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ललित सुरजन की कलम से - कश्मीर : समाधान के लिए प्रतीक्षा

'भारत में बड़ी हद तक जनतांत्रिक व्यवस्था के तहत ही जम्मू-कश्मीर का प्रशासन चलने की गुंजाइश शुरू से बना रखी है

ललित सुरजन की कलम से - कश्मीर : समाधान के लिए प्रतीक्षा
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'भारत में बड़ी हद तक जनतांत्रिक व्यवस्था के तहत ही जम्मू-कश्मीर का प्रशासन चलने की गुंजाइश शुरू से बना रखी है। इसके अपवाद गिनाए जा सकते हैं। लेकिन फिर अपवाद निर्मित होने की स्थितियां क्यों बनीं, उन कारणों में भी जाने की आवश्यकता होगी और हम मौजूदा चर्चा से भटक जाएंगे। मुख्य बात यह लिखने की है कि प्रदेश में अब तक चार-पांच पार्टियों और गठबंधनों का अलग-अलग समय में शासन रह चुका है।

याने जनतंत्र के रास्ते चलने में सभी राजनीतिक दल सहमत हैं। इसके बावजूद अगर घाटी में अविश्वास का वातावरण बना हुआ है तो उसका एक प्रमुख कारण शायद यह भी है कि हिन्दू-बहुल शेष भारत मुस्लिम-बहुल कश्मीर पर विश्वास नहीं करता तथा हिन्दूत्ववादी ताकतें उसकी देशभक्ति पर निरंतर संदेह की उंगली उठाती रहीं हैं।

वे बहुत आसानी से 1947 के पहले नागरिक शहीद मकबूल शेरवानी और पहले सैनिक शहीद बिग्रेडियर उस्मान के सर्वोच्च बलिदान को भुला देते हैं। मेरी तो यह जानने की भी इच्छा है कि हाशिम कुरैशी ने 1971 में विमान अपहरण क्यों किया, पाकिस्तान ने उसका सत्कार करने के बजाय उसे जेल में क्यों डाला, उसे नार्वे में किसके कहने से शरण मिली तथा प्रधानमंत्री वाजपेयी जी ने उसे भारत वापस क्यों बुलाया?'

(देशबन्धु में 21 जुलाई 2016 को प्रकाशित)
https://lalitsurjan.blogspot.com/2016/07/blog-post_20.html


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