गोमर्डा अभ्यारण्य से कर्मचारियों को हटाने की उठने लगी मांग
रायगढ़ जिले के सांरगढ़ क्षेत्र से कुछ ही दूरी पर स्थित एकमात्र गोमर्डा अभ्यारण में लम्बे समय से विभागीय सेटिंग से जमे स्थानीय वन कर्मचारियों की स्थानांतरण की मांग अब तूल पकड़ने लगी है............
लगातार हो रहा यहां शिकार जांच के नाम पर लापरवाही भी बरत रहे अधिकारी
रायगढ़। रायगढ़ जिले के सांरगढ़ क्षेत्र से कुछ ही दूरी पर स्थित एकमात्र गोमर्डा अभ्यारण में लम्बे समय से विभागीय सेटिंग से जमे स्थानीय वन कर्मचारियों की स्थानांतरण की मांग अब तूल पकड़ने लगी है। हाल ही में गोमर्डा अभ्यारण में लगातार अवैध शिकार होने के साथ ही कक्ष क्रमांक 928 में मादा तेंदुआ की मौत हो गई थी। यहां तेंदुआ के संख्या में कमी के कारण वन्यप्राणी प्रेमियों में काफी आक्रोश देखने को मिला। वहीं जिला सेव फारेस्ट कमेटी के अध्यक्ष गोपाल अग्रवाल ने भी मादा तेंदुआ की मौत को लेकर तत्परता से घटना स्थल का निरीक्षण कर कर्मचारियों के लापरवाही व मुख्यालय में न रहने की जानकारी ली। इसके साथ ही गोमर्डा अभ्यारण में बढ़ते वन अपराध की रोकथाम में नाकाम होने की प्रमुख बिंदुओं की वन प्रेमियों से चर्चा एवं गहनता से परीक्षण किया। जिसमें स्थानीय कर्मचारियों के भारी तादाद में लम्बे समय से अभ्यारण में जमे रहना, रात्रि गस्त में ध्यान नहीं दिया जाना परिलक्षित हुआ।
इसके साथ ही यह बात भी सामने आयी कि कई वनकर्मी सारंगढ़ क्षेत्र के होने से वन अपराधों से जुड़े लोगों के साथ संबंध होने की संभावना व्यक्त करते हुए स्थानीय कर्मचारियों को अन्यत्र स्थानांतरित किए जाने की मांग मुख्यमंत्री डॉ रमन सिंह एवं वनमंत्री सहित विभाग के प्रमुख अधिकारियों से की है। जानकारों का यह भी कहना है कि 277.82 वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल फैला अभ्यारण की सुरक्षा में वन कर्मचारियों की कमी और गश्त के लिए स्थानीय टास्कफोर्स की सुविधा में विस्तार किया जाना अनिवार्य है।
जिस पर प्रशासन को अनिवार्य रूप से ध्यान दिए जाने की आवश्यकता है अन्यथा अभ्यारण्य का अस्तित्व समाप्त हो जाएगा। विभागीय जानकारों ने बताया कि वर्ष 2005 में अभ्यारण्य में वन्यप्राणियों के संख्या की गणना की गई थी। तभी हजारों की संख्या में यहां वन्यप्राणी थे, लेकिन अब यह स्थिति नहीं है। जानकारों ने बताया कि वर्ष 2005 की गणना में करीब बीस से अधिक तेंदुआ पाए गए थे, लेकिन अब इतनी संख्या में यहां तेंदुआ नहीं है। जबकि अगर शिकार नहीं हो रहा है, तो हर साल वन्यप्राणियों की संख्या बढ़नी चाहिए।


