ललित सुरजन की कलम से- उसने कहा था : युद्ध के बीच प्रेम की कथा
यह एक आश्चर्यजनक सत्य है कि भारतीय भाषाओं में युद्ध से संबंधित साहित्य नहीं के बराबर लिखा गया है

'यह एक आश्चर्यजनक सत्य है कि भारतीय भाषाओं में युद्ध से संबंधित साहित्य नहीं के बराबर लिखा गया है। मैं अपने दिमाग पर जोर डालता हूं तो पहले एक उपन्यास याद आता है देवेश दास द्वारा लिखित 'रक्तराग'।
यह उपन्यास दूसरे विश्वयुद्ध के बाद लिखा गया था। देवेश दास एक आईसीएस अफसर थे। इस उपन्यास के अलावा उन्होंने अन्य कोई साहित्यिक रचना की हो तो वह मेरी जानकारी में नहीं है।
इसके कई साल बाद 1965 के युद्ध पर मनहर चौहान का उपन्यास 'सीमाएं' प्रकाशित हुआ जिसकी बहुत अधिक चर्चा नहीं हो पाई। आगे चलकर जगदीशचंद्र ने सैन्य अधिकारियों के जीवन पर केन्द्रित दो उपन्यास लिखे 'आधा पुल' और 'टुंडा लाट'।
आधा पुल में सैनिक छावनी का विवरण है और 1971 के युद्ध की कुछ छवियां भी हैं। इस दुखांत उपन्यास के नायक का एक मार्मिक कथन बार-बार ध्यान आता है- जिस गोली पर मेरा नाम लिखा होगा, वह जब तक नहीं लगेगी, तब तक मैं नहीं मरूंगा। जगदीशचंद्र भारतीय सेना में जनसंपर्क अधिकारी थे, इस नाते उनके ब्यौरों में प्रामाणिकता का पुट मिलता है।'
(देशबन्धु में 30 अप्रैल 2015 को प्रकाशित)
https://lalitsurjan.blogspot.com/2015/04/blog-post_29.htmlद्वद्य


