ललित सुरजन की कलम से- यात्रा वृत्तांत: बूढ़ा पीपल और बूढ़ा पुल
बक्सर में भी तीन स्थान दर्शनीय हैं। एक तो यहां का पांच सौ साल पुराना किला है जो गंगा किनारे है

'बक्सर में भी तीन स्थान दर्शनीय हैं। एक तो यहां का पांच सौ साल पुराना किला है जो गंगा किनारे है। किला लगभग नष्ट हो चुका है या कर दिया गया है। अब किले की जगह सरकारी अधिकारियों के लिए भव्य विश्रामगृह बन गया है। कहीं-कहीं किले के खंडहर बचे हैं।
इसके चारों ओर कई फीट चौड़ी, कई फीट गहरी खाई थी, वह भी शनै:शनै: पाट दी गई है। कुछ प्राचीन वृक्ष अवश्य बच गए हैं। पीपल का एक वृक्ष देखकर मैं चमत्कृत रह गया। इतना मोटा तना और इतनी ऊंची फुनगी। पेड़ शायद दो सौ साल पुराना होगा! किले के बाहर ही सीताराम उपाध्याय संग्रहालय है जिसे राज्य सरकार संचालित करती है।
श्री उपाध्याय ने अपनी निजी रुचि से आसपास से पुरातात्विक महत्व की वस्तुओं का संग्रह व संरक्षण बिना सरकारी मदद के प्रारंभ किया था। उन्हें दूसरे तो क्या, स्वजन भी खब्ती समझते थे।
आज उनका वह संग्रह एक बेशकीमती खजाने के रूप में हमारे सामने है, जिसमें ढाई-तीन हजार वर्ष पूर्व की मूर्तियां व अन्य सामग्रियां हैं। किले से मैं दुखी मन बाहर निकला था, म्यूजियम देखकर दुख दूर हुआ।'
'बक्सर में तीसरा दर्शनीय स्थान हैं- कतकौली का मैदान। यहां अक्टूबर 1764 में ब्रिटिश सेनाओं ने अवध व बंगाल के नवाब की सेना को निर्णायक रूप से परास्त कर समूचे पूर्वी भारत पर अपना कब्जा स्थापित कर लिया था। अंग्रेजों ने यहां हिंदी, बांग्ला, अंग्रेजी व उर्दू में अपनी जीत की घोषणा के प्रस्तर-फलक लगाने के साथ एक विजय स्तंभ भी खड़ा किया था।
विजय स्तंभ कालांतर में क्षतिग्रस्त हुआ होगा, लेकिन न जाने कब किसने वहीं एक नया विजय स्तंभ खड़ा कर दिया गया जिस पर मोज़ेक टाइल्स जड़े गए थे! वे टाइल्स एक-एक उखड़ रहे हैं, लेकिन अंग्रेजों की जीत का स्तंभ नये सिरे से खड़े करने की बुद्धिमानी हमने क्यों दिखाई? लोकप्रिय कम्युनिस्ट नेता नागेंद्रनाथ झा ने सांसद निधि से स्मारक की चारदीवारी बनवा दी थी कि अतिक्रमण न हो।
वह एक समझदारी का काम था। लेकिन आसपास अवैध कब्जे बदस्तूर हो रहे हैं। एक दिन हम भूल जाएंगे कि इस जगह पर भारत का एक बड़ा भूभाग दो सौ साल के लिए गुलाम बना लिया गया था। मेरे गाइड युवा पत्रकार पंकज भारद्वाज ने रास्ते में मुझे वह नहर भी दिखाई, जिसमें कभी स्टीमर चला करते थे, लेकिन जिसे पाट कर अब मकान बन रहे हैं।'
(देशबन्धु में 05 अक्टूबर को प्रकाशित)
https://lalitsurjan.blogspot.com/2017/10/blog-post.html


