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जीकेपीडी ने वाशिंगटन में विरोध रैली आयोजित की

रैली के आयोजक और वाशिंगटन डीसी, जीकेपीडी के समन्वयक मोहन सप्रू ने कहा, "प्रदर्शनकारी पाकिस्तान की सीमा-पार आतंकवाद और कश्मीर में 73 साल लंबी स्थायी नीति की कड़ी निंदा करने के लिए एकत्र हुए हैं

जीकेपीडी ने वाशिंगटन में विरोध रैली आयोजित की
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वाशिंगटन। वैश्विक कश्मीरी पंडित प्रवासी (जीकेपीडी) और अन्य सामुदायिक संगठनों ने जम्मू एवं कश्मीर में पाकिस्तान की ओर से पहली बार सीमा-पार की क्रूर आक्रामकता की 73वीं वर्षगांठ के अवसर पर वाशिंगटन में पाकिस्तान के दूतावास के सामने विरोध रैली की। मास्क पहने हुए और सामाजिक दूरी के मानदंडों का पालन करते हुए, प्रदर्शनकारियों ने गुरुवार को काला दिवस मनाया। उन्होंने पाकिस्तान की ओर से सीमा पार आतंकवाद को कश्मीर के लिए खतरनाक करार देते हुए काला दिवस मनाया। इसके लिए उन्होंने डिजिटल ट्रक और कार डिस्प्ले का इस्तेमाल किया।

रैली के आयोजक और वाशिंगटन डीसी, जीकेपीडी के समन्वयक मोहन सप्रू ने कहा, "प्रदर्शनकारी पाकिस्तान की सीमा-पार आतंकवाद और कश्मीर में 73 साल लंबी स्थायी नीति की कड़ी निंदा करने के लिए एकत्र हुए हैं। पाकिस्तान ने अल्पसंख्यक समुदायों को निशाना बनाया है, जिनमें कश्मीरी हिंदू, सिख, ईसाई और बौद्ध शामिल हैं।

घाटी में हिंसा और आतंक फैलाने में पाकिस्तान की भूमिका के विरोध में यह दिन मनाया गया। दरअसल 22 अक्टूबर, 1947 को पाकिस्तानी आक्रमणकारियों ने अवैध रूप से जम्मू-कश्मीर में प्रवेश किया और लूटपाट और अत्याचार किए।

पाकिस्तानी सेना समर्थित कबाइली लोगों के लश्कर (मिलिशिया) ने कुल्हाड़ियों, तलवारों, बंदूकों और हथियारों से लैस होकर कश्मीरी लोगों पर हमला बोल दिया था।

सीमा पार इस्लामिक आतंकवाद की क्रूरता बेरोकटोक जारी रही और इसके परिणामस्वरूप 1989-1991 के बीच स्वदेशी कश्मीरी हिंदुओं का नरसंहार किया गया और उसके बाद उनका जबरन पलायन हुआ। दुनिया भर में इस्लामिक आतंकवाद के खतरे को पहचानने में विश्व समुदायों को ईमानदार होने की जरूरत है। कश्मीरी हिंदुओं का नरसंहार किया गया है और इस अल्पसंख्यक समुदाय के मानवाधिकारों का उल्लंघन हुआ है।

कार्यकर्ता सिद्धार्थ अंबरदार ने कहा, "कश्मीर लौटने और सच्ची शांति के लिए इस्लामी आतंकवाद के खतरे को जड़ से उखाड़ फेंकना होगा।"

उन्होंने कहा कि कश्मीरी हिंदुओं की हत्या और दुष्कर्म का शिकार हुए लोगों को न्याय मिलना चाहिए।

अंबरदार ने कहा, "घाटी में स्वदेशी कश्मीरी हिंदुओं की सुरक्षित वापसी के लिए अभी भी कोई व्यापक व्यवहार्य योजना नहीं है, जो अपने ही देश में शरणार्थी बने हुए हैं।"

उन्होंने ऐसे कुछ कश्मीरी हिंदू परिवारों की पीड़ा और कठिनाइयों का भी जिक्र किया, जो भय के माहौल में अभी भी घाटी में रह रहे हैं और जिनकी ओर अभी भी कोई ध्यान नहीं दिया जा रहा है।

विरोध प्रदर्शन में शामिल एक अन्य कश्मीरी हिंदू समुदाय के कार्यकर्ता स्वप्न रैना ने कहा, "हम न्याय की मांग करते रहेंगे और दुनिया को इस्लामी आतंकवादियों द्वारा स्वदेशी कश्मीरियों के नरसंहार को भूलने नहीं देंगे।"

स्थानीय समुदाय (लोकल कम्युनिटी) कार्यकर्ता उत्सव चक्रबर्ती ने कहा कि 22 अक्टूबर, 1947 के काले दिन के बारे में लोगों कम लोगों को जानकारी है। उन्होंने कहा कि हमें उसे याद रखे रखना और साझा करना जरूरी है, ताकि इस तरह के घटनाक्रम को दोबारा कभी नहीं दोहराया जा सके।

पत्रकार और स्थानीय पश्तून निवासी पीर जुबैर ने कहा, "पाकिस्तान ने आदिवासियों को जिहाद के नाम पर कश्मीरियों पर हमला करने और उन पर अत्याचार करने के लिए प्रेरित किया है। इसके अलावा पाकिस्तान ने 1947 में कश्मीरी हिंदुओं और सिखों के साथ जो किया, वह अब आदिवासियों के साथ भी हो रहा है।"


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