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बगैर दस्तावेज वाले शरणार्थियों को सीमा से ही लौटाएगा जर्मनी

जर्मनी के आंतरिक मंत्री आलेक्जांडर डॉबरिंट ने कहा कि बगैर दस्तावेजों वाले शरणार्थियों को सीमा से ही वापस भेज दिया जाएगा, हालांकि गर्भवती महिलाओं और बच्चों को इसमें छूट दी जा सकती है

बगैर दस्तावेज वाले शरणार्थियों को सीमा से ही लौटाएगा जर्मनी
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जर्मनी के आंतरिक मंत्री आलेक्जांडर डॉबरिंट ने कहा कि बगैर दस्तावेजों वाले शरणार्थियों को सीमा से ही वापस भेज दिया जाएगा, हालांकि गर्भवती महिलाओं और बच्चों को इसमें छूट दी जा सकती है.

जर्मनी के नए चांसलर फ्रीडरिष मैर्त्स के नेतृत्व में बनी गठबंधन सरकार ने कहा है कि अब वो बिना दस्तावेजों के शरणार्थियों को नहीं स्वीकारेंगे. सीमा पर तैनात पुलिस को आदेश दिया गया है कि वो उन सभी आप्रवासियों को वापस भेजें जिनके पास दस्तावेज नहीं हैं, और उनको भी जो लोग जर्मनी से शरण की आशा कर रहे हैं. यह आदेश जर्मनी के आंतरिक मंत्री आलेक्जांडर डॉबरिंट ने दिया है.

2015 में दिए गए अंगेला मैर्केल की सरकार के निर्देश को रद्द करते हुए डॉबरिंट ने कहा कि नए आदेश का उद्देश्य अनियमित आप्रवास पर लगाम कसना है, क्योंकि ऐसे लोगों की संख्या बढ़ रही है. उन्होंने आगे कहा कि गर्भवती महिलाओं और बच्चों जैसे मामलों में नरमी बरती जाएगी.

2015 के निर्देशों को किया रद्द

जर्मनी की राजधानी बर्लिन में मीडिया से बात करते हुए डॉबरिंट ने कहा, "हम सीमा को बंद नहीं कर रहे, लेकिन अब हम उसे और कड़ाई से नियंत्रित करेंगे, जिस वजह से शरण के लिए अस्वीकृतियां बढ़ेंगी.”

उन्होंने आगे कहा, "हम धीरे धीरे इन अस्वीकृतियों की संख्या समेत सीमा पर नियंत्रण और ज्यादा बढ़ाएंगे. हम सुनिश्चित करेंगे कि धीरे धीरे सीमा पर ज्यादा पुलिस तैनात हो ताकि लोगों को आसानी से वापस भेजा जा सके.”

2015 में जर्मनी की चांसलर अंगेला मैर्केल ने एक बड़ा फैसला लिए था. निर्देश के तहत, बिना दस्तावेज वाले विकासशील देशों, खासकर उस समय युद्ध से जूझ रहे अफगानिस्तान, सीरिया और इराक, से आ रहे आप्रवासियों को जर्मनी में बिना किसी कागज के आने की सहूलियत दी गई थी. मैर्केल का कहना था कि उन्होंने यह फैसला राजनीतिक और मानवीय कारणों से लिया. जानकारों का मानना है कि इस फैसले ने पूरे यूरोप की राजनीति को नया रूप दिया और कई लोग इसके समर्थन और विरोध में भी आए. सालों से इस फैसले पर चर्चा हो रही है – इस पर कि यह फैसला कितना सही या गलत रहा. लेकिन बुधवार को इस निर्देश को रद्द कर दिया.

सीमा पर ज्यादा पुलिस बल की तैनाती

जर्मन अखबार बिल्ड के अनुसार, जर्मनी अनियमित आप्रवासन को रोकने के लिए सीमाओं पर 3,000 अतिरिक्त अफसरों को तैनात करने की योजना बना रहा है. सीमा पुलिस की संख्या 14,000 तक होने का अंदेशा है.

जीडीपी पुलिस यूनियन के अध्यक्ष आंड्रियास रोस्कॉफ ने राइनिशे पोस्ट अखबार को बताया कि निर्देश मिलने के बाद से ही पुलिस ने जर्मनी की थल सीमाओं पर तैनात अधिकारियों की संख्या बढ़ानी शुरू कर दी है.

न्यूज मैगजीन डेयर श्पीगल ने बताया कि डॉबरिंट ने नई नीति को लागू करने के लिए अफसरों को प्रतिदिन 12 घंटे तक की शिफ्ट में काम करने को भी कहा है.

आप्रवासन हमेशा से एक विवादास्पद मुद्दा

आप्रवासियों को वापस भेजना या उन्हें स्वीकार करना हमेशा से ही एक विवादास्पद मुद्दा रहा है. इस बार जर्मनी में मैर्त्स की रूढ़िवादी पार्टी और सोशल डेमोक्रैट पार्टी की गठबंधन सरकार का पेंच भी यहीं आ कर फंस गया है. गठबंधन एग्रीमेंट के तहत यह फैसला जर्मनी के पड़ोसी देशों के साथ बातचीत के बाद लेना चाहिए था. लेकिन इस फैसले की घोषणा सरकार के सत्ता में आने के पहले दिन ही आ गई.

इसे पहले 2015 जब शरणार्थियों के लिए जर्मनी ने अपने दरवाजे खोले थे, तब भी अंगेला मैर्केल की सरकार पर उंगलियां उठी थीं. उस समय निर्देश का विरोध कर रहे कई लोगों ने डर जताया था कि कहीं इस आप्रवासन से जर्मनी में अपराध और आतंकवाद बढ़ ना जाए. 2021 में गार्डियन को दिए एक इंटरव्यू में किंग्स कॉलेज लंदन के युद्ध अध्ययन विभाग में आतंकवाद विशेषज्ञ पीटर नॉयमन ने कहा था, "मुझे संदेह था कि क्या यह काम करेगा? लगभग दस लाख लोगों को यहां लाना जिनके बारे में हम बहुत कम जानते हैं? अंत में, समझ आया कि वे डर बेबुनियाद थे.”

लोगों के बीच धुर दक्षिणपंथी पार्टी एएफडी के बढ़ते समर्थन को देखते हुए मैर्त्स ने वादा किया था कि वो अब अआप्रवासन पर नकेल कसेंगे. जर्मनी दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा देश है जो शरणार्थियों को जगह दिए हुए है. यहां 25 लाख शरणार्थी रहते हैं, जिनमें यूक्रेन के दस लाख से अधिक शरणार्थी शामिल हैं. चुनाव से पहले कई जर्मन मतदाताओं ने कहा था कि वे चाहते हैं कि देश कम आप्रवासियों को स्वीकार करे.

2016 से जर्मनी यूरोपीय संघ की पुनर्वास योजना में हिस्सा लेता आ रहा है जिसके जरिए वो संयुक्त राष्ट्र द्वारा चुने गए शरणार्थियों को स्वीकार करता है. ज्यादातर लोग तुर्की, मिस्र, जॉर्डन और केन्या से आते हैं. हालांकि इस साल मार्च के मध्य से जर्मनी ने कोई भी शरणार्थी लेने से इंकार कर दिया है. चुनाव में हुए गठबंधन के बाद से ही जर्मनी ने यह कदम उठाया है.


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