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ललित सुरजन की कलम से- एकालाप बनाम संवाद

मेरा मानना है कि प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री को जनता के साथ द्विपक्षीय संवाद तो निश्चित रूप से करना ही चाहिए

ललित सुरजन की कलम से- एकालाप बनाम संवाद
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'मेरा मानना है कि प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री को जनता के साथ द्विपक्षीय संवाद तो निश्चित रूप से करना ही चाहिए। इसके आगे उन्हें यह देखने की आवश्यकता है कि प्रशासनतंत्र अपनी भूमिका का निर्वाह भलीभांति करता है या नहीं।

हमारे देश में त्रिस्तरीय शासन व्यवस्था है। इसमें पंचायती राज संस्थाओं को भी अधिकार-सम्पन्न बनाने की बात कही गई है। इस पृष्ठभूमि में यह ध्यान रखा जाना चाहिए कि बड़े नेता यदि कोई घोषणा करते हैं या आश्वासन देते हैं तो उससे पंचायती राज संस्थाओं के अधिकारों का हनन न हो।

इसी तरह सत्ता के शीर्ष पर बैठे लोगों को व्यापक नीतिगत निर्णय तो लेना चाहिए, लेकिन जहां तक संभव हो व्यक्तिगत समस्याओं में उलझने से बचना चाहिए। मैं एक उदाहरण से बात साफ करना चाहूंगा।

जब कभी कोई दुर्घटना होती है सरकार हताहतों के लिए मुआवजा घोषित करती है, लेकिन दुर्घटना के पीछे कारण क्या थे इस ओर से आंखें मूंद लेती है। यह इसलिए होता है क्योंकि नौकरशाही की दिलचस्पी मुख्यमंत्री को खुश करने में होती है न कि अपनी सामान्य जिम्मेदारी निर्वहन करने में।

मैं समझता हूं कि इस पर आगे और बहस की आवश्यकता है।'

(देशबन्धु में 17 सितम्बर 2015 को प्रकाशित)

https://lalitsurjan.blogspot.com/2015/09/blog-post_16.html


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