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निशाना लगाने के लिए शादी से पहले ही लड़कियां दहेज में मांगती है बंदूक

उत्तर प्रदेश में बागपत की बेटियां शादी के मौके पर मिलने वाले दहेज में सोना एवं चांदी के जेवर सहित अन्य कीमती सामान की बजाए निशाना लगाने के लिए बंदूक एवं पिस्टल की मांग करती है।

निशाना लगाने के लिए शादी से पहले ही लड़कियां दहेज में मांगती है बंदूक
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बागपत। उत्तर प्रदेश में बागपत की बेटियां शादी के मौके पर मिलने वाले दहेज में सोना एवं चांदी के जेवर सहित अन्य कीमती सामान की बजाए निशाना लगाने के लिए बंदूक एवं पिस्टल की मांग करती है।

बागपत की बेटियों की यह मांग परिवार के लोग बड़ी खुशी के साथ पूरा भी कर रहे हैं। क्योंकि यही बंदूक ही तो उनके भविष्य को सवार रही है।

बागपत में बड़ौत क्षेत्र के जौहड़ी गांव से इन बेटियों की यह कहानी जुड़ी हुई है। जहां लड़कियां गांव स्थित बीपी सिंघल शूटिंग रेंज (यहीं पर भारतीय खेल प्राधिकरण का प्रशिक्षण केंद्र भी है) पर अभ्यास करती हैं और राष्ट्रीय एवं अतंरराष्ट्रीय स्तर पर होने वाली निशानेबाजी प्रतियोगिताओं में ढेरों सोने-चांदी और कांस्य के पदक जीत चुकी हैं। इसी आधार पर इन बेटियों को रोजगार मिल गया है। कोई भारतीय खेल प्राधिकरण की कोच बनकर निशानेबाजी सिखा रही है तो कोई एयर इंडिया में नौकरी कर रही है। कोई सीआरपीएफ में असिस्टेंट कमांडेंट बन देश सेवा कर रही है तो कोई अध्यापक बन देश का भविष्य गढ़ रही है।

बंदूक मांगने के पीछे निशानेबाज बेटियों का कहना है कि वह माता-पिता के सामने प्रस्ताव रखती है कि शादी से पहले उन्हें (बंदूक पिस्टल या रायफल) दिला दो। जिससे वह राष्ट्रीय और अतंरराष्ट्रीय स्तर पर पदक जीतकर नौकरी पा सके। नौकरी मिलने के बाद वह आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर हो जाएंगी और उसके बाद दहेज के बिना ही उनकी शादी हो जाएगी।

जौहड़ी शूटिंग रेंज के संस्थापक एवं अंतरराष्ट्रीय कोच डा. राजपाल सिंह ने बताया कि दिल्ली से महज 60 किलोमीटर दूर जौहड़ी गांव में खुली बीपी सिंहल शूटिंग रेंज में ग्रामीण क्षेत्र के दीक्षा श्योराण, अंशिका कौशिक, निदा, मानवी, आशु तोमर, हरिओम, दीपांशु कौशिक, सोनू, पंकज आदि लड़के-लड़कियां निशानेबाजी का अभ्यास करती हैं। जिनमें ज्यादातर लड़कियां ही हैं।

इसी रेंज में भारतीय खेल प्राधिकरण का डे बॉर्डिंग सेंटर भी खुला हुआ है। जिसमें कोच नीतू श्योरान 18 निशानेबाजों को अभ्यास कराती हैं। डा. सिंह ने बताया कि 20 साल पहले उन्होंने अपने गांव जौहड़ी में निशानेबाजी की रेंज खोली थी। लड़के और लड़कियों को अभ्यास कराया, जिसके बाद वह राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पदक जीतने लगे।

उन्होंने बताया कि इसके बाद कई लड़कियों के अभिभावकों को सलाह दी कि जो खर्च इनकी शादी में करोगे, उसमें से कुछ रुपए की इन्हें पिस्टल या रायफल दिला दो। कई लोगों ने उनकी सलाह मानी और बेटियों को पिस्टल दिला दी। उसके बाद इनकी नौकरी लग गई और दहेज के बिना ही शादी हो गई।

उन्होंने बताया कि इस रेंज से अभी तक 41 अंतरराष्ट्रीय और 300 से ज्यादा राष्ट्रीय स्तर के निशानेबाज प्रशिक्षण लेकर ढेरों सोने-चांदी और कांस्य के पदक जीतकर देश-दुनिया में अपनी प्रतिभा का लोहा मनवा चुके हैं।

भारतीय खेल प्राधिकरण की कोच एवं जौहड़ी गांव निवासी नीतू श्योरान ने बताया कि उसके माता-पिता ने दहेज में दिए जाने वाले रुपयों में कटौती कर शादी से पहले ही उसे पिस्टल दिला दी थी। मेहनत के बाद उसे इसी शूटिंग रेंज पर कोच की नौकरी मिल गई। शादी के बाद वह ससुराल में बंदूक लेकर गई तो ससुराल वालों को बड़ा अटपटा लगा था लेकिन जब उन्हें पता चला कि इसी पिस्टल के कारण उसे नौकरी मिली है। तो वह खुश हो गए।

जौहड़ी गांव की ही रहने वाली सीमा तोमर ने बताया कि उसने भी शादी से पहले ही पिस्टल ले ली थी और उसे एयर इंडिया में नौकरी मिल गई। उसके बाद उसकी शादी हुई तो ससुराल पक्ष के लोग बहुत खुश हुए कि निशानेबाज बहू आई है। वह नौकरी के साथ-साथ एयर इंडिया में भी नौकरी कर रही है। मायके और ससुराल दोनों जगह से उसे सहयोग मिल रहा है।

किशनपुर बराल गांव की सर्वेश तोमर ने बताया कि वह अंतरराष्ट्रीय निशानेबाज है और अब सीआरपीएफ में असिस्टेंट कमांडेंट के पद पर तैनात है। उसने भी माता-पिता से शादी से पहले ही पिस्टल ले ली थी, उसी के आधार पर उसे नौकरी मिली और अच्छी शादी हुई।


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