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बिहार का सुशासन और दलितों पर अत्याचार

बिहार में कानून व्यवस्था की धज्जियां किस कदर उड़ चुकी हैं, इसका प्रमाण बुधवार को एक बार फिर सामने आया

बिहार का सुशासन और दलितों पर अत्याचार
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बिहार में कानून व्यवस्था की धज्जियां किस कदर उड़ चुकी हैं, इसका प्रमाण बुधवार को एक बार फिर सामने आया। नवादा जिले के ददौर गांव की कृष्णानगर नाम की एक दलित बस्ती में दबंगों ने कई राउंड फायरिंग करने के बाद आग लगा दी, जिसमें करीब 80 घर जलकर खाक हो गए। कई जानवरों के मरने की सूचना है, लेकिन किसी इंसान की जान को हानि नहीं पहुंची है, क्योंकि इस हमले की आशंका से लोग पहले ही अपने घरों को छोड़कर चले गए थे। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार अब किस तरह अपने सुशासन का दावा कर सकेंगे, ये तो कहा नहीं जा सकता। फिलहाल वे यही कह सकते हैं कि इस मामले के बाद अब तक 15 लोगों को गिरफ्तार कर लिया गया है, जिसमें घटना का मास्टरमाइंड बताया जा रहा नंदू पासवान भी शामिल है।

खबरों के मुताबिक 2014 में बिहार पुलिस से रिटायर हुआ नंदू पासवान इस इलाके का भू माफिया है और आगजनी की यह घटना 1995 से ही चले आ रहे एक भूमि विवाद से जुड़ी हुई है। कारण जो भी रहा हो, लेकिन असली सवाल यह है कि क्या कोई सेवानिवृत्त शासकीय कर्मचारी, पुलिसकर्मी या सामान्य नागरिक इस कदर दुस्साहस कर सकता है कि उसके कहने पर एक गांव लगभग पूरा जला दिया जाए। यह वारदात साफ इशारा करती है कि बिहार में सरकार का इकबाल पूरी तरह खत्म हो चुका है। सरकार की पुलिस प्रशासन पर पकड़ कमजोर है और कानून-व्यवस्था गर्त में जा चुकी है।

अभी बहुत पुरानी बात नहीं है, इसी साल मई माह में भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जे पी नड्डा ने चुनाव प्रचार के दौरान भाजपा शासन और खासकर नरेन्द्र मोदी के शासन को लेकर लंबे-चौड़े दावे किए थे। श्री नड्डा ने कहा था नरेंद्र मोदी के 10 साल सेवा, सुशासन, गरीब कल्याण के रहे। एक तरफ सेवा है, सुशासन है, गरीब कल्याण है, तो दूसरी तरफ राजद-कांग्रेस के शासन की लूट, कुशासन और उनके परिवार का कल्याण था। दोनों में तय आपको करना है। श्री नड्डा लोकसभा के लिए जनता का वोट मांग रहे थे, लेकिन जिस तरह उन्होंने राजद और कांग्रेस के शासन को कोसा, उससे जाहिर है कि वे नीतीश कुमार के इंडिया गठबंधन को छोड़कर एनडीए में साथ आने को सही ठहरा रहे थे। नीतीश कुमार ने भी मन न लगने को कारण बताते हुए ही राजद और कांग्रेस से किनारा करके फिर से भाजपा से दोस्ती की और राज्य की सत्ता में भाजपा को दोबारा आने का मौका दिया था। अब उसका नतीजा सामने है कि जिस सुशासन के दावे नीतीश कुमार को लेकर किए जाते रहे, उसकी हकीकत क्या है। अब तक कई पुलों का गिरना ही काफी नहीं था कि एक बार फिर जातीय हिंसा की भयावह याद ताजा कराती नवादा की घटना घटी है।

पाठक जानते हैं कि इसी बिहार में 27 मई 1977 को मात्र एक क_ा जमीन के विवाद पर 11 लोगों की नृशंस हत्या कर दी गई थी, जिनमें आठ दलित और तीन सोनार जाति के लोग थे। मरने वालों में एक 12 बरस का विक्षिप्त बच्चा भी था। तब मोरारजी देसाई प्रधानमंत्री थे और इंदिरा गांधी आपातकाल के बाद चुनाव हार गई थीं, लेकिन फिर भी वे बेलछी तक गईं और भारी बारिश के कारण चलना मुश्किल हुआ तो हाथी पर बैठ कर गईं। इसके बाद कांग्रेस में किस तरह नयी जान पड़ गई, ये अलग इतिहास है। बहरहाल, बेलछी हत्याकांड से केंद्र की जनता दल सरकार बुरी तरह घिर गई थी, तत्कालीन गृहमंत्री चौधरी चरण सिंह ने इस हत्याकांड में जाति के एंगल को नकारा, तो यह दांव उन्हीं पर उल्टा पड़ गया। हालात संभालने के लिए सरकार ने आठ सदस्यीय सांसदों की फ़ैक्ट फ़ाइंडिंग कमेटी का गठन किया, जिसमें एक सदस्य रामविलास पासवान भी थे।

अब इतिहास फिर से उसी मोड़ पर जा पहुंचा है, जहां केंद्र में भाजपा की सरकार है और चौधरी चरण सिंह के पोते जयंत सिंह भाजपा के साथ हैं, वहीं रामविलास पासवान के बेटे चिराग पासवान भी एनडीए के साथी हैं। चिराग पासवान ने इस घटना की निंदा तो की है, लेकिन फिलहाल जिस तरह भाजपा और एनडीए के बाकी दलों के दलित, वंचित विरोधी चेहरे सामने आए हैं, उसमें निंदा करना पर्याप्त नहीं होगा। एनडीए के एक और साथी जीतनराम मांझी इस घटना के पीछे यादव समाज का हाथ बता रहे हैं और लालू प्रसाद को चुनौती दे रहे हैं। लेकिन सच तो ये है कि नवादा आगजनी कांड से न केवल नीतीश कुमार बल्कि समूची एनडीए फंस चुकी है।

तेजस्वी यादव ने इस घटना के बाद सोशल मीडिया प्लेटफार्म पर महा जंगलराज! महा दानवराज! महा राक्षसराज! कहकर नीतीश कुमार को घेरा है, तो वहीं बसपा सुप्रीमो मायावती ने भी इस घटना की निंदा की है। जबकि आजकर मायावती काफी चुनिंदा तरीके से ही भाजपा के शासन पर यदा-कदा उंगली उठाती हैं। कांग्रेस सांसद और नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी ने फिर से वंचितों के न्याय पर सवाल उठाते हुए लिखा है कि भाजपा और एनडीए के सहयोगी दलों के नेतृत्व में ऐसे अराजक तत्व शरण पाते हैं - भारत के बहुजनों को डराते हैं, दबाते हैं, ताकि वो अपने सामाजिक और संवैधानिक अधिकार भी न मांग पाएं। और, प्रधानमंत्री का मौन इस बड़े षड़यंत्र पर स्वीकृति की मोहर है।

प्रधानमंत्री मोदी मणिपुर नहीं गए, यह बात जगजाहिर है, लेकिन अब नवादा पर भी अगर वे चुप रहे तो फिर राहुल गांधी के आरोपों को बल मिल जाएगा। वैसे भी राहुल गांधी की कही बहुत सी बातें आगे जाकर सच ही साबित हुई हैं।

फिलहाल इस घटना के पीड़ितों को त्वरित इंसाफ मिले, यह सरकार की प्राथमिकता होनी चाहिए और आगे ऐसी घटना न घटे, यह उसकी जिम्मेदारी है। लेकिन नीतीश कुमार और नरेन्द्र मोदी दोनों अपनी जिम्मेदारियों से चूक रहे हैं।


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