Top
Begin typing your search above and press return to search.

ललित सुरजन की कलम से- आरक्षण आयोग की आवश्यकता

विगत तीन-चार दशकों से जो आरक्षण नीति चली आ रही है, उसमेें समय की वास्तविकताओं के साथ जो संशोधन होने चाहिए थे

ललित सुरजन की कलम से- आरक्षण आयोग की आवश्यकता
X

'विगत तीन-चार दशकों से जो आरक्षण नीति चली आ रही है, उसमेें समय की वास्तविकताओं के साथ जो संशोधन होने चाहिए थे, उन्हें लागू करने से हमारे सत्ताधीश कतराते रहे हैं। इसमें बहुत सारे मुद्दे हैं।

सबसे पहले तो इस वास्तविकता का संज्ञान लेना आवश्यक है कि देश में विकास योजनाओं के कारण बड़े पैमाने पर लगातार विस्थापन हो रहा है। एक समय था जब बड़े बांधों और कारखानों के लिए विस्थापन हुआ, जिससे प्रभावित होने वाली जनसंख्या मुख्यत: आदिवासियों की थी।

चूंकि नेहरू युग में जनता के मन में एक विश्वास था इसलिए लोगों ने खुशी-खुशी अपनी जमीनें दे दीं, किंतु जिन नौकरशाहों पर मुआवजा और पुनर्वास की जिम्मेदारी थी, उसे उन्होंने ठीक से नहींनिभाया। आज भी ऐसे विस्थापित आदिवासी मिल जाएंगे जो 55-60 साल से खानाबदोश की जिंदगी जी रहे हैं। यह भी ध्यान देने योग्य है कि एक चतुर, संपन्न तबके ने इन विकास योजनाओं का लाभ अपने लिए लेने में कोई कसर बाकी नहीं रखी।'
(देशबन्धु में 05 मई 2016 को प्रकाशित)
https://lalitsurjan.blogspot.com/2016/05/blog-post_6.html


Next Story

Related Stories

All Rights Reserved. Copyright @2019
Share it