Top
Begin typing your search above and press return to search.

मुस्लिम-बहुल एशियाई देशों के साथ संतुलन बिठाने की कोशिश कर रहा है जर्मनी

जर्मन विदेश मंत्री अनालेना बेयरबॉक हाल ही में मलेशिया के दौरे पर गईं

मुस्लिम-बहुल एशियाई देशों के साथ संतुलन बिठाने की कोशिश कर रहा है जर्मनी
X

जर्मन विदेश मंत्री अनालेना बेयरबॉक हाल ही में मलेशिया के दौरे पर गईं. इस दौरान इस्राएल पर जर्मनी का पक्ष अहम मुद्दा बना रहा. हालांकि अब भी दक्षिणपूर्व एशिया में जर्मनी के रिश्ते आर्थिक और सामरिक हितों पर ही आधारित हैं.

जर्मनी की विदेश मंत्री अनालेना बेयरबॉक, 12 जनवरी को कुआलालंपुर में मलेशिया के विदेश मंत्री मुहम्मद हसन से मिलीं. यह बेयरबॉक के हालिया विदेश दौरे का छठा दिन था. इस दौरान उन्होंने मध्यपूर्व से लेकर दक्षिणपूर्वी एशिया तक की यात्रा की.

कुआलालंपुर और गाजा के बीच करीब 7,600 किलोमीटर की दूरी है. तब भी, मलेशिया के विदेश मंत्री के साथ मुलाकात में इस्राएल-हमास युद्ध केंद्र बना रहा. बेयरबॉक ने कहा कि वह इस संघर्ष पर मुस्लिम-बहुल देशों का नजरिया बेहतर तरीके से समझना चाहती हैं. साथ ही, वह जर्मनी का मत भी स्पष्ट करना चाहती हैं. है. हालांकि अब भी गहरे मतभेद बरकरार हैं.

बेयरबॉक ने जर्मन अखबारों को बताया कि मलेशिया के ज्यादातर लोग इस बात से वाकिफ नहीं हैं कि इस्लामिक आतंकी संगठन हमास ने अब भी 130 लोगों को बंधक बनाया हुआ है. ये वो लोग हैं, जिन्हें 7 अक्टूबर को दक्षिणी इस्राएल पर किए गए क्रूर हमले के दौरान बंधक बनाया गया था. मुहम्मद हसन के साथ मुलाकात के बाद पत्रकारों से बात करते हुए बेयरबॉक ने कहा, "सबसे कम उम्र का बंधक बस एक साल का हुआ ही था."

इस्राएल के साथ मलेशिया के कूटनीतिक रिश्ते नहीं हैं. वह 'इंटरनेशनल कोर्ट ऑफ जस्टिस' में दक्षिण अफ्रीका द्वारा इस्राएल के खिलाफ लाए गए नरसंहार मामले का समर्थन करता है. मलेशिया ने हमास के आतंकवाद की भी निंदा नहीं की है.

मलेशिया की सरकार हमास को प्रतिरोध का एक वैध अभियान मानती है. जर्मनी, अमेरिका और यूरोपीय संघ समेत कई देश हमास को आतंकवादी संगठन मानते हैं. माना जाता है कि मलेशिया के प्रधानमंत्री अनवर इब्राहिम का हमास लीडरों के साथ करीबी संपर्क है. आसान भाषा में कहें, तो इस्राएल-हमास संघर्ष पर जर्मनी और मलेशिया का नजरिया बिल्कुल अलग है.

संतुलन बनाने की कोशिश

जर्मनी की विपक्षी पार्टी क्रिश्चयन डेमोक्रैटिक यूनियन (सीडीयू) के सांसद यूर्गन हार्ट ने डीडब्ल्यू से बातचीत में कहा कि जर्मन सरकार को मुस्लिम-बहुल देशों के आगे यह स्पष्ट कर देना चाहिए कि "मध्यपूर्व में इस्राएल, जर्मनी का सबसे करीबी सहयोगी है."

बेयरबॉक से पहले, साल 2005 में जर्मनी की तत्कालीन विदेश मंत्री यॉस्का फिशर मलेशिया के दौरे पर गई थीं. बेयरबॉक की तरह फिशर भी ग्रीन पार्टी से थीं. उसके बाद से ही मलेशिया, दक्षिणपूर्व एशिया में जर्मनी के मुख्य कारोबारी सहयोगियों में से एक है.

बेयरबॉक की रणनीति इस पक्ष को रेखांकित करने की थी कि जर्मनी, इस्राएल के अस्तित्व और अपनी रक्षा करने के अधिकार का समर्थन करता है. साथ ही, बेयरबॉक ने इस पक्ष को भी उभारा कि जर्मनी भी चाहता है कि गाजा में लोगों की तकलीफें खत्म हों. जर्मनी ने इस्राएल से अपील भी की है कि वह ज्यादा संयम बरते और फलीस्तीनी नागरिकों के सुरक्षा की कोशिश करे.

जर्मन विदेश मंत्री ने मध्यपूर्व की अपनी यात्रा के दौरान लोगों से सुनी कई बातें भी साझा कीं. बेयरबॉक ने हमास द्वारा बंधक बनाए गए इस्राएलियों के रिश्तेदारों से भी बात की. साथ ही, उन्होंने गाजा के फलीस्तीनी नागरिकों का इलाज कर रहे मिस्र के डॉक्टरों से भी बात की. उन्होंने वेस्ट बैंक में यहूदी सेटलर्स की हिंसा के शिकार फलीस्तीनी पीड़ितों की आपबीती जानी. इसके अलावा उन्होंने गाजा से लगे रफा बॉर्डर क्रॉसिंग के पार, मिस्र की तरफ वाले संयुक्त राष्ट्र के उन कर्मियों से भी बात की, जिनका कहना था कि जरूरतमंद लोगों तक पर्याप्त मदद नहीं पहुंच रही है.

दक्षिणपूर्व एशिया में जर्मनी की रणनीति

फेलिक्स हाइदुक, जर्मन इंस्टिट्यूट फॉर इंटरनेशनल एंड सिक्यॉरिटी अफेयर्स में एशिया विशेषज्ञ हैं. वह कहते हैं कि एशियाई देश, यहां तक कि मलेशिया जैसे मुसलमानों की बहुलता वाले देश भी इस्राएल-हमास युद्ध को, जर्मनी के साथ अपने संबंधों का लिटमस टेस्ट नहीं मानते हैं.

हाइदुक कहते हैं, "यह हिंद-प्रशांत इलाके के बीचों-बीच है, जिसे जर्मनी के पॉलिसी बनाने वाले 21वीं सदी में, वैश्विक आर्थिक तरक्की का गढ़ मानते हैं. साथ ही, वह इलाका भी जहां अमेरिका-चीन के बीच मुख्यतौर पर प्रतिद्वंद्विता होती है." हाइदुक यह भी कहते हैं कि दक्षिणपूर्व एशिया के साथ जर्मनी का बढ़ता आर्थिक संपर्क, चीन से इतर विकल्प बढ़ाने की योजना का हिस्सा है.

फिलीपींस की राजधानी मनीला की यात्रा के दौरान, बेयरबॉक ने फिलिपीन्स तट रक्षा विभाग को मदद देने की घोषणा की. साथ ही, चीन से अपनी विस्तारवादी नीति छोड़ने और अंतरराष्ट्रीय कानूनों के मुताबिक बर्ताव करने की भी अपील की. चीन ने तुरंत ही प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि बाकी देश क्षेत्रीय मामलों से दूर रहें.

करीब एक दशक बाद जर्मन विदेश मंत्री का फिलीपींस में यह पहला दौरा था. इस दौरान बेयरबॉक को इस्राएल पर जर्मनी का पक्ष स्पष्ट करने की जरूरत नहीं पड़ी क्योंकि फिलीपींस पहले ही हमास के हमले की निंदा कर चुका है. साथ ही, वह इस्राएल के आत्मरक्षा के अधिकार का भी समर्थन करता है.

सबसे पहले व्यापार

गाजा में जारी इस्राएल-हमास की लड़ाई, हालिया सालों में जर्मनी और दक्षिणपूर्वी एशिया के देशों के बीच कूटनीतिक तौर पर पहली अड़चन नहीं है. इससे पहले यूक्रेन पर रूस के हमले ने भी तनाव बनाया था. वियतनाम, मलेशिया और इंडोनेशिया ने संयुक्त राष्ट्र में रूसी हमले की निंदा नहीं की थी. इससे जर्मनी नाराज हुआ. हाइदुक कहते हैं कि इन असहमतियों का "यह मतलब नहीं कि बेयरबॉक इन देशों का दौरा ना करें."

हालांकि सीडीयू के सांसद यूर्गन हार्ट मानते हैं कि बेहतर व्यापारिक रिश्ते कायम करने की दिशा में बेयरबॉक के दौरे से मिले नतीजे "संतोषजनक नहीं हैं." उनका आरोप है कि "मौजूदा केंद्र सरकार में एकता की कमी इस अहम साधन में अड़चन डाल रही है." इसके बावजूद जर्मनी, दक्षिणपूर्वी एशियाई देशों के साथ रिश्ते बेहतर करने की कोशिश कर रहा है. कम-से-कम इस इलाके में राजनयिकों और अधिकारियों की यात्राएं तो यहीं संदेश देती हैं.

हाइदुक कहते हैं, "मुझे लगता है कि इस इलाके में विदेश नीति से जुड़े कई लोगों का विदेशी मामलों में बर्ताव करने का नजरिया काफी व्यावहारिक और बहुत तथ्यपरक है." यानी दक्षिणपूर्वी एशियाई देशों के साथ जर्मनी के रिश्ते इस्राएल, रूस और यूक्रेन पर केंद्रित नहीं हैं. पूरा ध्यान चीन, व्यापार और निवेश पर है. साथ ही, अपनी उपस्थिति से जर्मन विदेश मंत्री करीब एक दशक से बनी आ रही जर्मनी की अपेक्षाकृत दूरी को पाटने पर भी ध्यान दे रही हैं.


Next Story

Related Stories

All Rights Reserved. Copyright @2019
Share it