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सिर्फ पैसे खर्च करने से नहीं हो जाएगा जर्मनी का विकास

जर्मनी के पास फिलहाल बुनियादी ढांचे को बेहतर बनाने के लिए बजट है. हालांकि बजट के खर्च को लेकर लोग चाहते हैं कि बुनियादी ढांचे के उस हिस्से पर सबसे पहले काम हो, जिसे बेहतर बनाए जाने की सबसे ज्यादा जरूरत है

सिर्फ पैसे खर्च करने से नहीं हो जाएगा जर्मनी का विकास
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जर्मनी के पास फिलहाल बुनियादी ढांचे को बेहतर बनाने के लिए बजट है. हालांकि बजट के खर्च को लेकर लोग चाहते हैं कि बुनियादी ढांचे के उस हिस्से पर सबसे पहले काम हो, जिसे बेहतर बनाए जाने की सबसे ज्यादा जरूरत है.

जर्मनी में बुनियादी ढांचे का नए सिरे से निर्माण किया जा रहा है. कुछ लोग इसे लेकर उत्साहित हैं और कुछ अब भी संशय में हैं. बर्लिन में एक्सप्रेस वे (ऑटोबान) पर बने एक अहम पुल को फिर बनाने के लिए तोड़ा जा रहा है. इसे तोड़ते मजदूरों को देख 65 साल के गुइडो कहते हैं, "ये काम काफी तेजी से हुआ. हमें अपने प्रोजेक्टों के समय से पूरा हो जाने की आदत नहीं है.”

यह विशाल पुल जर्मन राजधानी बर्लिन की एक अहम रिंग रोड का हिस्सा है. इसे साल 1963 में बनाया गया था और इसके कंक्रीट और स्टील के ढांचे में दशकों पहले ही एक दरार आ गई थी. लेकिन यह बहुत खतरनाक नहीं थी तो अभी तक काम चलाया जा रहा था. हाल ही में जब ये दरार चौड़ी हो गई और खतरा बढ़ा तो मार्च में इसे गिराने का काम शुरू किया गया. और अब यह मलबे में बदल रहा है.

कैसे पूरा हो दशकों से बाकी काम

पुल ध्वस्त किए जाने का घटनाक्रम हजारों लोगों ने एक इंटरनेट लाइव पर भी देखा. यह एक अहम घटना है क्योंकि इसके साथ ही जर्मनी में सैकड़ों यूरो के पुनर्निर्माण कार्यक्रम की शुरुआत हो रही है. हालांकि लोग मानते हैं कि इसे पहले ही हो जाना चाहिए था. यह पुल दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था के सामने मौजूद एक बड़ी समस्या का भी प्रतीक कहा जा सकता है. यह समस्या है, दशकों से खराब पड़े जर्मनी के बुनियादी ढांचे का बकाया काम, जिसे अब सैकड़ों अरब यूरो खर्च कर सुधारा जाना है.

जर्मनी की हजारों सड़कों और पुलों का जीवनकाल पूरा हो चुका है. इनमें से कई तो 1960 या 1970 के दशक में बने थे. इन सड़कों और पुलों की मरम्मत और पुनर्निर्माण के लिए कई वर्षों से बहुत कम खर्च किया गया था क्योंकि सरकारें किसी बड़े खर्च से बचती रहीं.

जर्मनी के नए चांसलर फ्रीडरिष मैर्त्स ने वादा किया है कि वो यूरोप की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था का चेहरा बदलेंगे. इसके तहत जर्मनी में नए रेलवे ट्रैक, स्कूली भवन बनाए जाएंगे और टेलिकॉम लाइनें बिछाई जाएंगी. देश की कमान संभालने से पहले ही मैर्त्स के गठबंधन ने पुरानी सरकार से 500 अरब यूरो का भारी-भरकम इंफ्रास्ट्रक्चर फंड पास करवा लिया था.

काफी दबाव के बाद आया बदलाव

जर्मनी वर्षों तक किसी बड़े खर्च से बचता रहा लेकिन अब यहां बड़े कदम उठाने की मांग हो रही है. लोग चाहते हैं कि खराब मोबाइल नेटवर्क, देर से चलती ट्रेनों, धीमे इंटरनेट और खराब सड़कों से उन्हें मुक्ति मिले. ऐसी मांगें तब और बढ़ गईं, जब पिछले साल सितंबर में, ड्रेसडन शहर में एक 400 मीटर लंबा पुल ढह गया. इसका बड़ा हिस्सा टूटकर एल्बे नदी में समा गया.

हादसा रात में हुआ, जिसके चलते लोगों की जान नहीं गई लेकिन इसने जर्मनी के बुनियादी ढांचे में आती दरार की समस्या को फिर से चर्चा में ला दिया और इसी साल संपन्न हुए देश के आम चुनावों में जर्मनी का बुनियादी ढांचा एक अहम मुद्दा भी बना.

काम की धीमी गति बड़ी समस्या

यूरोपियन फेडरेशन फॉर ट्रांसपोर्ट एंड एन्वायर्नमेंट के मुताबिक जर्मनी के पुलों की मरम्मत और पुनर्निर्माण के लिए करीब 100 अरब यूरो की जरूरत है. इनके मुताबिक जर्मनी के एक्सप्रेस वे और अहम सड़कों के साथ ही यहां के एक-तिहाई पुलों को बिल्कुल नए सिरे से बनाए जाने की जरूरत है.

हालांकि फेडरल कोर्ट ऑफ ऑडिट की मानें तो पिछली सरकार के दौरान इस दिशा में काफी धीमे काम हुआ. इससे काम की गति में तेजी लाने का दबाव बढ़ा है. फेडरल कोर्ट ऑफ ऑडिट के मुताबिक साल 2024 के लिए तय किए गए पुलों के पुनर्निर्माण प्रोजेक्ट में से 40 फीसदी ही पूरे किए जा सके.

कर्मचारियों की कमी और ब्यूरोक्रेसी की अड़चनें

नए सरकारी फंड को अगले 12 सालों में खर्च किए जाने की योजना है, जो इस काम में मदद करेगा. लेकिन कई स्थानीय राजनेताओं का कहना है कि सिर्फ पैसे खर्च करने से काम नहीं चलेगा.

बर्लिन से एक घंटे की दूरी पर स्थित कस्बे ब्रांडेनबुर्ग आन डेय हाफेल के मेयर श्टेफान शेलर को इस फंड से 9 करोड़ यूरो मिलने की उम्मीद है, फिर भी उनकी चिंता बनी हुई है. जो पैसे के बजाए जर्मनी की एक अन्य बड़ी समस्या को लेकर है. वो कहते हैं, "हमारे यहां योग्य प्रोजेक्ट मैनेजरों और इंजीनियरों की कमी है.” वो यह भी स्वीकार करते हैं कि ब्यूरोक्रेसी इस पूरी पुनर्निर्माण प्रक्रिया को धीमा कर सकती है.

लोगों के लिए मुश्किल हुआ यातायात

ब्रांडेनबुर्ग आन डेय हाफेल के बाहरी इलाके में एक भीड़भाड़ वाली क्रॉसिंग के ऊपर साल 2023 में एक नया पुल बनाया गया था. हालांकि निर्माण के बाद से यह अब तक इस्तेमाल में नहीं आ सका है. इसे खोले जाने से पहले, इसकी सुरक्षा से जुड़े बैरियर बनाए जाने जरूरी हैं. लेकिन अब ये प्रोजेक्ट साल 2026 तक खिंच चुका है क्योंकि कुछ कंपनियों ने शिकायत की है कि पुल का टेंडर जारी करने की प्रक्रिया का सही से पालन नहीं किया गया.

पास में ही सड़क बंद किए जाने से जाम में फंसी फ्रांसिस्का निराशा से कहती हैं कि उन्हें उम्मीद नहीं है कि वो कभी भी इस पुल का इस्तेमाल कर पाएंगी. 38 साल की फ्रांसिस्का एक हॉस्पिटल में काम करती हैं और अब उन्हें काम पर आने जाने में पहले के मुकाबले करीब एक घंटा ज्यादा समय लगता है.

पूर्वी जर्मनी के दौर के पुलों की हालत खराब

शहर के 70 पुलों में से ज्यादातर तब बने थे, जब शहर कम्युनिस्ट पूर्वी जर्मनी का हिस्सा था. इन पुलों में खराब स्टील का इस्तेमाल हुआ है. इनमें से कई तो भारी लोड की आवाजाही के लिए बंद भी किया जा चुका है. ऐसे में कई बार मालवाहक ट्रकों को दूसरा रास्ता लेना पड़ता है.

ब्रांडेनबुर्ग के लोगों में एक पुल को लेकर सख्त नाराजगी है. शहर के केंद्र में स्थित इस पुल का पुनर्निर्माण साल 2022 में पूरा करने का वादा किया गया था. जो अब भी पूरा नहीं हुआ है. शहर के मेयर श्टेफान शेलर बताते हैं कि इससे स्थानीय कारोबारियों को ट्रांसपोर्ट में बहुत मुश्किल होती है और शहर के अंदर प्रदूषण बढ़ता है.

‘दिखावे के बजाए बुनियादी काम हो'

यूरोपियन फेडरेशन फॉर ट्रांसपोर्ट एंड एन्वायर्नमेंट की रिपोर्ट लिखने वाले बेनेडिक्ट हाइल मानते हैं कि नए चांसलर फ्रीडरिष मैर्त्स ने समस्या से निपटने की मंशा दिखाई है. लेकिन हाइल के मुताबिक जर्मनी के नए यातायात मंत्री पैट्रिक श्नाइडर को अभी साल 2030 तक के लिए प्रस्तावित 4 हजार पुलों के पुनर्निर्माण के काम से ज्यादा कुछ करने की जरूरत है.

हाइल के मुताबिक मैर्त्स को नए हाइवे बनाने के दिखावटी प्रोजेक्टों को रोक देना चाहिए और बुनियादी जरूरतों पर काम करना चाहिए. मसलन यह सुनिश्चित करने पर कि निर्माण कंपनियों के पास लंबे समय तक काम करने के कॉन्ट्रैक्ट हों ताकि वो भविष्य की योजनाएं भी तैयार कर सकें.

जर्मनी में यूरोप की सबसे ताकतवर सेना बनाएंगे मैर्त्स

उनके मुताबिक जर्मनी की संघीय सरकार को सबसे पहले समस्या के हर पहलू पर विस्तार से विचार करना चाहिए. हाइल के मुताबिक, इसे लेकर मौजूद आंकड़े कई बार बहुत बुरी स्थिति में होते हैं. कई बार शहर प्रशासन को पुलों की स्थिति की जानकारी होती है लेकिन देश के स्तर पर किसी को पता नहीं होता कि पुल किस स्थिति में है


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