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गांधी : युग से आगे तक

सर्वसुलभ, प्राकृतिक समुद्री जल से बने 'नमक' को जो सभी घरों में विद्यमान है

गांधी : युग से आगे तक
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- शैलेन्द्र भाटिया

सर्वसुलभ, प्राकृतिक समुद्री जल से बने 'नमक' को जो सभी घरों में विद्यमान है, भी एक आन्दोलन का प्रतीक बन सकता है, यह गांधी ही कर सकते थे। एक मुठ्ठी नमक उठा कर नमक कानून तोड़ने की यह घटना सभी भारतीयों को एकसूत्र में बांधने वाली घटना थी। क्या कोई देश बिना रक्त क्रांति के देश में स्वतंत्रता या तानाशाह से मुक्ति पा सकता है? इस यक्ष प्रश्न का हल महात्मा गांधी बन कर उभरे।

श्रेयान स्वधर्मो विगुण: परधर्मात्सवनुश्ठितात्।
स्वधर्मे निधनं श्रेय: परधर्मो भयावह:।।

अर्थात ऊंचे परधर्म से नीचा स्वधर्म अच्छा है। स्वधर्म में मौत भी अच्छी है, परधर्म भयावह है। गीता के उक्त श्लोक का उल्लेख बापू गांधी ने अपनी आत्मकथा 'सत्य के प्रयोग' में करते हुए कहा है कि देशभक्त को देश सेवा के एक भी अंग की यथासम्भव उपेक्षा नहीं करनी चाहिये। गांधी का आविर्भाव एक युग का आविर्भाव है। बचपन में 'श्रवण-पितृभक्ति नाटक' और हरिश्चन्द्र की कथा को आत्मसात करने वाले मोहनदास ने पग-पग प्रयोग किये एवं सत्य को चुनते गये। विलायत में आर्नल्ड का 'गीता जी' का अंग्रेजी अनुवाद पढ़ने वाले मोहनदास को 'गीता' के इस श्लोक ने एक रास्ता दिखाया -

ध्यायतो विशयान्पुंस: संगस्तेशूपजायते
संगात्संजायते काम: कामात्क्रोधो भिजायते।।
क्रोधाद् भवति सम्मोह: सम्मोहत्स्मृतिविभ्रम:।
स्मृतिभ्रंषाद् बुद्धिनाषो बुद्धिनाषात्प्रणष्यति।।

अर्थात विषयों का चिन्तन करने वाले पुरुष को उन विषयों में आसक्ति पैदा होती है, फिर आसक्ति से कामना पैदा होती है और कामना से क्रोध पैदा होता है। क्रोध से मूढ़ता पैदा होती है, मूढ़ता से स्मृति का लोप होता है और स्मृति लोप से बुद्धि नष्ट होती है, जिसकी बुद्धि नष्ट हो जाती है, उसका स्वयं का नाश हो जाता है। उपरोक्त दोनों श्लोक गांधी जी के अन्तर्मन में अन्त तक समाया रहा एवं एक पथ प्रदर्शक की तरह कार्य करता रहा। गांधी जी 10 जून सन् 1891 को बैरिस्टर बने थे। मोहनदास सितम्बर सन् 1888 में जब विलायत में बैरिस्टर पढ़ने के लिये रवाना हुए तो उनकी उम्र मात्र 18 वर्ष थी।

इस युवावस्था में ही इन्होंने एडविन आर्नल्ड की 'गीता' व 'बुद्धिचरित' पढ़ा, मैडम बलवास्तकी की पुस्तक 'की टू थियोसाफी', बाईबिल (ओल्ड टेस्टामेण्ट एवं न्यू टेस्टामेण्ट) पढ़ी, यहीं पर इन्होंने ईसा के 'गिरि-प्रवचन' की 'गीता' से तुलना की। '' जो तुझसे कुर्ता मांगे, उसे अंगरखा भी दे दे, ' जो तेरे दाहिने गाल पर तमाचा मारे, बायों गाल भी उसके आगे कर दे' के संबंध में पढ़कर ये यहीं आनन्दित हुए। यहीं पर इन्होंने कार्लाइल की 'हीरो एण्ड हीरो वरशिप' पढ़कर पैगम्बर हजरत मौहम्मद के जीवन से अवगत हुये। नास्तिकता व आस्तिकता के बीच द्वंद भी इसी युवावस्था में विलायत रहने के दौरान हुआ। यहीं पर इन्होंने स्तुति, उपासना, प्रार्थना के संबंध में ज्ञान प्राप्त किया। लैटिन व फ्रेंच भाषा के जानकार मोहनदास ने यहीं पर ब्रम का 'कामन-ला', स्नेल की 'इक्विटी', विलियम्स और एडव्रर्ज की 'स्थावर संपत्ति', गुदीप की 'जंगम संपत्ति' और मेडन का 'हिन्दू-ला' पढ़ा। विलायत में बैरिस्टर की शिक्षा ने श्रवण कुमार, हरिश्चन्द्र, रामायण का ज्ञान रखने वाले मोहनदास को जहां विश्व के अनेक धर्मों से रूबरू कराया वहीं आधुनिक कानून की पढ़ाई का समन्वय कराकर एक 'तार्किक' मोहनदास का उदय हुआ।

मोहनदास बैरिस्टर बनकर 12 जून सन् 1891 में 'आसाम' जहाज से, भारत के लिए रवाना हुए। अब मोहनदास लौटे तो 22 वर्ष के थे और फिरोजशाह मेहता या बदरूद्दीन तैय्यब जी जैसे कड़क वकील बनना चाहते थे। परन्तु मि. फ्रेडरिक पिंकट ने कुछ व्यवहारिक ज्ञान लेने के लिये और मेलेसन की पुस्तक ' सन् 1857 के गदर की' किताब पढ़ने की सलाह दी। भारत लौटने पर पहला मुकदमा 'ममीबाई' का मिला। मुकदमें लड़ने की हिम्मत न आने व जज के सामने घबराकर मुकदमा छोडकर मेहनताना के 30 रूपये लौटाने वाले मोहनदास देश से अंग्रेजों को भगाने का सबसे बड़ा मुकदमा (आन्दोलन) लड़ेंगे, यह किसी को आभास नही था।

मोहनदास पोरबन्दर की एक मेमन फर्म का दक्षिण अफ्रीका के चालीस हजार पौण्ड के दावे का मुकदमा लडने वाले वकील-बैरिस्टर के मदद के लिये दादा अब्दुल्ला के साझी सेठ अब्दुल करीम के प्रस्ताव पर द. अफ्रीका जाने के लिये राजी हुये। यह एक प्रकार की नौकरी थी, बदले में निवास तथा भोजन खर्च के अलावा 105 पौण्ड मिलना था। मोहनदास अप्रैल सन् 1893 में जब द. अफ्रीका गये तो 24 वर्ष के थे, जब लौटे तो 46 वर्ष के थे। 22 वर्ष द. अफ्रीका प्रवास रंगभेद के कड़वे अनुभवों से शुरू हुआ था जो बहुत कुछ भारत में प्रचलित छुआछूत जैसा ही था। नेटाल की राजधानी मेरित्सबर्ग में रेल के प्रथम श्रेणी का टिकट होने के बावजूद भी गोरे-काले के भेद के आधार पर ट्रेन से उतार देने की घटना मोहनदास को अपने अधिकारों के लिये लड़ने की सबसे बड़ी प्रेरक घटना बनी। सन् 1893 के बाद बीच में गांधी जी सन् 1896, सन् 1901 में भारत लौटे थे। भेंट में मिली वस्तुओं व कीमती गहनों को कस्तूरबा से लेकर ट्रस्टियों के हवाले कर बैंक में रखने की घटना एक उल्लेखनीय घटना है।

इन्होंने इसे इस धारणा से लौटा दिया था कि कौम की सेवा मैं पैसे लेकर नहीं करता। अपने राजनीतिक गुरू गोपाल कृष्ण गोखले के हस्तक्षेप से कलकत्ता के कांग्रेस अधिवेशन में प्रवेश पाने वाले गांधी आने वाले दिनों में देश के पर्याय बनने वाले हैं, इसका किसी को रंचमात्र भी यकीन नहीं था। गाय-भैंस का दूध त्याग कर केवल बकरी का दूध पीने वाले गांधी, मिट्टी के प्रयोग से पेट का कब्ज दूर करने वाले गांधी, सुबह का ब्रेकफास्ट न करने वाले गांधी, ज्ञान के लिये अनेकोनेक पुस्तकों का अध्ययन करने वाले गांधी अब मोहनदास से बदलकर मि0 गांधी हो चुके थे, वे पहचाने जाने लगे थे। देखने वालों की भीड जमा होनी शुरू हो चुकी थी। द. अफ्रीका अब आन्दोलन की नर्सरी बन चुका था। नये नये प्रयोग गांधीजी शुरू कर चुके थे। गांधी जी का कहना था कि सत्य की शोध के मूल में अहिंसा है। जब तक अहिंसा हाथ में नहीं आती, तब तक सत्य मिल ही नहीं सकता।

'यंग इंडिया', 'नवजीवन' व इण्डियन ओपिनियन जैसे समाचार पत्रों से अपने मौलिक विचार रखकर 'सत्याग्रह' की लड़ाई प्रारम्भ करने वाले गांधी जी कलम की शक्ति व इसके निरंकुशता को भलीभांति जानते थे। रस्किन बाण्ड की पुस्तक 'अण्टू दिस लास्ट' ने ऐसा प्रभाव डाला कि यह 'सर्वोदय' के जन्म का कारण बन गया। गांधीजी सर्वोदय के सिद्धान्त में निम्न को निहित मानते थे-

1. सबकी भलाई में हमारी भलाई निहित है।
2. वकील और नाई के काम की कीमत एक सी होनी चाहिये, क्योंकि आजीविका का अधिकार सबको समान है।
3. सादा मेहनत-मजदूरी का, किसान का जीवन ही सच्चा जीवन है।

भारतीय इतिहास में तीन महत्वपूर्ण वर्ष है, सन् 1757, सन् 1857 एवं सन् 1947। अंग्रेजो ने सन् 1757 से सन् 1947 तक कुल 190 वर्षों तक हिन्दुस्तान पर शासन किये। इन 190 वर्षों में से 158 वर्ष ऐसे समय में राज्य किया था, जब गांधी एक आन्दोलन बन नहीं उभरे थे। जब गोखले के निमंत्रण पर गांधीजी सन् 1915 में हिन्दुस्तान पहुंचे तो यह एक बड़ी और उल्लेखनीय घटना थी।

उल्लेखनीय इसलिये कि स्वतंत्रता के लिये नरम-गरम दल अपने-अपने ढंग से लड़ाई लड़ रहे थे, कई क्रान्तिकारी फांसी पर झूल गये थे, तो कई जगह करों को न देने के लिये विद्रोह हो रहा था, पर पूरे देश में स्वतंत्रता के लिये एकल नेतृत्व या अखिल भारतीय नेतृत्व किसी एक नेता को प्राप्त नहीं था। गांधी के आगमन से एक आन्दोलन के लिए एक पृष्ठ भूमि का आधार तैयार होना शुरू हुआ। क्रान्तिकारी विचार के देशभक्तों ने भी गांधीजी के व्यक्तित्व के सामने अपनी स्वीकारोक्ति दी।

सन् 1915 से लेकर भारत छोड़ो आन्दोलन सन् 1942 तक 27 वर्षों के आन्दोलन अवधि में गांधी कई रूपों में अवतरित हुए। भारतीयों के मन को टटोलना, आन्दोलन की गति को देखना, आन्दोलन के लिये उचित समय का इंतजार करना, आन्दोलन के लिये ऊर्जा बनाये रखना, आन्दोलन के लिये ऊर्जा की पहचान करना आदि कई ऐसे विशिष्ट गुण थे, जो गांधी जी को अन्य से अद्वितीय बनाते है।

आन्दोलन के इस पारखी प्राणी ने पूरे देश को एक कर दिया था। दक्षिण भारत से लेकर उत्तर भारत तक अब एक भारत, एक आवाज, एक आन्दोलन बन गया था। चम्पारन सत्याग्रह, खेडा आन्दोलन, असहयोग आन्दोलन, सविनय अवज्ञा के लिये दाण्डी मार्च, भारत छोड़ो आन्दोलन गांधी जी द्वारा विभिन्न समय काल परिस्थिति में चलाये गये ऐसे आन्दोलन थे, जिसने स्वतंत्रता के लिये मार्ग प्रशस्त किये। सर्वसुलभ, प्राकृतिक समुद्री जल से बने 'नमक' को जो सभी घरों में विद्यमान है, भी एक आन्दोलन का प्रतीक बन सकता है, यह गांधी ही कर सकते थे। एक मुठ्ठी नमक उठा कर नमक कानून तोड़ने की यह घटना सभी भारतीयों को एकसूत्र में बांधने वाली घटना थी।

क्या कोई देश बिना रक्त क्रांति के देश में स्वतंत्रता या तानाशाह से मुक्ति पा सकता है? इस यक्ष प्रश्न का हल महात्मा गांधी बन कर उभरे। पूरा विश्व एक नया पाठ पढ़ रहा था कि 'सत्याग्रह' के बल पर अपनी बात मनवाई जा सकती है, शान्तिपूर्वक उपवास रखकर आन्दोलन करने से अपने हक की लड़ाई लड़ी जा सकती है, यह एक क्रान्तिकारी विचार था। क्रांतिकारी इसलिये कि सुविधाहीन कई देशों में 20वीं सदी के प्रारम्भ में स्वतंत्रता की बात वो भी, बिना रक्तपात के सोचना एक आश्चर्य से कम नहीं था। कई देशों में नये चमकने वाले सूर्य की रोशनी का केन्द्र महात्मा गांधी बने। चरखा, खादी, बकरी, गांव, हरिजन, किसान, उपवास, सर्वोदय, अहिंसा, सत्याग्रह आदि शब्दों में पिरोये हुए महात्मा गांधी ने गरिमापूर्ण जीवन जीने एवं दूसरे की गरिमा का सम्मान करने के लिये एक प्रकार का 'कोड ऑफ कन्डॅक्ट' रचा है। आज भारत विश्व में जो कुछ नामों से जाना जाता है, उसमें महात्मा गांधी एक प्रमुख नाम है। मेरे विचार से गौतम बुद्ध के बाद यदि किसी एक भारतीय व्यक्ति को सारा विश्व जानता है, तो वह महात्मा गांधी है। अपने युग से कई युग आगे तक।
(लेखक, विशेष कार्याधिकारी यमुना एक्सप्रेस-वे औद्योगिक विकास प्राधिकरण)


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