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गांधीजी हमारे नैतिक पथ-प्रदर्शक : कोविंद

राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने मंगलवार को यहां कहा कि राष्ट्रपिता महात्मा गांधी देश के नैतिक पथ-प्रदर्शक रहे हैं, आज भी हैं, और आगे भी रहेंगे

गांधीजी हमारे नैतिक पथ-प्रदर्शक : कोविंद
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नई दिल्ली। राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने मंगलवार को यहां कहा कि राष्ट्रपिता महात्मा गांधी देश के नैतिक पथ-प्रदर्शक रहे हैं, आज भी हैं, और आगे भी रहेंगे। उन्होंने कहा कि स्वाधीनता दिवस का हमेशा ही विशेष महत्व होता है, लेकिन इस बार एक खास बात यह है कि कुछ ही सप्ताह बाद दो अक्टूबर से महात्मा गांधी की 150वीं जयंती के समारोह शुरू हो जाएंगे। कोविंद ने कहा, "गांधीजी ने केवल हमारे स्वाधीनता संग्राम का नेतृत्व ही नहीं किया, बल्कि वह हमारे नैतिक पथ-प्रदर्शक भी थे और सदैव रहेंगे। भारत के राष्ट्रपति के रूप में मुझे अफ्रीका के देशों की यात्रा करने का सुअवसर प्राप्त हुआ। विश्व में, हर जगह, जहां-जहां पर मैं गया, सम्पूर्ण मानवता के आदर्श के रूप में गांधीजी को सम्मान के साथ स्मरण किया जाता है।"

राष्ट्रपति ने कहा, "हमें गांधीजी के विचारों की गहराई को समझने का प्रयास करना होगा। उन्हें राजनीति और स्वाधीनता की सीमित परिभाषाएं मंजूर नहीं थीं। जब गांधीजी और उनकी पत्नी कस्तूरबा चंपारण में नील की खेती करने वाले किसानों के आंदोलन के सिलसिले में बिहार गए तो वहां उन्होंने काफी समय लोगों, विशेष रूप से महिलाओं और बच्चों को स्वच्छता और स्वास्थ्य की शिक्षा देने में लगाया। चंपारण में और अन्य बहुत से स्थानों पर, गांधीजी ने स्वयं, स्वच्छता अभियान का नेतृत्व किया। उन्होंने साफ-सफाई को, आत्म-अनुशासन और शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य के लिए आवश्यक माना।"

राष्ट्रपति ने कहा, "उस समय बहुत से लोगों ने यह सवाल उठाया था कि इन सब बातों का भला स्वाधीनता संग्राम के साथ क्या लेना-देना है? महात्मा गांधी के लिए स्वाधीनता के अभियान में उन बातों का बहुत महत्व था। उनके लिए वह केवल राजनैतिक सत्ता प्राप्त करने का संग्राम नहीं था, बल्कि गरीब से गरीब लोगों को सशक्त बनाने, अनपढ़ लोगों को शिक्षित करने, तथा हर व्यक्ति, परिवार, समूह और गांव के लिए सम्मान के साथ जीवन जीने के अधिकार का संघर्ष था।"

कोविंद ने कहा, "गांधीजी स्वदेशी पर बहुत जोर दिया करते थे। उनके लिए यह भारतीय प्रतिभा और संवेदनशीलता को बढ़ावा देने का प्रभावी माध्यम था। वह दुनिया के अन्य हिस्सों में प्रचलित चिंतन-धाराओं के बारे में सजग थे। वे यह मानते थे कि भारतीय सभ्यता के अनुसार, हमें पूर्वाग्रहों से मुक्त होकर, नए-नए विचारों के लिए, अपने मस्तिष्क की खिड़कियां खुली रखनी चाहिए। यह स्वदेशी की उनकी अपनी सोच थी। दुनिया के साथ हमारे सम्बन्धों को परिभाषित करने में -हमारी अर्थव्यवस्था, स्वास्थ्य, शिक्षा, सामाजिक आकांक्षाओं और नीतिगत विकल्पों के चयन में- स्वदेशी की यह सोच आज भी प्रासंगिक है।"

उन्होंने कहा, "इस स्वाधीनता दिवस के अवसर पर, हम सब भारतवासी अपने दिन-प्रतिदिन के आचरण में उनके द्वारा सुझाए गए रास्तों पर चलने का संकल्प लें। हमारी स्वाधीनता का उत्सव मनाने, तथा भारतीयता के गौरव को महसूस करने का इससे बेहतर कोई और तरीका नहीं हो सकता।"


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