गरियाबंद : राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण के निर्देशों का परिपालन में अव्वल जिला गरियाबंद
रबी फसल के पश्चात फसल अवशेष को जलाने के मामले में राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण (एनजीटी) के दिये गए निर्देशों का परिपालन प्रदेश में संभवत

गरियाबंद। के पश्चात फसल अवशेष को जलाने के मामले में राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण (एनजीटी) के दिये गए निर्देशों का परिपालन प्रदेश में संभवत: पहली बार गरियाबंद जिले में किया गया है। जिला प्रशासन द्वारा बार-बार किसानों से अपील की गई और समझाईश भी दी गई, जिसका असर यह हुआ कि जिले के अधिकतर किसान रबी फसल के अवशेष को या तो खाद बनाने खेतों में छोड़ दिये या पैरा का उपयोग मवेशियों के चारा के लिए किया।
इसके बावजूद भी कई किसानों द्वारा गंभीरता से नहीं लिया गया और लगातार रबी फसल के पश्चात फसल अवशेष जलाते रहे। पर्यावरण को होने वाले नुकसान को देखते हुए ऐसे किसानों पर प्राधिकरण के निर्देशों के तहत कार्यवाही की गई है। राजिम अनुविभाग के 294 किसान और गरियाबंद अनुविभाग के 18 किसानों पर बतौर अर्थदण्ड कुल 5 लाख 85 हजार 500 रूपये रोपित किया गया है।
जिले के फिंगेश्वर राजिम क्षेत्र में सिंचाई साधन होने के कारण यहां किसान दो फसल लेते हैं। ज्यादा उत्पादन और जल्दी फसल लेने के धुन में किसान अक्सर रबी फसल के पश्चात बचे अवशेष को जलाकर नष्ट कर देते है।
जिससें पर्यावरण की हानि होती है। यह देखा गया है कि इस क्षेत्र के किसानों में यह प्रवृत्ति पाई जाती है। जिला प्रशासन के संज्ञान में जब यह बात आई तो प्रशासन द्वारा ऐसे प्रवृत्ति को हतोत्साहित करने पहल की गई। किसानों से लगातार अपील की गई एवं गांव-गांव में मुनादी कर इसके दुष्प्रभाव को भी बताया गया। फसल कटाई के उपरांत खेत में पड़े हुए अवशेष के साथ ही जुताई कर हल्की सिंचाई-पानी का छिड़काव करने के पश्चात ट्राइकोडर्मा एवं जैविक वेस्ट डिकम्पोजर का छिड़काव करने से फसल अवशेष 15 से 20 दिन पश्चात कम्पोस्ट में परिवर्तित हो जाते हैै। एन.जी.टी के अनुसार फसल अवशिष्ट जलाने से निकलने वाले धुएं में मौजूद कार्बनडाई-आक्साइड, कार्बनमोनो-आक्साइड, मिथेन आदि जहरीली गैसों से न सिर्फ मानव स्वास्थ्य पर विपरीत प्रभाव पड़ता है साथ ही वायु प्रदूषण का स्तर भी बढ़ रहा हैं।
पर्यावरण के लिए अवशेष जलाना काफी नुकसानदेय - किसान
इस संबंध में ग्राम मुड़तराई के किसान शोभित राम वर्मा ने बताया कि फसल अवशेष जलाना वास्तव में एक गलत प्रवृत्ति है। इससे पर्यावरण का नुकसान तो होता ही है। साथ-साथ खेत से लगे कई छोटे पेड़ भी नष्ट हो जाते है, जो पैरा चारा के काम आता, वो भी जलकर राख बन जाता है। इसी तरह ग्राम कोपरा के किसान राजू ठाकुर ने बताया कि पैरा जलाने से खेत के छोटे जीव-जन्तु और मित्र कीट जलकर नष्ट हो जाते हैं। यहां तक केचुआ भी खत्म हो जाता है, जो हमारे मिट्टी के लिए काफी उपयोगी है। ग्राम धुरसा के किसान जीवन लाल साहू ने कहा कि सही मायने में फसल जलाने से मिट्टी की उत्पादकता कम हो जाती है और मिट्टी कठोर हो जाती है।
पर्यावरणीय दृष्टि से गरियाबंद समृद्ध, इसे बचाना हमारी जिम्मेदारी - कलेक्टर
कलेक्टर श्याम धावड़े ने बताया कि 01 जनवरी 2012 को गठित गरियाबंद जिला पैरी नदी के आंचल में हरे-भरे सघन वनों और पहाडियों की मनोरम प्राकृतिक दृश्यों से सजा-धजा क्षेत्र है। पर्वतों से घिरे होने के कारण ही इसका नाम गरियाबंद पड़ा। यह जिला पर्यावरण और पर्यटन की दृष्ठि से काफी समृद्ध है। यहां विभिन्न प्राकृतिक एवं रमणीय स्थलों के साथ-साथ पुरातात्विक धार्मिक स्थल मौजूद है। यहां लगभग 54 प्रतिशत क्षेत्र वन आच्छादित है। जिससे यहां की जलवायु और पर्यावरण अनुकूल है। इस समृद्ध जिला की पहचान सघन वन, नदी, नाले और वन्यजीव है। जिसका संरक्षण और संवर्धन करना हमारा दायित्व है।
फोटो- कलेक्टर श्याम धावड़े एवं किसान राजु ठाकुर व शोभित वर्मा।


