ललित सुरजन की कलम से- वह अफसर कहाँ है?
पैंतीस साल पहले देखी फिल्म 'सूखा' का अंतिम दृश्य याद आता है

'पैंतीस साल पहले देखी फिल्म 'सूखा' का अंतिम दृश्य याद आता है। फिल्म का युवा नायक जो किसी सूखाग्रस्त जिले का कलेक्टर है, अपने साथी से क्षोभ भरे स्वर में कहता है-'आई हेट पॉलिटिक्स'।
जहां तक मुझे याद आता है, फिल्म यहां समाप्त हो जाती है। इन पैंतीस सालों के दौरान इस अंतिम संवाद में निहित भावना में यदि कोई परिवर्तन हुआ है तो यही कि राजनीति के प्रति जनता के मन में संदेह व अविश्वास की भावना कुछ और गहरी हो गई है।
इसका स्वाभाविक परिणाम यह भी हुआ है कि राजनीति जिनका पेशा है याने राजनेता, उनके प्रति भी जनमानस में घृणा व अविश्वास पहले से अधिक प्रबल हुआ है। विगत बीस-पच्चीस सालों के दौरान बनी अनेक फिल्मों में इसके प्रमाण हमें मिलते हैं।
मेरी राय में यह स्थिति दुखदायी व चिंताजनक है। मेरी चिंता के एकाधिक कारण हैं। पहली बात तो यही कि जनतांत्रिक समाज में राजनीति व राजनेताओं के प्रति ऐसा क्यों होना चाहिए? राजतंत्र, तानाशाही, सैन्य शासन में शासकों के प्रति जनता के मन में नफरत हो तो उसे समझना कठिन नहीं है, लेकिन जिन्हें जनता ने स्वयं चुना है, उनके प्रति असम्मान विकसित हो जाए तो यह दुर्भाग्यपूर्ण है।'
(देशबंधु में 14 फरवरी 2019 को प्रकाशित)
https://lalitsurjan.blogspot.com/2019/02/blog-post_19.html


