रोजगार मेले में अच्छे दिन
2014 के चुनावों में भाजपा ने भ्रष्टाचार, महंगाई, और बेरोजगारी को बड़ा मुद्दा बनाया था

2014 के चुनावों में भाजपा ने भ्रष्टाचार, महंगाई, और बेरोजगारी को बड़ा मुद्दा बनाया था। भाजपा अपने प्रचार में यह बताती थी कि देश में ये सारी समस्याएं कांग्रेस सरकार की देन हैं और मोदीजी प्रधानमंत्री बनें तो इन सारी समस्याओं से मुक्ति मिल जाएगी। अच्छे दिन आएंगे का नारा, यहीं से निकला था। प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नरेन्द्र मोदी ने उस दौरान देश से कई वादे किए थे। जैसे भाजपा के सत्ता में आते ही विदेशों में जमा काला धन वापस लाया जाएगा और हर भारतीय के खाते में 15-15 लाख रूपए जमा हो जाएंगे। एक वादा रोजगार का भी था कि हर साल दो करोड़ लोगों को भाजपा सत्ता में आने पर रोजगार देगी।
इस तरह के वादे सुनकर आम भारतीयों की स्थिति अंधा क्या चाहे, दो आंखें वाली हो गई थी। बिना किसी खास मेहनत के, केवल एक पार्टी को जिताने पर अगर 15 लाख खाते में आते हैं, तो क्या बुरा सौदा है। लिहाजा बहुत से मतदाताओं ने भाजपा को वोट दिए। बेरोजगारों ने भी शायद यही सोचा होगा कि जिन 2 करोड़ लोगों को रोजगार मिलेगा, उसमें वे भी शामिल होंगे। अपने वादों के भरोसे भाजपा सत्ता में आ गई। इसके बाद लोग इंतजार करते रहे कि अब वादों को निभाया जाएगा। इस इंतजार में उन्हें नोटबंदी का फरमान मिला।
लोग अपनी ही पूंजी के लिए कतारों में खड़े हो गए। कहां तो 15 लाख हरेक खाते में आने थे, कहां पाई-पाई के मोहताज लोग हो गए। चार साल बाद कोरोना के कारण हुए लॉकडाउन में जो छोटे-मोटे रोजगार थे, वे भी चले गए। 2 करोड़ लोगों को रोजगार देने की जगह लाखों लोगों को बेरोजगार कर दिया गया। सत्ता के 9 सालों में कई बार स्टार्टअप इंडिया, स्टैंडअप इंडिया, आत्मनिर्भर भारत, वोकल फॉर लोकल, जैसी मुहिम छेड़ी गई। बीच-बीच में पकौड़ा बेचने और पान लगाने जैसे रोजगारों का सुझाव भी मिला। लोग अच्छे दिनों का इंतजार करते रहे और अब जनता को रोजगार मेले में घुमाया जा रहा है।
10 लाख कर्मियों के लिए भर्ती अभियान 'रोजगार मेला' के तहत गुरुवार को करीब 71,000 युवाओं को नियुक्ति पत्र दिए गए। इस मौके पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कहा कि विकसित भारत की संकल्प से सिद्धि के लिए हमारी सरकार युवाओं की प्रतिभा और ऊर्जा को सही अवसर देने के लिए प्रतिबद्ध है। आज का नया भारत जिस नई नीति और रणनीति पर चल रहा है उसने देश में नई संभावनाओं और अवसरों के द्वार खोल दिए हैं। एक वाक्य में तीन बार नए शब्द का जिक्र कर देने से हालात नए नहीं हो जाएंगे, ये बात प्रधानमंत्री अच्छे से समझते हैं, फिर भी शब्दों की बाजीगरी से वे युवाओं को ये समझा रहे हैं कि सरकार युवाओं की प्रतिभा को सही अवसर देने के लिए प्रतिबद्ध है। ये कैसी प्रतिबद्धता है, जिसमें एक अदद नौकरी के लिए 9 साल का लंबा इंतजार करवाया गया और युवाओं के सामने रोजगार पाना अब भी बड़ी चुनौती है। करोड़ों बेरोजगारों में कुछ हजार को नौकरी के लिए पत्र देकर क्या सरकार अपनी पीठ थपथपाने का हक रखती है, ये सवाल सरकार से किया जाना चाहिए।
रोजगार मेले के मंच को प्रधानमंत्री ने अपनी उपलब्धियां गिनाने के लिए भी इस्तेमाल किया। उन्होंने कहा कि आज युवाओं के सामने कई ऐसे सेक्टर खुल गए हैं जो 10 साल पहले युवाओं के सामने उपलब्ध ही नहीं थे। भारत किस तरह दुनिया में तेजी से उभरती अर्थव्यवस्था बन रहा है और कैसे रक्षा, विज्ञान, यातायात, शिक्षा, चिकित्सा हर क्षेत्र में हम आगे बढ़ रहे हैं, इसका उल्लेख भी उन्होंने किया। श्री मोदी ने कहा कि आज आधुनिक सैटेलाइट से लेकर सेमी हाई स्पीड ट्रेन तक भारत में ही निर्मित हो रहे हैं।
भारत कई क्षेत्रों में जिस तरह आत्मनिर्भर बना है, वह सभी देशवासियों के लिए गौरव की बात है। लेकिन प्रधानमंत्री ने हरेक बात का श्रेय अपनी सरकार को ही दिया। 2014 के बाद देश में क्या-क्या बदलाव आए, इसका जिक्र श्री मोदी ने किया। विचारणीय बात ये है कि क्या सैटेलाइट या ट्रेन या मिसाइल या दवाइयां बनाने के लिए अधोसंरचना, संसाधन और सुविधाएं बीते 9 सालों में ही आई हैं या इससे पहले ही इन सबके लिए नींव तैयार की जा चुकी थी। जब भाजपा इस बात का ईमानदारी से विश्लेषण करेगी तो पाएगी कि आज विकास की जिस इमारत को खड़ा करने का दावा वो कर रही है, उसकी नींव पिछले 75 बरसों में अथक मेहनत से तैयार की गई है। बैलगाड़ी पर लाद कर रॉकेट ले जाने से लेकर आज मंगल अभियान तक का सफर कई पड़ावों से गुजरा है, इसमें किसी एक सरकार को श्रेय नहीं दिया जा सकता।
श्री मोदी ने पिछली सरकार यानी कांग्रेस पर तंज कसते हुए ये भी कहा कि 2014 तक ग्रामीण इलाकों में सड़कों की लंबाई भी 4 लाख किलोमीटर से कम थी, लेकिन आज ये आंकड़ा बढ़कर सवा 7 लाख किलोमीटर से ज्यादा हो चुका है। यहां आंकड़ों के खिलवाड़ का खुलासा भी होना चाहिए। दरअसल अप्रैल 2018 में नितिन गडकरी ने राजमार्गों की लंबाई नापने की नई अवधारणा बताई थी। जिसमें राजमार्ग की कुल लंबाई की गणना करने के बजाय बनाई गई प्रत्येक नई लेन की लंबाई को मापना शामिल था। मसलन, चार लेन वाले राजमार्ग के एक किमी को चार किमी के रूप में गिना जाने लगा, यानी हर एक लेन के एक किमी को जोड़ा गया, जबकि पहले इसे एक किमी ही माना जाता था। इस नई विधि से सड़कों की लंबाई बढ़ी हुई ही दिखेगी।
प्रधानमंत्री मोदी अपनी सरकार की खूब तारीफें करें, यह उनका हक है, उनकी सोच है। लेकिन इसके साथ उन्हें खामियों पर भी बात करने की हिम्मत दिखानी चाहिए। जैसे गरीब और मध्यमवर्ग की आय घट रही है, जबकि अमीरों की आमदनी में बढ़ोतरी हो रही है, तो यह किस तरह के आर्थिक मॉडल का नतीजा है। क्यों महंगाई से आम जनता को राहत नहीं मिल रही है। देश में आर्थिक विभेद क्यों बढ़ता जा रहा है। इन सब सवालों पर जब तक सरकार चर्चा नहीं करेगी, तब तक देश के हालात नहीं सुधरेंगे।


