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नगर निगम की शहर को साफ रखने की कोशिश नाकाम

गाजियाबाद ! नगर निगम भले ही लाख दावे कर ले कि शहर को साफ सुथरा रखा जा रहा है। लेकिन हकीकत इससे कोषों दूर है

नगर निगम की शहर को साफ रखने की कोशिश नाकाम
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गाजियाबाद ! नगर निगम भले ही लाख दावे कर ले कि शहर को साफ सुथरा रखा जा रहा है। लेकिन हकीकत इससे कोषों दूर है। शहर में जगह-जगह फैले कूड़े के ढेर ये बताने के लिए काफी है कि नगर-निगम की शहर को साफ रखने की ये कोशिश नाकाफी है। यही नहीं क्वालिटी काउंसिल ऑफ इंडिया ने 434 शहरों के सर्वेक्षण के बाद इस बात पर मुहर लगा दी है। दरअसल हम आप को बता दे कि नगर निगम प्रतिदिन 20 लाख रुपए खर्च करता है शहर को साफ सुथरा रखने के लिए इसके बावजूद शहर में गंदगी है।

साल भर में 72 करोड़ का भारी भरकम बजट खर्च करने के बावजूद 434 शहरों की प्रतिस्पर्धा में नगर निगम अफसर शहर को 351वीं रैंक दिला पाए।
वर्ष 2015-16 में स्वास्थ्य विभाग ने शहर की सफाई व्यवस्था पर 66.61 करोड़ रुपए खर्च किए थे। साल 2016-17 में यह सालाना खर्च बढक़र 72.34 करोड़ रुपए पहुंच गया। यानी करीब 20 लाख रुपए सफाई व्यवस्था पर प्रतिदिन खर्च किए, मगर शहर की सूरत नहीं बदली। विभाग के नकारेपन के चलते सडक़ किनारे कचरा फैला हुआ है। नाले सिल्ट से अटे पड़े हैं और सडक़ों पर गंदगी की भरमार है। नगर निगम के स्वास्थ्य विभाग को नगर निगम बोर्ड फंड के 72.34 करोड़ रुपए के अलावा 14वें वित्त आयोग और अवस्थापना निधि से भी रुपया मिला है। हर साल औसतन 5 से 8 करोड़ रुपए स्वास्थ्य विभाग को इन मदों में मिलता है। कमीशन के चक्कर में इस फंड को भी लुटाया जा रहा है। कई ऐसे वाहन भी खरीद लिए गए, जिनकी जरूरत ही नहीं थी। नगर निगम में करीब 4200 सफाई कर्मचारी हैं। इनमें तकरीबन 3500 कर्मचारी कांट्रेक्ट पर हैं। हर वार्ड में 20 से 60 कर्मचारी तैनात हैं। बावजूद इसके वार्डों में गंदगी रहती है। सफाई कर्मचारियों के वेतन पर पिछले साल 34.60 करोड़ रुपये खर्च किए हैं। जबकि सामान्य कर्मचारियों के वेतन पर 62.46 लाख रुपये खर्च किए गए। स्वच्छता सर्वेक्षण में शहर की जो रैंकिंग आई है वह संतोषजनक नहीं है। पर्याप्त बजट के बावजूद ऐसे प्रदर्शन की उम्मीद नहीं की जा सकती। सफाई के लिए विशेष अभियान चलाए जाएंगे। सफाई व्यवस्था सुधारने के लिए प्लानिंग की जा रही है।
- अशु वर्मा, मेयर


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