ललित सुरजन की कलम से- आज़ादी और अराजकता
आजादी और अराजकता की जब हम बात करते हैं, तो इस ओर भी देखना पड़ेगा कि आज की नई पीढ़ी कई रूपों में उच्छृंखलता की ओर बढ़ती दिखाई देती है

'आजादी और अराजकता की जब हम बात करते हैं, तो इस ओर भी देखना पड़ेगा कि आज की नई पीढ़ी कई रूपों में उच्छृंखलता की ओर बढ़ती दिखाई देती है। एक वर्ग ऐसा पैदा हो रहा है, जो अपने आगे किसी और की आजादी या निजता का ख्याल ही नहीं करता। इसकी एक बड़ी वजह है कि राजनीतिक दलों ने लोकशिक्षण का काम छोड़ दिया है।
शिक्षा की जो दुर्गति हमारे देश में हो रही है, उसकी ओर पिछले काफी समय से ध्यान नहीं दिया गया है। कहां तो यह तय किया गया था कि हम शिक्षा पर कुल बजट का छह प्रतिशत खर्च करेंगे, पर तीन-चार प्रतिशत पर अटके हुए हैं।
विश्वविद्यालयों की स्वायत्तता खत्म-सी हो गई है। कॉलेजों पर ध्यान नहीं दिया जा रहा है। प्राथमिक शिक्षा का हाल यह है कि शिक्षकों को अंशकालिक बना दिया गया है।
तीस-पैंतीस साल के प्राथमिक शिक्षा में कायदे से पूर्णकालिक शिक्षकों की भर्ती नहीं की जा रही है। कहीं शिक्षा- मित्र तो कहीं पंचायत शिक्षक के नाम पर अंशकालिक शिक्षक भर्ती किए जा रहे हैं। एक तरफ शिक्षा को मौलिक अधिकार बनाने का कानून लाया जाता है, तो दूसरी तरफ शिक्षा के अधिकार कानून को समाप्त करने या कमजोर करने की कोशिशें की जा रही हैं।'
(देशबन्धु में 14 अगस्त 2016 को प्रकाशित)
https://lalitsurjan.blogspot.com/2016/08/blog-post_13.html


