ललित सुरजन की कलम से- प्रधानमंत्री और पत्रकार
'पंडित नेहरू आम जनता के लिए सदैव उपलब्ध ही नहीं थे, बल्कि जनसमुदाय के बीच पहुंचकर मानो वे संजीवनी पाते थे

'पंडित नेहरू आम जनता के लिए सदैव उपलब्ध ही नहीं थे, बल्कि जनसमुदाय के बीच पहुंचकर मानो वे संजीवनी पाते थे। पंडित जी की पत्रकार वार्ता हर माह हुआ करती थी, जिसके माध्यम से देश की जनता के साथ उनका निरंतर संवाद बने रहता था। आज उस दौर के मुकाबले अखबारों की संख्या कई गुणा बढ़ गई है। दसियों न्यूज चैनल भी आ गए हैं।
इस माहौल में हर माह पत्रकार वार्ता करना अव्यवहारिक हो सकता है, लेकिन पत्रकारों से मिला ही न जाए, यह कौन सी बात हुई। इंदिरा गांधी अपने पिता की तरह उदार नहीं थीं, लेकिन आम जनता से उन्होंने भी कभी दूरी बनाकर नहीं रखीं। इंदिरा जी की पत्रवार्ताएं यद्यपि नियमित नहीं होती थीं, लेकिन पत्रकारों से उनका मिलना अत्यंत सुलभ था। वे चाहे देश के दौरे पर हों, चाहे दिल्ली में, एक साधारण सी सूचना पर पत्रकारों को उनसे भेंट का समय मिल जाता था। आपातकाल के दौरान अवश्य दूरी आ गई थी, लेकिन 1980 में सत्ता में लौटते साथ उन्होंने टूटे तार फिर जोड़ने की पहल की थी।'
'अटल बिहारी वाजपेयी ने भी एक सच्चे जननेता के रूप में आम जनता और प्रेस दोनों के साथ संवाद बनाए रखा। इन्द्रकुमार गुजराल के मीडिया के साथ हमेशा अच्छे संबंध रहे। यह रोचक तथ्य है कि दिल्ली के अधिकतर वरिष्ठ पत्रकारों का वाजपेयीजी और गुजराल साहब दोनों के साथ अनौपचारिक स्तर पर भी सम्पर्क बना रहा।
वीपी सिंह और चंद्रशेखर ने भी प्रेस के साथ नियमित संपर्कों का ध्यान रखा। यह जानकर पाठकों को आश्चर्य हो सकता है कि एच.डी. देवेगौड़ा जब प्रधानमंत्री बने तब उन्होंने भी अंग्रेजी और कन्नड़ ही नहीं, तमाम भारतीय भाषाओं के पत्रकारों के साथ संवाद स्थापित किया। उन्होंने अपने कार्यकाल के प्रारंभ में भी हिन्दी तथा अन्य भाषाओं के संपादकों को आमंत्रित कर उनसे खुली चर्चा की पहल की।'
( 7 जुलाई 2011को देशबन्धु में प्रकाशित)
https://lalitsurjan.blogspot.com/2012/05/blog-post_22.html


