कोर्ट के फैसले के बावजूद शरणार्थियों को सीमा से लौटाएगा जर्मनी
जर्मनी की सरकार का कहना है कि वह शरणार्थियों को सीमा से लौटाने की अपनी नीति जारी रखेगी. हाल ही में बर्लिन की प्रशासनिक अदालत ने जर्मनी की इस नीति के खिलाफ फैसला सुनाया है
जर्मनी की सरकार का कहना है कि वह शरणार्थियों को सीमा से लौटाने की अपनी नीति जारी रखेगी. हाल ही में बर्लिन की प्रशासनिक अदालत ने जर्मनी की इस नीति के खिलाफ फैसला सुनाया है.
नई सरकार के सत्ता संभालने के एक दिन बाद ही 7 मई को सरकार ने अनियमित आप्रवासन पर रोक लगाने का वादा किया था. हालांकि बर्लिन की प्रशासनिक अदालत ने सोमवार को फैसला सुनाया कि जो लोग जर्मनी में शरण लेने की इच्छा जाहिर करते हैं, उन्हें जर्मन सीमा पर से वापस नहीं भेजा जा सकता. इसके लिए पहले यह तय करना होगा कि यूरोपीय संघ के कथित डब्लिन सिस्टम के तहत उनके दावे की प्रक्रिया के लिए कौन देश जिम्मेदार है.
शरणार्थियों को रोकने पर अड़ी सरकार
कोर्ट के इस फैसले के कुछ घंटे बाद जर्मनी के गृह मंत्री अलेक्जांडर दोबरिंट ने कहा, "हम वापस भेजना जारी रखेंगे. हमें लगता है कि हमारे पास इसका कानूनी औचित्य है." सोमवार, 2 जून को कोर्ट का फैसला तीन सोमाली नागरिकों की अपील पर आया. पोलैंड की सीमा पर इसी साल 9 मई को एक ट्रेन स्टेशन पर इनका सामना सीमा चौकी अधिकारियों से हुआ था. इन लोगों ने जर्मनी में शरण लेने की इच्छा जताई थी. हालांकि उन्हें उसी दिन वापस पोलैंड भेज दिया गया.
अदालत का कहना है कि उन्हें वापस भेजना गैरकानूनी है और अदालत का फैसला ऐसे लोगों पर भी लागू होता है जिन्हें जर्मनी की सीमाओं से लौटाया जा रहा है. हालांकि अदालत ने यह भी कहा है कि "अपील करने वालों को यहां रहने की मांग करने की इजाजत नहीं है." कोर्ट के मुताबिक यूरोपीय संघ का कौन सा देश शरण के आवेदन के लिए जिम्मेदार है इसकी प्रक्रिया "सीमा के बाहर या फिर सीमा के करीब रह कर" पूरी की जा सकती है.
डब्लिन प्रक्रिया का क्या होगा
अदालत ने सरकार की इस दलील को खारिज कर दिया कि डब्लिन प्रक्रिया की अवहेलना की जा सकती है अगर यह "सार्वजनिक व्यवस्था और घरेलू सुरक्षा को बचाए रखने के लिए" जरूरी हो. अदालत का कहना है कि सरकार "सार्वजनिक सुरक्षा या व्यवस्था के लिए खतरा" दिखाने में नाकाम रही है जो इस तरह के कदम को उचित ठहरा सके.
गृह मंत्री दोबरिंट ने जोर देकर कहा कि सोमवार को आए फैसले का सीधा असर सिर्फ तीन सोमाली शरणार्थियों के मामले पर ही होगा. उन्होंने कहा कि वह चाहते हैं कि अदालत एक और प्रक्रिया शुरू करे जिसमें सरकार अपना पक्ष "ज्यादा मजबूती" से समझा सके. हालांकि अभी यह साफ नहीं है कि क्या यह कानूनी रूप से संभव है क्योंकि कोर्ट ने सोमवार को कहा कि उसका फैसला अंतिम है.
डब्लिन प्रक्रिया के तहत अनियमित आप्रवासी यूरोपीय संघ में प्रवेश के बाद सबसे पहले जिस देश में प्रवेश करते हैं, उनको वहीं खुद को रजिस्टर कराना होता है. अगर वो संघ के किसी दूसरे देश का रुख करते हैं तो ज्यादातर मामलों में उन्हें उनके पहले ठिकाने पर लौटा दिया जाता है.
शरणार्थियों पर नई सरकार की सख्ती
बिना दस्तावेज वाले शरणार्थियों को जर्मनी की सीमाओं से वापस भेजने की नीति नई सरकार ने बीते महीने कामकाज संभालने के तुरंत बाद शुरू की. हालांकि सत्ताधारी गठबंधन में शामिल सोशल डेमोक्रैटिक पार्टी के कुछ नेताओं ने सरकार की इस नीति का विरोध किया था. उनका कहना है कि यह नीति कानूनी रूप से सही नहीं है.
सरकार ने इस बात पर भी जोर दिया किवापस भेजना तात्कालिक कदम है और दीर्घकालीन समाधान यूरोपीय संघ की बाहरी सीमाओं पर सुरक्षा को बेहतर करना है. जर्मनी के गृह मंत्रालय के मुताबिक जर्मनी में 2,800 से ज्यादा लोगों को नई नीति लागू होने के बाद पहले दो हफ्तों में वापस भेजा गया. इनमें 138 ऐसे लोग भी शामिल हैं जो यहां शरण की अर्जी देना चाहते थे.
अनियमित आप्रवासन पर रोक लगाना चांसलर फ्रीडरिष मैर्त्स के चुनावी वादों में प्रमुख था. इस चुनाव में जर्मनी की धुर दक्षिणपंथी पार्टी एएफडी पहली बार 20 फीसदी से ज्यादा वोट हासिल कर दूसरे नंबर पर पहुंच गई. मैर्त्स का कहना है कि आप्रवसान को रोक कर ही एएफडी के बढ़ते प्रभाव को थामा जा सकता है.
सरकार की नई नीति का नतीजा
नई सरकार की इस नीति ने जर्मनी के पड़ोसियों को भी थोड़ा नाराज किया है. इसके साथ ही सीमापार आवाजाही करने वाले लोगों और सीमांत समुदायों पर भी इसका असर पड़ने की आशंका है. सोमवार को विदेश मंत्रालय के एक सूत्र ने समाचार एजेंसी एएफपी से इस बात की पुष्टि की कि फ्रांस के बर्लिन दूतावास ने मंत्रालय को एक पत्र भेज कर आप्रवासन पर देश की नीति साफ करने की मांग की है.
मैर्त्स की सरकार शरणार्थियों को वापस भेजने के साथ ही दो साल के लिए उन शरणार्थियों के परिवारों के यहां आने पर भी रोक लगाना चाहती है जिन्हें एक खास दर्जा मिला हुआ है. नई सरकार पिछली सरकार के लाए उस प्रावधान को भी खत्म करना चाहती है जिसके तहत जर्मनी में अच्छी तरह से रच बस जाने वाले विदेशी लोगों को 3 साल के भीतर ही नागरिकता देने की व्यवस्था की गई है. सरकार आप्रवासन नीति को भी सख्त बनाने की कोशिश में है जिसके बाद प्रवासियों के लिए भी कुछ मुश्किलें बढ़ सकती हैं.