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रास्ते में ईश्वर

गृहस्थी के काम सम्पन्न करती नौकरीपेशा स्त्री समय के पहिये के बराबर गति रखती है

रास्ते में ईश्वर
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- इंदिरा दाँगी

गृहस्थी के काम सम्पन्न करती नौकरीपेशा स्त्री समय के पहिये के बराबर गति रखती है !

सुबह खाना पकाती , सबके लंच बॉक्स लगाती स्मिता को ध्यान है कि आज मंगलवार है। उसने हनुमान जी को भोग लगाने को एक अमरूद अपने लंच वाले झोले में रख लिया है। दस बजे तक हर हाल में ऑफिस की बायोमेट्रिक्स पर उपस्थिति देनी होती है ; अब बस स्कूटी की चाबी उठाने का समय बचा है !

गौहर महल चौराहे के रेड सिग्नल पर लेकिन जब उसने कलाई घड़ी देखी; नौ बजकर पैंतीस मिनिट ! आज तो अब मंदिर जाना कैसे होगा ??

वो युवक जो स्टे केबिल ब्रिज पर हमेशा बेमकसद भटकता रहता है; आज इस क्षण–क्षण सिग्नल को ताकती वाहन-भीड़ के पगे शहरियों के बीच एकाएक जैसे किसी उद्देश्य से चला आ रहा है।

सिग्नल ग्रीन होने में 30 से भी कम सेकंडस बाकी हैं। स्मिता ने जैसे ही उसको इस ओर आते देखा, झोले से फल निकाल कर उसे दिखाया। लवलेश मात्र में अब वो स्मिता के सामने था; और फल वो उसे देती, इससे पहले ही उसने स्वयं फल ले लिया; और आनंद से खाता हुआ चला गया।

सिग्नल ग्रीन हुआ है; और अपने में मुसकुराती स्मिता ने स्कूटी आगे बढ़ा दी है।


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