ललित सुरजन की कलम से- उत्तर प्रदेश : कुणाल की आँखें
'मेरे ध्यान में अचानक यह बात आई है कि श्रीकृष्ण को पूर्णपुरुष क्यों कहा जाता है? क्या इसलिए कि उन्होंने कई बार युद्धों में भाग लिया, अपने बलबूते पर विजय प्राप्त की, किन्तु सत्ता का मोह कभी नहीं पाला

'मेरे ध्यान में अचानक यह बात आई है कि श्रीकृष्ण को पूर्णपुरुष क्यों कहा जाता है? क्या इसलिए कि उन्होंने कई बार युद्धों में भाग लिया, अपने बलबूते पर विजय प्राप्त की, किन्तु सत्ता का मोह कभी नहीं पाला?
मथुरा को कंस से मुक्ति दिलाई तो नाना उग्रसेन को वापिस गद्दी पर बैठाया; महाभारत में पांडवों की विजय के प्रणेता बने, लेकिन तुरंत बाद द्वारिका चले गए; वहां राज्य स्थापित किया, तो राजतिलक अग्रज बलराम का किया।
यह ख्याल शायद मुझे इसलिए भी आ गया कि कल से ही दीवाली का पांच दिवसीय पर्व प्रारंभ हो रहा है। इसमें एक दिन यदि भगवान राम को समर्पित है तो तीन दिन किसी न किसी रूप में कृष्ण से जुड़े हुए हैं।
नरक चौदस को उन्होंने नरकासुर का वध कर कितनी सारी महिलाओं को कैद से मुक्त करवाया था। दीपमालिका के अगले दिन याने गोवर्धन पूजा और अन्नकूट कृषि संस्कृति के देवता कृष्ण को ही समर्पित है और भाई दूज का दिन यमुना के मानवीय रूप की कथा से संबंधित है। हो सकता है कि मेरी जानकारियाँ अधूरी हों, लेकिन मैं एक तरफ जहां अनायास ही पुराकथाओं और मिथकों के संसार में भटक गया हूं वहीं दूसरी ओर इन कथाओं में कितनी सारी बातें हैं जो वर्तमान की सच्चाईयों से साक्षात्कार करवा रही हैं जैसे सत्तामोह, राजसी षडय़ंत्र, परिवारवाद इत्यादि।'
(देशबन्धु में 27 अक्टूबर 2016 को प्रकाशित)
https://lalitsurjan.blogspot.com/2016/10/blog-post_26.html


