ललित सुरजन की कलम से- मुक्तिबोध का अखबारी लेखन
'मुक्तिबोध की कविताओं में एक तरफ साम्राज्यवाद, पूंजीवाद, सांप्रदायिकता, युद्ध का विरोध एवं दूसरी ओर विश्व शांति, शांतिपूर्ण सहअस्तित्व, नवस्वतंत्र देशों तथा तीसरी दुनिया के देशों के बीच मैत्री, अन्याय, अत्याचार, शोषण का खात्मा होने की उत्कट अभिलाषा व्यक्त होती है

'मुक्तिबोध की कविताओं में एक तरफ साम्राज्यवाद, पूंजीवाद, सांप्रदायिकता, युद्ध का विरोध एवं दूसरी ओर विश्व शांति, शांतिपूर्ण सहअस्तित्व, नवस्वतंत्र देशों तथा तीसरी दुनिया के देशों के बीच मैत्री, अन्याय, अत्याचार, शोषण का खात्मा होने की उत्कट अभिलाषा व्यक्त होती है। इसके विस्तार में जाना यहां आवश्यक नहीं है। जैसा कि स्वाभाविक है कविता में उनका जीवन दर्शन बिंबों और प्रतीकों के सहारे प्रकट हुआ है।
इसके बरक्स वे अपने राजनैतिक लेखों में सुदृढ़ तर्कों और पूरी स्पष्टता के साथ सीधी सपाट भाषा में अपने विचार सामने रखते हैं। वे देश-विदेश के घटनाचक्र पर सामयिक हस्तक्षेप करने को एक लेखक का नागरिक दायित्व मानते हैं। कर्मवीर में अप्रैल 39 में प्रकाशित एक अन्य लेख में वे कहते हैं-
मैं सच कहता हूं कि दिन-दिन मैं अपने व्यक्तित्व में विस्तार लाना चाहता हूं। हम एक व्यक्ति को प्यार कर संसार से अलग क्यों हटें, हमें अपना अनुराग दुखी संसार पर बिखेर देना चाहिए। इसी लेख की अंतिम पंक्ति विशेषकर ध्यान देने योग्य है इसलिए कि मात्र इक्कीस साल के तरुण से सामान्यत: ऐसी सोच की अपेक्षा नहीं की जाती और न इसे वयसुलभ रूमान कहकर खारिज किया जा सकता, क्योंकि मुक्तिबोध का भावी जीवन (थोड़ा ही सही) कार्य (बहुत) करने में बीता- जीवन थोड़ा है, कार्य बहुत है और शक्ति अत्यन्त कम है, और चारों ओर अंधकार ही अंधकार है।'
(देशबन्धु अवकाश अंक 12 नवंबर में प्रकाशित)
https://lalitsurjan.blogspot.com/2017/11/blog-post_17.html


