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ललित सुरजन की कलम से - खुशी के पैमाने पर भारत

'1991 से लेकर आज तक भारत एलपीजी के फार्मूले पर चल रहा है। इस बीच सरकार भले ही किसी की भी रही हो

ललित सुरजन की कलम से - खुशी के पैमाने पर भारत
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'1991 से लेकर आज तक भारत एलपीजी के फार्मूले पर चल रहा है। इस बीच सरकार भले ही किसी की भी रही हो। फर्क इतना है कि अटलबिहारी वाजपेयी की सरकार जनमत का थोड़ा बहुत आदर करती थी इसलिए उसे अपने आर्थिक निर्णयों में संशोधन करने में संकोच नहीं होता था।

यशवंत सिन्हा को इसीलिए रोल बैक मिनिस्टर कहकर पुकारा जाने लगा था याने वह मंत्री जो अपने निर्णय हर समय वापस ले ले।यूपीए के दस साल के दौरान अगर मनमोहन सरकार पूंजीमुखी निर्णय लेती थी तो सोनिया गांधी की अध्यक्षता वाली राष्ट्रीय सलाहकार परिषद उन पर या तो अंकुश लगाती थी या ऐसी नीतियां प्रवर्तित करती थी जो लोकोन्मुखी हों।

किसानों की सत्तर हजार करोड़ की ऋण माफी एक ऐसा बड़ा उदाहरण था। वर्तमान मोदी सरकार की सोच बिल्कुल भिन्न है। इस सरकार को वायदे करना बहुत आता है, लेकिन निभाना नहीं। इसे न जनमत की परवाह है और न संसदीय परंपराओं की। बिना बहस के बजट पारित करना इस सरकार की अहम्मन्यता का बड़ा उदाहरण है। वित्त मंत्री से आम जनता की कौन कहे, व्यापारी और उद्योगपति भी त्रस्त हैं।'
(देशबन्धु में 22 मार्च 2018 को प्रकाशित )


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