‘आर्टिकल-15’ को मिला अच्छा रिस्पॉन्स ,सेंसर बोर्ड की कैंची के बाद भी छाई फिल्म
आर्टिकल 15 फिल्म के ट्रेलर को लेकर हुए विवाद के बाद अनुभव सिन्हा ने सभी ब्राह्मण संगठनों से सोशल मीडिया पर क्षमा भी मांग ली

'आर्टिकल - 15 ' ऐसी फिल्म है जो आपकी अंतरात्मा को हिलाकर रख दे
कम बजट लाजवाब अदाकारी छोटी सी लोकेशन में बेहतरीन फिल्म कैसे बनाई जा सकती है यह कोई डायरेक्टर अनुभव सिन्हा से सीखे। हम बात कर रहे है फिल्म आर्टिकल - 15 की जो आजादी के 70 साल बाद भी हमको दिखा रही है कि आप आजाद नही हो आप आज भी रंग भेद जात पात शूद्र, वैश्य, कायस्थ, ठाकुर और न जाने कितनी ही जातियों में बंधे हो। जबकि संविधान के आर्टिकल - 15 में साफ लिखा है, कि देश में धर्म जाति के नाम पर भेदभाव नही किया जाएगा और न ही उससे उसकी जाति पूछी जाएगी। मगर आज भी समाज में दलितों को मंदिर मे जाने की अनुमति नहीं है, उसके हाथ से छुआ पानी पीना भी गुनाह है लेकिन उससे बलात्कार करने में कोई जुर्म नही लगता है आज भी हम इसी दोहरी मानसिकता में जी रहे है।
फिल्म की कहानी की बात करे तो आयुष्मान खुराना यानी अयान रंजन जो आईपीएस अधिकारी के रूप मे एक छोटे से गांव लालगांव मे जाता है जो यूरोप से हायर एजुकेशन करके भारत लौट है और उसके दिल में अपने देश से बहुत प्रेम है इसलिए वो काफी जोश के साथ इस गांव मे आता है उसकी एक प्रेमिका अदिति यानी ईशा तलवार है जिस से वो हर बात शेयर करता है वो खुश है लेकिन यह खुशी ज्यादा दिन नही चलती। विदेश से आये हुए होने के कारण वो यहाँ के जीवन को सही से समझ नहीं पाता और वहीं इसके लिए परेशानी का सबब बन जाती है, क्योंकि इस गांव से 3 दलित लडकियां गायब हो जाती है, मगर उनकी एफआईआर नही लिखी जाती क्योंकि वहाँ के पुलिस अधिकारी मनोज पाहवा और कुमुद मिश्रा का कहना है कि यहाँ तो अक्सर ऐसी घटनाएं होती रहती है कभी लडकियां घर से भाग जाती है तो कभी घर वाले बेच देते है तो कभी घर वाले ही ऑनर किलिंग में मार देते है लेकिन अयान यह मानने को तैयार नही है और वह खोजबीन में लग जाता है तब उसको पता चलता है कि 2 लड़कियों को तो मार दिया गया है और एक गायब है पर यह तय है कि तीनों के साथ रेप किया गया है और रेप का कारण है कि वो मजदूर लडकियां केवल अपनी मजदूरी मैं तीन रुपए बढ़ाने को कहती है, और उनके आगे कोई जुबां न खोले इसलिये उनका अधिकारी उनके साथ रेप करके पेड़ से लटका देता है जिससे ओरों को भी सबक मिले। जैसे जैसे अयान केस सुलझाता जाता है वैसे वैसे ही समाज का विभत्स रूप सामने आने लगता है, समाज के कई ठेकेदारों के चेहरों से नकाब उतर जाता है। यहाँ तक कि अयान के लिए सीबीआई का ऑफिसर बैठा दिया जाता है और उसको बर्खास्त करने के लिए कवायद शुरू हो जाती है लेकिन सच्चाई से पर्दा उठता है तो समाज को एक आस नजर आती है कि अभी हम पूरी तरह नही बिगड़े है अभी भी बहुत कुछ हो सकता हैं।
जहाँ तक एक्टिंग की बात करे तो आयुष्मान खुराना ने तो हर फिल्म की तरह इसमे भी लाजवाब अदाकारी की है साथ ही दलित बनी सयानी गुप्ता, मनोज पाहवा, कुमुद मिश्रा, छोटे से किरदार में जीशान अयूब, प्रेमिका के रूप मे ईशा बेहतरीन अभिनय कर गए है या यूं कहें कि इस फिल्म में छोटे से छोटे कलाकार ने अपना बेस्ट दिया है या निर्देशक अनुभव सिन्हा ने उनसे बेस्ट निकलवा लिया है तो कोई बड़ी बात नही होगी। कुछ दृश्य जो पूरी तरह रियल लगते है व आपको झकझोर देते है जैसे गांव की दलदल में जाना हो या सीवर साफ करने का सीन या अपनी जान बचाने के लिए छुपी हुई बच्ची पूजा, पूरी फिल्म आपको सीट से उठने नही देती। एक समीक्षक के रूप में, मैं ये कहना चाहूंगा कि ऐसी फिल्म और बननी चाहिए जो आपकी अंतरात्मा को हिलाकर रख दे और दर्शकों से यही कहूंगा कि ऐसी फिल्में देखे ताकि निर्देशक समाज को आईना दिखाने का काम कर सकें।
फिल्म समीक्षक
सुनील पाराशर


