Top
Begin typing your search above and press return to search.

भारत के साथ पनडुब्बी बनाने को तैयार जर्मनी

भारतीय नौसेना की 11 पनडुब्बियां, 20 साल से भी ज्यादा पुरानी हैं. भारत इन्हें बदलना चाहता है. क्या जर्मनी भारत के साथ 5.2 अरब की यह डील फाइनल कर सकेगा.

भारत के साथ पनडुब्बी बनाने को तैयार जर्मनी
X

जर्मनी, भारत के साथ मिलकर छह पनडुब्बियां बनाने की डील करना चाहता है. सौदा 5.2 अरब डॉलर का है. भारतीय और जर्मन अधिकारियों के मुताबिक, चांसलर ओलाफ शॉल्त्स दो दिन की भारत यात्रा के दौरान इस डील को पक्का करना चाहेंगे. जर्मन चांसलर 25-26 फरवरी को नई दिल्ली और बेंगलुरू का दौरा कर रहे हैं.

भारत हथियारों के लिए अब भी रूस पर बहुत ज्यादा निर्भर है. पश्चिमी देश भारत की इस निर्भरता को कम करने के साथ साथ अरबों डालर का कारोबार करना चाहते हैं. हिंद महासागर क्षेत्र में चीन की बढ़ती ताकत को बैलेंस करने के लिए भारतीय नौसेना लंबे समय से नई और आधुनिक पनडुब्बियां हासिल करना चाहती है. फिलहाल भारतीय नौसेना के पास 16 कंवेंशनल सबमरीन हैं. इनमें से 11 बहुत पुरानी हो चुकी हैं. नई दिल्ली के पास दो परमाणु चालित पनडुब्बियां भी हैं.

भारत कई देशों के लिए आदर्श: जर्मन विदेश मंत्री

क्या है ज्वाइंट सबरीन प्रोजेक्ट

भारत कई दशकों से विदेशी हथियारों का सबसे बड़ा खरीदार रहा है. अब इस स्थिति को बदलने की पुरजोर कोशिश की जा रही है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी चाहते हैं कि भारत अपनी जरूरतों के ज्यादातर हथियार देश में बनाए. इसके लिए विदेशी साझेदारों की मदद ली जा रही है. जर्मन कंपनी थाइसेनक्रुप मरीन सिस्टम ( टीकेएमएस) ने भारतीय पनडुब्बी प्रोजेक्ट के लिए दावेदारी पेश की है. अब तक दो ही अंतरराष्ट्रीय कंपनियों ने दावेदारी पेश की है. जर्मन सरकार के एक सू्त्र के मुताबिक चांसलर शॉल्त्स अपनी भारत यात्रा के दौरान इस डील का समर्थन करेंगे.

जर्मनी की सीमंस कंपनी को भारत ने दिया अब तक का सबसे बड़ा ठेका

डील के तहत विदेशी पनडुब्बी निर्माता कंपनी को एक भारतीय कंपनी के साथ पार्टनरशिप कर भारत में ही ये पनडुब्बियां बनानी होंगी. भारत ने यह शर्त रखी है कि विदेशी कंपनी को फ्यूल बेस्ड एयर इंडिपेंडेंट प्रॉपल्शन (एआईपी) की बेहद जटिल तकनीक भी ट्रांसफर करनी होगी. इस शर्त की वजह से ज्यादातर विदेशी कंपनियों ने अपनी दावेदारी पेश नहीं की.

मई 2022 में नरेंद्र मोदी की पेरिस यात्रा से ठीक पहले फ्रांस की एक नेवल कंपनी ने प्रोजेक्ट से अपना नाम वापस ले लिया. कंपनी ने कहा कि वह 2021 में भारत सरकार द्वारा तय की गई शर्तों को पूरा करने में असमर्थ है. नाम न बताने की शर्त पर भारतीय रक्षा मंत्रालय के एक सूत्र ने कहा कि रूस के रोसोबोरोनएक्सपोर्ट और स्पेन का नावंतिया ग्रुप भी दौड़ से बाहर हो चुका है.

अब रेस में जर्मन कंपनी टीकेएमएस और दक्षिण कोरिया की देवू शिपबिल्डिंग एंड सबमरीन इंजनियरिंग कंपनी ही बचे हैं. टीकेएमएस हाल ही में नॉर्वे के साथ मिलकर ऐसी छह पनडुब्बियां बनाने का करार कर चुकी है.

जर्मन कंपनी शर्तें मानने को तैयार

समाचार एजेंसी रॉयटर्स ने इस मामले में भारतीय विदेश और रक्षा मंत्रालय से प्रतिक्रिया मांगी. इसका कोई जवाब नहीं मिला. जर्मन सरकार और टीकेएमएस ने भी प्रतिक्रिया देने से इनकार कर दिया. एक भारतीय कूटनीतिक स्रोत ने रॉयटर्स से कहा कि भारत जर्मनी से इस बात की गारंटी चाहता है कि ज्वाइंट मैन्युफैक्चरिंग का मतलब सिर्फ सप्लाई सपोर्ट न हो.

जर्मनी लंबे समय तक विवादित और हिंसाग्रस्त इलाकों में हथियार बेचने से बचता रहा है. लेकिन यूक्रेन युद्ध और तेजी से बदलते शक्ति संतुलन के बीच भारत को हथियार बेचने के मामले में जर्मनी नरम रुख अपनाने लगा है. जर्मन सरकार के अधिकारियों के मुताबिक जर्मनी की गठबंधन सरकार में भारत को हथियार बेचने पर कोई मतभेद नहीं हैं.

फरवरी 2023 की शुरुआत में जर्मन सरकार ने भारत के लिए आर्म्स एक्सपोर्ट पॉलिसी को लचीला किया. इस बदलाव के तहत भारत को जर्मन हथियारों की आपूर्ति आराम से की जा सकेगी. जर्मन सरकार के एक अधिकारी कहते हैं, "भारत रूसी हथियारों पर बहुत ज्यादा निर्भर है. हालात का ऐसा बने रहना हमारे हित में नहीं हो सकता."


Next Story

Related Stories

All Rights Reserved. Copyright @2019
Share it