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ललित सुरजन की कलम से- पत्रकारिता: भावना बनाम तर्कबुद्धि

मेरी राय में जिस भी पत्रकार की दिलचस्पी पानी के मसले में हो, उसे राष्ट्रीय जलनीति और यदि प्रदेश की जलनीति हो तो उसका भी अध्ययन करना चाहिए

ललित सुरजन की कलम से- पत्रकारिता: भावना बनाम तर्कबुद्धि
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मेरी राय में जिस भी पत्रकार की दिलचस्पी पानी के मसले में हो, उसे राष्ट्रीय जलनीति और यदि प्रदेश की जलनीति हो तो उसका भी अध्ययन करना चाहिए। तभी उसे मालूम होगा कि जलसंकट के विभिन्न आयाम क्या हैं और मूल कारण क्या हैं।

जल के आवर्धन, संरक्षण, वितरण और स्वच्छता-इन चारों पहलुओं के बारे में अपनी जानकारी बढ़ाने में उसे तत्पर रहना चाहिए। एक पत्रकार जहां भी पदस्थ है वहां जलस्रोत क्या हैं, वर्षाजल की क्या स्थिति है, जल संरक्षण की पारंपरिक विधियां क्या हैं, नई तकनीकी का इस्तेमाल किस रूप में हो रहा है, उसकी लागत नागरिक की जेब पर भारी है या उचित, जलस्रोत प्रदूषित कैसे हो रहे हैं, स्थानीय निकायों की क्या भूमिका है, जलप्रदाय के लिए आर्थिक प्रावधान क्या हैं, श्रमशक्ति का कैसा इंतजाम है- इन सबको जान-समझकर जब रिपोर्ट बनेगी तब ही उस पर समुचित व प्रभावी कार्रवाई होने की संभावना बन सकती है।

(देशबन्धु में 14 मार्च 2013 को प्रकाशित)
https://lalitsurjan.blogspot.com/2013/03/blog-post_13.html


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