनकी मांगें पूरी करेगी।

राज्य में व्यापक जनाधार न होने के बावजूद गोरखाओं के सपोर्ट की वजह से ही भाजपा 2009, 2014 और 2019 में दार्जिलिंग लोकसभा सीट जीतने में सफल रही है। इसके बाद बीते तीन मार्च को भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव राम माधव और गोरखालैंड जनमुक्ति मोर्चा के प्रतिनिधियों की बैठक हो चुकी है।

राजू बिष्ट ने आईएएनएस को बताया कि बीते 20 फरवरी को हुई बैठक में केंद्र सरकार से एक कमेटी गठित करने की मांग की गई है, जिसमें पश्चिम बंगाल सरकार, केंद्र सरकार और गोरखालैंड आंदोलन से जुड़े दलों के प्रतिनिधियों को शामिल कर स्थाई समाधान की दिशा में काम करने की बात कही गई है। भाजपा सांसद का कहना है कि दार्जिलिंग हिल्स, सिलीगुड़ी तराई और डुवास क्षेत्र की समस्या का स्थाई राजनीतिक समाधान खोजने को लेकर भाजपा की केंद्र सरकार गंभीर है, मगर राज्य की ममता बनर्जी सरकार इसमें रोड़े अटका रही है। वह केंद्र सरकार के पत्र का जवाब भी नहीं दे रही है।

राजू बिष्ट ने आईएएनएस से कहा, "गोरखालैंड बनता है या फिर केंद्रशासित प्रदेश की स्थापना होती है, यह केंद्र सरकार तय करेगी। लेकिन भाजपा गोरखाओं की मांगों को लेकर स्पष्ट है। पार्टी ने 2019 के लोकसभा चुनाव के संकल्प-पत्र में स्पष्ट लिखा था कि हम दार्जिलिंग हिल्स, सिलीगुड़ी तराई और डुवास क्षेत्र की समस्या का स्थाई राजनीतिक समाधान खोजने की दिशा में काम करने के लिए प्रतिबद्ध हैं।"

राजू बिष्ट ने कहा, "20 हजार करोड़ रुपये का राजस्व दार्जिलिंग व आसपास के हिस्सों से पश्चिम बंगाल सरकार को जाता है। मगर इसका गोरखालैंड क्षेत्र के विकास के लिए राज्य सरकार महज 400 से 500 करोड़ रुपये देती है। अब तक ममता बनर्जी सरकार ने यहां पंचायत चुनाव नहीं कराया है। जबकि केंद्र सरकार पंचायतों के लिए 1500 करोड़ रुपये भेज चुकी है। इस तरह से दार्जिलिंग, सिलीगुड़ी क्षेत्र की समस्या का स्थाई समाधान निकलने पर यहां की करीब 50 लाख आबादी को न्याय मिल सकेगा।"

दार्जिलिंग हिल्स एरिया में रहने वालों का कहना है कि उनकी भाषा और संस्कृति पश्चिम बंगाल के लोगों से अलग है। साथ ही राज्य सरकार दार्जिलिंग के पर्वतीय क्षेत्रों के विकास को लेकर गंभीर नहीं रहती। ऐसे में अलग राज्य की स्थापना से ही उनकी समस्याएं दूर हो सकतीं हैं। 1947 में दार्जिलिंग का पश्चिम बंगाल में विलय होने के बाद 1955 में इसे लेकर गोरखालैंड राज्य बनाने की मांग उठी थी। यह मांग अखिल भारतीय गोरखा लीग ने तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू से की थी। 1986 और 1988 में गोरखा राष्ट्रीय मुक्ति मोर्चा के नेतृत्व में गोरखालैंड के लिए दो हिंसक आंदोलन हुए थे।

2007 से गोरखा जनमुक्ति मोर्चा के नेतृत्व में अलग राज्य की मांग को लेकर आंदोलन चले। आंदोलनों का नतीजा रहा कि वर्ष 2011 में ममता बनर्जी सरकार ने गोरखालैंड क्षेत्र को स्वायत्तता प्रदान करने की दिशा में गोरखालैंड टेरीटोरियल अथॉरिटी की स्थापना की। यह व्यवस्था गोरखा जनमुक्ति मोर्चा, ममता बनर्जी की राज्य सरकार और तत्कालीन केंद्र की संप्रग सरकार के बीच एक त्रिपक्षीय समझौते के तहत बनी थी। बाद में गोरखालैंड आंदोलनकर्ताओं को लगा कि इससे उन्हें कुछ हासिल नहीं हुआ।

इस बीच 2017 में जब पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी सरकार ने बंगाली भाषा को अनिवार्य करना शुरू किया तो फिर से गोरखा जनमुक्ति मोर्चा के नेतृत्व में गोरखालैंड राज्य की मांग को लेकर आंदोलन हुआ था। गोरखाओं को लगा कि ममता बनर्जी सरकार जबरन बंगाली भाषा थोपने की कोशिश कर रही है। पुलिस और गोरखाओं की झड़प में कई लोग मारे गए थे। अब विधानसभा चुनाव नजदीक आने पर फिर से गोरखालैंड की मांग उठ रही है।


Next Story

Related Stories

All Rights Reserved. Copyright @2019
Share it