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जगह-जगह बिक रहे केमिकल से पके फल

शहर में केमिकल से पकाए गए और सड़े-गले फलों की बिक्री धड़ल्ले से हो रही है, जो जनस्वास्थ्य के लिए काफी खतरनाक है......

जगह-जगह बिक रहे केमिकल से पके फल
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सड़े-गले फलों से पटा पड़ा है बाजार,खाद्य एवं औषधि विभाग ने अभी तक नहीं की कोई कार्रवाई

बिलासपुर। शहर में केमिकल से पकाए गए और सड़े-गले फलों की बिक्री धड़ल्ले से हो रही है, जो जनस्वास्थ्य के लिए काफी खतरनाक है, लेकिन खाद्य एवं औषधि विभाग न तो फल व्यापारियों के दुकानों की जांच कर रहा है न कोई कार्रवाई, जबकि कुछ समय पूर्व राजधानी में फलों को केमिकल से पकाकर बेचने वाले व्यवसायियों पर बड़े पैमाने पर कार्रवाई की गई थी। बारिश का मौसम शुरू होने वाला है और शहर के हर क्षेत्र में सड़े-गले फल बिक रहे हैं। लेकिन विभाग गहरी नींद में सोया हुआ है। रास्ते में उपलब्ध हो जाने के कारण लोग खरीदकर इसका सेवन कर रहे हैं।

शहर में सड़े-गले फलों की बिक्री बेरोकटोक हो रही है, जिससे लोगों का स्वास्थ्य बिगड़ने का खतरा बढ़ गया है। औषधि प्रशासन विभाग के अधिकारी इस ओर से आंखें मुंदे हुए हैं। दुकान हो या ठेला संचालक सड़े-गले फलों की बिक्री बिल्कुल नहीं कर सकते, मगर सड़े-गले फलों की धड़ल्ले से बिक्री हो रही है। इससे लोगों के स्वास्थ्य को खतरा पैदा हो गया हैै।

प्राप्त जानकारी के अनुसार खाद्य औषधि विभाग शहर में फलों की दुकानों ठेले वालों के फलों की जांच नहीं करती है जबकि दुकानदार ठेले व्यापारी गले फलों की बिक्री करते हैं। कम कीमत में मिलने के कारण फल व्यवसायी सड़े-गले फलों का व्यापार करते हैं। जिससे मनुष्य के शरीर को काफी नुकसान पहुंचता है। फल बहुत जल्दी खराब हो जाते हैं तीन से दस दिनों तक खराब नहीं होते उसके बाद फलों में सड़न शुरू हो जाती है मगर फलों के थोक व्यापारी खराब फलों को बाजार में चिल्हर व्यापारी को बेचने दे देते हैं। थोक व्यापारियों को सड़े गले फलों के कारण काफी नुकसान होता है। लेकिन थोक व्यापरी नुकसान से बचने के लिए इसे सस्ते में बेच रहे हैं। वहीं फलों को जल्दी पकाने और खराब होने से बचाने केमिकल का उपयोग किया जाता है। लोगों को केमिकल से पके फलों के सेवन से नुकसान अधिक होता है।

केमिकल से बदल जाता है स्वाद
केमिकल में पकाने के कारण फलों का स्वाद बदल जाता है। लोगों को केमिकल से पके फलों के कारण नुकसान पहुंच रहा है। व्यापारी फलों को पकाने केमिकल का उपयोग अधिक करते हैं। लेकिन खाद्य औषधि विभाग थोक व्यापारियों के फलों की जांच नहीं करता है। शासन ने फलों को पकाने के लिए केमिकल के उपयोग का मापदंड नियम तय कर रखा है। फल व्यापारी इसका पालन नहीं करते। केमिकल से फल के पकाने का समय होता है मगर फलों को बाजार में बेचने के लिए अधिक केमिकल डालकर जल्दी पकाया जाता है। खाद्य औषधि विभाग फलों के सैम्पलों की जांच नहीं करता है। विभाग के अफसर व्यापारियों से संबंधों के कारण कार्रवाई नहीं करता। फल का उपयोग हर वर्ग के लोग करते हैं पर रोज फलों का व्यापार लाखों में होता है। खाद्य औषधि विभाग को लोगों की सेहत से कोई मतलब नहीं रह गया है। जबकि कुछ दिन पहले राजधानी रायपुर में फलों की दुकानों में जांच अभियान चलाया गया था। सड़े फलों को जब्त कर लिया गया था। इससे फल व्यापारियों को लाखों का नुकसान हुआ था परंतु शहर में खाद्य औषधि विभाग जांच अभियान नहीं चला रहा है। बरसात का मौसम सिर पर है और केमिकल युक्त सड़े गले फल धड़ल्ले से बिक रहे हैं।

फलों के भाव
आम 70 से 90 रूपए किलो, लिची 100 रूपए, संतरा 100 रूपए, सेब 200 से 230 रू. केला 30 से 50 रू. दर्जन, मुसब्बी 100 रू., आलू बुखारा 100 रू., अनार 150 से 200 रू.अनानस 100 से 150 रू. अंगूर 60 से 80 रू।

यहां से आते हैं फल
आम आंध्रप्रदेश और उत्तरप्रदेश से आते हैं। लिची उत्तराखण्ड, संतरा महाराष्ट्र, सेब कश्मीर और शिमला से कले जशपुर और महाराष्ट्र, मुसब्बी महाराष्ट्र व उत्तराखंड, आलू बुखारा उत्तरप्रदेश, बंगाल, अनानस झारखंड, अनार महाराष्ट्र और जशपुर, अंगूर महाराष्ट्र से शहर आता है।


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