चंद मिनटों में पाएं मनचाहा प्यार और सौतन से मुक्ति
भारतीय रेलवे की जनरल बोगी की दीवार अपने आप में विज्ञापन की चलती फिरती अद्भुत दुकान है

- विनोद कुमार विक्की
भारतीय रेलवे की जनरल बोगी की दीवार अपने आप में विज्ञापन की चलती फिरती अद्भुत दुकान है. टीवी, मोबाइल का विज्ञापन समय उपरांत बदलता है लेकिन तीस मिनट से तीस घंटा तक के सफर में नेताओं के फितरत की तरह रेलवे की दीवारों पर सरकारी एवं गैर सरकारी विविध विज्ञापनों से की गई नक्काशी अपरिवर्तनीय रहती है।
अलार्म पुलिंग चेन के नीचे बेवजह चेन खींचने एवं यात्रा के दौरान सिगरेट-बीड़ी के तलब गारो के लिए वैधानिक विज्ञापन, तो छात्र,बेरोजगार,रोगी आदि हर उम्र के लोगों के लिए लाभकारी स्टिकर वाला स्व प्रमाणित विज्ञापन, रिजल्ट की शत प्रतिशत गारंटी वाली कोचिंग का विज्ञापन, बेरोजगारों के लिए घर बैठे पंद्रह से पचास हजार रुपये कमाई का मौका दे रही संस्थान का विज्ञापन ,मुफ्त मोतियाबिंद इलाज, चर्म रोग, डायबिटीज़, बिना टीका चीरा के आप्रेशन,शराब छुड़ाई,कब्ज से गुप्त रोग तक का शर्तिया इलाज वाले विज्ञापनों का सामंजन आपको भारत में विविधता में एकता का संदेश देती नजर आएगी. जिन पर ना चाहते हुए भी तीन घंटे के सफर में तीन सौ बार आपकी नजर जानी ही जानी है। वैसे भी टीवी का विज्ञापन रहे तो रिमोट से चैनल बदला जा सकता है पेपर का विज्ञापन हो तो पेज को बदला जा सकता है, मोबाइल का विज्ञापन हो तो स्किप किया जा सकता है किन्तु मशक्कत से प्राप्त दुर्लभ ट्रेन सीट को बदलने का रिस्क भला कौन ले !
विज्ञापन से याद आया कि जो दिखता है, वही बिकता है और जो दिखाता है वही बिकवाता है. हमारे देश में दिखाने और बिकवाने वाली मानवीय प्रजाति दो ही है, पहला नेता और दूसरा बाबा. नेता की चर्चा के लिए भारतीय व्यंग्य साहित्य में एक से एक महाग्रंथ उपलब्ध है. तो चलिए आज के प्रसंग में बाबा जी पर ही थोड़ी बहुत मगजमारी की जाय। इंडिया बाबाओं का देश है। जंगल,जेल से रेल तक हर वेरायटी के बाबा यहाँ अवेलेवल हैं. बात रनिंग ट्रेन की हो और बाबा की कृृृपा रूक जाए, ऐसा कदापि संभव नही।
रेल यात्रा के दौरान आपको दशको से मंदिर निर्माण को कृत संकल्पित चंदा मांगते या भिक्षाटन करते हुए बाबा मिले ना मिले लेकिन टोटल समस्या समाधान वाले गोल्ड मेडलिस्ट स्टिकर बाबा का विज्ञापन मिलना ही मिलना है. सकल बाधा हरने वाली विज्ञापन में इनके वास्तविक नाम की बजाय किराए या उधार पर लिया गया जनकल्याणकारी भाव वाला नाम लिखा रहता है जिसके आगे गोल्ड मेडलिस्ट होने का उल्लेख किया जाता है। बाबाजी को यह गोल्ड मेडल शिक्षा, मैराथन ,तीरंदाजी या जुमलेबाजी किस क्षेत्र में मिला है, इसका उल्लेख कहीं नहीं किया जाता।
संभवत: स्टिकर में स्थान अनुपलब्धता या प्रति शब्द छपाई की कीमत का अतिरिक्त भार की वजह से इसका उल्लेख करना मुनासिब ना समझते हों! वैसे इनके मेडलिस्ट होने पर ज्यादा मगज नहीं खपाने का, क्योंकि तंतर-मंतर से जब खोया प्यार,जायदाद,जवानी,ऐश्वर्य सब कुछ हासिल हो सकता है तो नामुराद गोल्ड मेडल कौन सी बड़ी चीज है. इनके स्टिकर पर स्वयं या इनके रामबाण क्लिनिक,दफ्तर,संस्थान की तस्वीर ना होकर शिरडी के साईं की तस्वीर उसी तरह लगी रहती है, जिस तरह भारत सरकार के सरकारी पत्र पर राष्ट्रीय चिह्न अंकित रहता है. पता और स्थान का उल्लेख नही रहता संभवत: आधार कार्ड से लिंक नही होने की वजह से स्थाई पता की तलाश में बाबा का ठिकाना सदैव परिवर्तन शील रहता है. स्टिकर में अंकित दो-तीन मोबाइल नम्बर ही चिकित्सा पद्धति या समस्या समाधान का एकमात्र जरिया होता है. ये बाबा विशुद्ध सेकुलर होते हैं क्योंकि इनके विज्ञापन कैटलॉग पर क्रॉस,786,ऊँ सहित सभी धर्मो का प्रतीक चिह्न मुद्रित रहता है. ऐसे स्वयंसिद्ध चमत्कारी बाबा कबीर के स्वघोषित वंशज होते हैं क्योंकि ये 'कल करे सो आज कर, आज करे से अब...Óवाली नीति के पक्षधर होते हैं. जर-जोरू-जमीन के जिन दीवानी और फौजदारी मामलो का निष्पादन तारीख पर तारीख हॉलमार्क वाली संस्थान के जज वर्षो में भी नहीं कर सकते उन मामलों का निपटान ये चुटकियों में करने का माद्दा रखते हैं।
ये शिव के कलयुगी अवतार होते हैं इनके विज्ञापन में मानव के संहार की खुलेआम चर्चा होती है. इनके विज्ञापन में एक-एक शब्दों से बनी पंक्तियाँ यमराज का सर्कुलर अथवा तानाशाह का फरमान जैसा प्रतीत होता है. विश्वास ना हो तो स्वयं आकलन कर लें क्योंकि ये स्वयंभू बाबा फोन पर ही आधा घंटा के अंदर सौतन को तड़पते देखने का दंभ भरते है। जमीन, जायदाद प्रेम, पैसा के विवादों व दुश्मनों को मिटाने का अदम्य कार्य को महज चंद मिनटों में करने का शर्तिया दावा करते है। ये खुलेआम विज्ञापन की चोट पर काला जादू के जानलेवा प्रयोग का प्रचार-प्रसार करते है. मरने-मारने का दावा करते हैं, लेकिन मजाल क्या है भारतीय संविधान का कोई कानून इन बाबाओं की जंतर तक उखाड़ सके।
भारतीय रेलवे एक्ट में भी ज्वलनशील वस्तुओं के साथ यात्रा करने पर दंड का प्रावधान है लेकिन ज्वलनशील भड़काऊ विज्ञापन चिपकाने पर कोई विधान नहीं है। जब कानून को फर्क ही नही पड़ता तो हमें इसके विरोध की क्यों खुजली हो रही भाई। जब रेल सफर मे बढ़े हुए फोता या हाइड्रोसिल की प्रतीकात्मक चित्र वाली विज्ञापन देखने को हम अभ्यस्त हो चुके हैं तो बाबा की बाबागिरी वाले विज्ञापन से कौन सा सेहत का इम्यूनिटी लॉस होने वाला है। यदि आपको भी रनिंग ट्रेन की तरह इन बाबाओं की रनिंग संस्थान से लाभ प्राप्त करना है, तो भारतीय रेल के जनरल डिब्बों में आपका स्वागत है।
- मो. 7765954969


