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दक्षिणपंथ और देश में उथल पुथल से चिंतित जर्मन राष्ट्रपति

जर्मनी के राष्ट्रपति बीते कुछ सालों में देश में बढ़ते दक्षिणपंथ, रूस के साथ यूरोप की तनातनी और जर्मन लोगों के सामने आ रही नई दिक्कतों से परेशान हुए हैं

दक्षिणपंथ और देश में उथल पुथल से चिंतित जर्मन राष्ट्रपति
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जर्मनी के राष्ट्रपति बीते कुछ सालों में देश में बढ़ते दक्षिणपंथ, रूस के साथ यूरोप की तनातनी और जर्मन लोगों के सामने आ रही नई दिक्कतों से परेशान हुए हैं.

जर्मनी राष्ट्रपतिफ्रांक-वाल्टर श्टाइनमायर ने 'वियर' यानि 'हम' शीर्षक वाली अपनी नई किताब में विविधता, उभरते दक्षिणपंथ, जलवायु परिवर्तन, रूस और युक्रेन युद्ध जैसे कई अहम मुद्दों पर बात की है. जर्मनी के राष्ट्रपति पद पर रहते हुए किताब लिखना आम बात नहीं है लेकिन फ्रांक-वाल्टर श्टाइनमायर ने यह कर दिखाया है. श्टाइनमायर पिछले सात साल से जर्मनी के राष्ट्रपति हैं.

श्टाइनमायर के अनुसार उनके इस फैसले के पीछे दो ऐतिहासिक कारण हैं. पहला, इस साल 30 मई को जर्मनी के संविधान की घोषणा के 75 साल पूरे होने वाले हैं. दूसरा इसी साल 9 नवंबर को बर्लिन की दीवार गिरने के 35 साल पूरे होने वाले हैं.

दक्षिणपंथ के उभार का डर

जर्मन राष्ट्रपति आम तौर पर देश से जुड़े मुद्दों में एक औपचारिक भूमिका निभाते हैं, हालांकि वह इन दिनों देश की स्थिति को लेकर असहज महसूस कर रहे हैं. कहा जा सकता है कि वह दक्षिणपंथ के उभार, लोगों की निराशा, लोकतंत्र को लेकर संदेह की स्थिति, आप्रवासन की अनसुलझी समस्याएं, कल्याणकारी राज्य और जलवायु परिवर्तन के खिलाफ जारी लड़ाई जैसे कई मुद्दों को लेकर चिंतित हैं.

उनकी किताब का टाइटल 'वियर' यानी हम है. किताब में उन्होंने लिखा है कि देश इस वक्त अनिश्चितताओं से घिरा है. वह लिखते हैं, "जर्मनी वह देश है जिसे हमेशा अप्रत्याशित की उम्मीद करनी चाहिए. एक ऐसा वायरस जिसने लोगों की जिंदगी को पंगु बना दिया, एक युद्ध जो सर्दियों में लोगों से घर गर्म करने की सुविधा छीन सकता है. ऐसी घटनाओं के कारण बुनियादी चीजों से भरोसा खत्म होता है."

क्या राष्ट्रपति की भूमिका लोगों को जोड़ने की नहीं है?

राष्ट्रपति श्टाइनमायर हमेशा जर्मनी के अलग अलग हिस्सों में जाते रहते हैं. वह छोटे शहरों और समुदायों में भी जाते रहते हैं ताकि वे उन लोगों से बात कर सकें जिनके विचार बेहद अलग हैं. आज उनके सामने दो सवाल हैं.

क्या देश का अध्यक्ष सामाजिक उथल पुथल और मौजूदा राजनीतिक विवादों पर ऐसे स्पष्ट विचार रख सकता है, जैसा उन्होंने अपनी किताब में किया है. या फिर उन्हें यहां भी सभी घटनाओं से इतर, समाज के हर स्तर पर एक पुल की तरह काम करना चाहिए

क्या श्टाइनमायर ने सुरक्षा की झूठी भावना पैदा करने की कोशिश की है

अगर राष्ट्रपति श्टाइनमायर अमेरिकी सुरक्षा और सस्ती रूसी गैस पर निर्भर खुशहाली और आरामदायक माहौल के बीच अगर जर्मनी की पुरानी गलतियों की ओर इशारा करते हैं तो क्या वह चीजों को बदल सकते हैं. एक विदेश मंत्री के तौर पर क्या उन्होंने एक लंबे समय तक यह सुनिश्चित किया था कि देश में सुरक्षा की एक झूठी भावना बनी रहे

2005 से 2009 तक और फिर 2013 से 2017 तक वह जर्मनी के सबसे वरिष्ठ राजनयिकों में से एक रहे. वह इस ओहदे पर तब थे जब रूस ने अंतरराष्ट्रीय कानून को तोड़ते हुए क्रीमिया पर कब्जा किया था.

मॉस्को की कड़ी आलोचना

श्टाइनमायर शायद इस बात की आलोचना करते कि जर्मनी के कई नेताओं ने मॉस्को से तब तक बातचीत जारी रखी थी जब तक यूक्रेन में युद्ध नहीं छिड़ गया. हालांकि वह लिखते हैं कि यह युद्ध मॉस्को की अन्यायी सत्ता को कट्टरपंथी बना रहा है. यह युद्ध आंशिक रूप से कट्टर और पंगु रूसी समाज को ऐतिहासिक गलतियों का हिस्सा बना रहा है.

लेकिन क्या ये संकेत बहुत पहले ही नजर नहीं आने लगे थे, खासकर तब जब वह विदेश मंत्री थे.

बहुजातीय और बहुलवादी समाज का समर्थन

जर्मनी के अधिकतर लोग किताब में लिखी गई कई बातों का समर्थन कर सकते हैं. जैसे कि जब वह लिखते हैं कि जर्मनी का समाज कभी भी एकरूपी नहीं रहा. यहां हमेशा अलग अलग देशों और संस्कृति के लोग आते रहे हैं. जो यहां आए हैं और यह उनका घर है, जिन्होंने जर्मनी की नागरिकता चुनी है वह किसी भी दूसरे नागरिक की तरह की बिल्कुल वैध नागरिक हैं.

हालांकि, दक्षिणपंथी ऐसे बयानों को अक्सर खारिज ही कर देते हैं. दक्षिणपंथ के बढ़ते उभार पर वह लिखते हैं, "हम में से कुछ लोग जबरदस्ती एकरूपता कायम करना चाहते हैं और उन नागरिकों को प्रवासी बना देना चाहते हैं जो इस ढांचे में फिट नहीं होते. ज्यादातर नागरिक ऐसी असंवैधानिक कल्पनाओं का समर्थन नहीं करते."

सोशल मीडिया की आलोचना

हालांकि, ऐसा मुमकिन है कि अब शायद कुछ लोग राष्ट्रपति श्टाइनमयार की सोच 'हम' से शायद सहमत ना हों और डिजिटल प्लेफॉर्म पर अपनी बनाई हुई दुनिया में एक अलग बहस कर रहे हों.

वह यहां एक समस्या की ओर इशारा करते हुए कहते हैं, "हम क्या कह सकते हैं अब इसकी सीमाएं बहुत दूर जा चुकी हैं. राजनीतिक भाषा बेहद निर्मम हो चुकी है जिसे किसी का डर नहीं है. साथ ही कई ऐसे लोग भी हैं जो यह मानते हैं कि वे जो सोचते हैं वैसा खुल कर नहीं कह सकते क्योंकि उनके हर एक शब्द पर हमला किए जाने की संभावना होती है."

श्टाइनमायर चाहते हैं कि वह उन समूहों को इकट्ठा करें और उनका भरोसा सरकार पर फिर से कायम करें. वह लिखते हैं, "यह पता होना जरूरी है कि जर्मनी के बदलते परिदृश्य के लिए सिर्फ कुछ कुंठित और दुर्भावनाओं से भरे नेताओं को दोष नहीं दिया जा सकता. कोई भी जर्मन नेता दुनिया को हमारे समर्थन में पलटने का आदेश नहीं दे सकता. "

क्या है जर्मनी के राष्ट्रपति की भूमिका

जर्मनी के राष्ट्रपति की ताकतें भले ही सीमित हैं लेकिन श्टाइनमायर ने अपनी इस किताब के जरिये अपने ओहदे का इस्तेमाल चरम सीमा तक कर लिया है.

जर्मनी के भविष्य के लिए उनकी चिंता एक तरफ है लेकिन इस किताब में देश के ईमानदार विश्लेषण का पहलू गायब नजर आता है. जर्मनी एक कल्यणाकारी और संवैधानिक राज्य के साथ साथ आज भी दुनिया के सबसे अमीर देशों में शामिल है.

किताब के पाठकों को ऐसा लग सकता है कि श्टाइनमायर शायद इस मुश्किल दौर में देश की मदद ना कर पाने के कारण निराश हैं. लेकिन बतौर राष्ट्रपति उनकी भूमिका औपचारिक है, इससे फर्क नहीं पड़ता कि उनके आस पास की दुनिया में कितनी उथल पुथल मची हुई है.


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