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ललित सुरजन की कलम से- भारत और पड़ोसी देश

पाकिस्तान के साथ संबंधों को लेकर भाजपा पिछले वर्षों में जो जुमलेबाजी करते आई है, उसकी अब कोई गुंजाइश नहीं है, लेकिन विपक्ष यदि विरोध करना चाहे तो उसके सौ तरीके हैं

ललित सुरजन की कलम से- भारत और पड़ोसी देश
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'पाकिस्तान के साथ संबंधों को लेकर भाजपा पिछले वर्षों में जो जुमलेबाजी करते आई है, उसकी अब कोई गुंजाइश नहीं है, लेकिन विपक्ष यदि विरोध करना चाहे तो उसके सौ तरीके हैं।

ज्ञातव्य है कि राज्यसभा में भाजपा फिलहाल अल्पमत में है और अगर सत्तादल और विपक्ष के बीच कोई तालमेल स्थापित नहीं हो पाया तो सरकार को तकलीफ हो सकती है। इसके अलावा यह भी स्मरण रखना होगा कि पाकिस्तान में सत्तासूत्र वास्तविकता में सेना के हाथों में हैं तथा निर्वाचित सरकार के लिए उसकी उपेक्षा करना संभव नहीं है। हमारे दोनों देशों के बीच कड़वाहट के दो बड़े कारण हैं- पहला कश्मीर और दूसरा 1971 की हार का दंश।

फिर भारत और पाक दोनों में ऐसे सलाहकारों की बड़ी संख्या है जो किसी भी तरह की रियायत या लचीलेपन के लिए तैयार नहीं होते। भारत की बात करें तो विदेशमंत्री सुषमा स्वराज जिस स्वर में बात करेंगी क्या वही स्वर उनके राज्यमंत्री जनरल वी.के. सिंह का भी होगा? इन दोनों का स्वर यदि एक हुआ तो एनएसए प्रत्याशी अजीत डोभाल इत्यादि क्या उनसे सहमत होंगे?'

(देशबन्धु में 29 मई 2014 को प्रकाशित)
https://lalitsurjan.blogspot.com/2014/05/blog-post_28.html


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