ललित सुरजन की कलम से- बदलते समय में स्टील फ्रेम
'आईएएस की व्याप्ति सर्वत्र है। उन्हें प्रशासन के शिखर याने कैबिनेट सेक्रेटरी से लेकर नीचे अनुविभागीय अधिकारी या एसडीओ के पद तक काम करते हुए हम देखते हैं

'आईएएस की व्याप्ति सर्वत्र है। उन्हें प्रशासन के शिखर याने कैबिनेट सेक्रेटरी से लेकर नीचे अनुविभागीय अधिकारी या एसडीओ के पद तक काम करते हुए हम देखते हैं। इस अमले के सामने 1947 में जो चुनौतियां और जिम्मेदारियां थीं उनका स्वरूप समय के साथ बदलता गया है। अभी कुछ समय पहले प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भी इस दिशा में पुनर्विचार की बात की।
मेरी जानकारी में समय के साथ बदलाव की यह शुरूआत इंदिरा गांधी के समय में हो गई थी। उन्होंने आईएमपी या इंडस्ट्रीयल मैनेजमेंट पूल नामक एक समूह बनाया था जिसमें कुशल टैक्नोक्रेट्स को सार्वजनिक उद्यमों में प्रशासनिक जिम्मेदारियां सौंपने की पहल हुई थी। यह प्रयोग अधिक समय तक नहीं चला। लेकिन उन्हीं दिनों इंदिरा गांधी ने हिन्दुस्तान लीवर के सीईओ रहे एम.ए. वदूद खान को भारत सरकार में सचिव बनाया था। आणविक ऊर्जा, अंतरिक्ष विज्ञान आदि विभागों में भी आईएएस के बदले वैज्ञानिक ही सचिव बनाए गए थे।'
'श्रीमती गांधी के किए कुछ प्रयोग अभी भी सफलतापूर्वक चल रहे हैं। यद्यपि इससे आईएएस के बुनियादी ढांचे पर कोई फर्क नहीं पड़ा। राजीव गांधी ने अपने समय में जिलाधीश से लेकर भारत सरकार के संयुक्त सचिव स्तर तक के अधिकारियों के लिए पुनश्चर्या पाठ्यक्रम जैसे प्रयोग किए थे। उनका सोचना था कि अधिकारियों को निरंतर सीखने के लिए तैयार रहना चाहिए। फिर कोई पन्द्रह-बीस साल पहले एक नया सुझाव आया कि जिस तरह बारहवीं के बाद इंजीनियरिंग और मेडिकल की पढ़ाई होती है या विधि का पांच वर्षीय पाठ्यक्रम लागू हो गया है उसी तरह प्रशासनिक अधिकारी बनने के लिए भी बारहवीं के बाद पांचसाला कोर्स प्रारंभ किया जाए। यह प्रस्ताव आगे नहीं बढ़ पाया।'
(देशबन्धु में 26 अक्टूबर 2017 को प्रकाशित)
https://lalitsurjan.blogspot.com/2017/10/blog-post_25.html


