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गुटखे में मिलाया जा रहा तेजाब, तीन सैंपल फेल

गाजियाबाद ! फूड सेफ्टी विभाग ने दिलबाग और शिखर गुटखे में खतरनाक तेजाब मिला होने की पुष्टि की है। फूड डिपार्टमेंट की ओर से इन दो कंपनियों के अलावा एक लोकल ब्रांड के तीन सैंपल जांच के लिए भेजे गए थे

गुटखे में मिलाया जा रहा तेजाब, तीन सैंपल फेल
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खाद्यान विभाग ने कंपनियों भेजा नोटिस

गाजियाबाद ! फूड सेफ्टी विभाग ने दिलबाग और शिखर गुटखे में खतरनाक तेजाब मिला होने की पुष्टि की है। फूड डिपार्टमेंट की ओर से इन दो कंपनियों के अलावा एक लोकल ब्रांड के तीन सैंपल जांच के लिए भेजे गए थे, जो जांच में फेल पाए गए हैं। इनमें गेम्बियर (चमड़ा साफ करने वाला केमिकल) मिला पाया गया है। डिपार्टमेंट ने दोनों कंपनियों को नोटिस भेज दिया है। फूड कमिश्नर की अनुमति के बाद इन पर मामला दर्ज की जाएगी। डीओ अजय जायसवाल ने बताया कि डिपार्टमेंट की टीम ने 18 और 20 अक्टूबर 2016 में गुटखों के सैंपल लिए थे। शिखर गुटखा का सैंपल इंदिरापुरम से लिया गया, जबकि लोनी रोड इंदिरा मार्केट से दिलबाग और एक लोकल ब्रांड के गुटखे का सैंपल वसुंधरा सेक्टर-10 से लिया गया। लखनऊ की राजकीय लैब से इन सैंपलों की जांच रिपोर्ट चौंकाने वाली आई। जांच रिपोर्ट में तीनों गुटखे के सैंपल में गेम्बियर मिला पाया गया। इस केमिकल से सुपारी को स्वाद और भुरभुरा बनाया जाता है, इस केमिकल युक्त गुटखा को खाने से गेम्बियर मुंह के मांस को ही गला देता है। मुंह में लार भी नहीं देता है। स्वाद तंत्रिकाओं को खत्म कर देता है। ईएनटी विशेषज्ञ डा. बीपी त्यागी ने बताया कि गुटखा खाने से मुंह का कैंसर होता है। गुटखे में मिले रासायनिक पदार्थ मुंह के अंदर के हिस्से को गलाने लगते हैं और जीभ को काट देते हैं। इसके साथ ही सलाइवा भी खत्म होने लगता है। इसका अधिक प्रयोग मुंह की पूरी प्रक्रिया को खत्म कर देता है। ऐसे में अगर गुटखे में गेम्बियर मिला हो तो कैंसर होने की संभावना भी छह गुना बढ़ जाती है। जाने माने कैंसर रोग विशेषज्ञ डा. एचसीएल गुप्ता ने बताया कि नियमित गुटखा खाने से गाल की झिल्ली में मांस के ऊपर रेशे बनने लगते हैं, जिससे मुंह खुलना बंद होता है। जो कि कैंसर को पैदा करता है। डा. हर्ष महाजन के मुताबिक उनकी लैब में हर दिन 20 से 30 मरीज दिल्ली एनसीआर के इलाकों से आते हैं। इनमें से अस्सी फीसदी को गुटखे के चलते ओरल कैंसर की शिकायत होती है। जो कि मसाले में स्वाद के लिए डाला जाता है। गेम्बियर स्लो पाइजन की तरह काम करता है। शुरुआती दौर में पता भी नहीं चलता। ज्यादातर मरीज स्टेज टू और थ्री में आते हैं तब तक कैंसर शरीर तक पहुंच चुका होता है। इसका परीक्षण से लेकर उपचार तक काफी दर्दनाक और महंगा होता है।
इनके सैंपल भी हुए फेल
फूड सेफ्टी डिपार्टमेंट की जांच में कई और उत्पादों की रिपोर्ट भी नेगेटिव आई है। डीओ अजय जायसवाल ने बताया कि चौधरी मोड़ स्थित ऑप्युलेंट मॉल के बिग बाजार से लिए गए माउथ फ्रेशनर के सैंपल में सिंथेटिक कलर मिला है। इसी प्रकार से विजय नगर से लिया गए छेना रसगुल्ले के सैंपल में भी सिंथेटिक कलर मिला है। सौंफ पाउडर और काजू के टुकड़े में मरे हुए कीड़े मिले हैं। इन सब के खिलाफ भी कार्रवाई होगी।


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