ललित सुरजन की कलम से- स्त्री सुरक्षा और सम्मान : कुछ सुझाव
'भारत में साल में 365 दिन औरतों के लिए किसी न किसी उपवास का प्रावधान रहता है। यह पिता, पति और पुत्र का दायित्व है कि वह इसके खिलाफ आवाज उठाए

'भारत में साल में 365 दिन औरतों के लिए किसी न किसी उपवास का प्रावधान रहता है। यह पिता, पति और पुत्र का दायित्व है कि वह इसके खिलाफ आवाज उठाए। जिस समाज में औरत के लिए एक जन्म भारी पड़ता है वहां सात जन्मों तक वही पति पाने की मनौती क्यों मानी जाए? मेरी राय में करवा चौथ, तीज, छठ जैसे पर्वों का स्वरूप बदल देना चाहिए।
जहां तक कानून व्यवस्था की बात है, सिपाहियों को उनकी ट्रेनिंग के दौरान सबसे पहले यही सिखाया जाना चाहिए कि वे स्त्री जाति व वंचित समूहों का सम्मान करना सीखें व उसके साथ अदब के साथ पेश आए। उन्हें संवेदनशील बनाने के लिए तत्काल बड़े पैमाने पर विशेष प्रशिक्षण आयोजित किए जाएं।
जिस तरह मायावती ने घोषणा की है कि वे किसी बलात्कारी को आगे टिकट नहीं देंगी उसी तरह सारे राजनीतिक दल शपथ लें कि स्त्रियों के अपमान के किसी भी आरोपियों को कोई भी पद नहीं दिया जाएगा।
राजनीतिक दलों को अपने संसद सदस्यों से लेकर ग्राम स्तर तक के कार्यकर्ताओं तक के लिए प्रशिक्षण आयोजन करना चाहिए जहां उन्हें रुढ़िवादी, ओछी, पूर्वाग्रह से ग्रस्त मानसिकता से मुक्त होने का पाठ पढ़ाने के साथ तमीज़ से बात करना भी सिखाया जाए।'
(देशबन्धु में 17 जनवरी 2013 को प्रकाशित)
https://lalitsurjan.blogspot.com/2013/01/blog-post_16.html


