ललित सुरजन की कलम से- देशबन्धु: चौथा खंभा बनने से इंकार- 20
मेरे निमंत्रण पर सिंधियाजी मायाराम सुरजन फाउंडेशन में व्याख्यान देने 1998 में रायपुर आए

'मेरे निमंत्रण पर सिंधियाजी मायाराम सुरजन फाउंडेशन में व्याख्यान देने 1998 में रायपुर आए। उन्हें देखने-सुनने मेडिकल कॉलेज सभागार में भीड़ उमड़ पड़ी थी। इस कार्यक्रम में अजीत जोगी भी उनके साथ थे।
कार्यक्रम के बाद सिंधियाजी हमारे घर भोजन के लिए आए, जहां नगर के अनेक बुद्धिजीवियों से उनका मिलना हुआ। यह दिलचस्प तथ्य है कि एक समय वह भी आया जब अर्जुनसिंह और सिंधिया दोनों नरसिंहराव के खिलाफ़ एकजुट हुए। अभी वह हमारी चर्चा का विषय नहीं है।'
'सिंधियाजी से मेरी आखिरी भेंट लोकसभा के उनके कक्ष में हुई। वे उस रोज मुझे बहुत उदास लगे। कॉफी पीते-पीते उन्होंने कहा- ललितजी, अब सब तरफ से मन ऊब गया है। लगता है जितना जीवन जीना था जी चुके हैं।
मैंने उन्हें टोकते हुए कहा- ऐसा क्यों कहते हैं। आप और हम एक उम्र के हैं। अभी तो हमारे सामने लंबा समय पड़ा है।आपको तो अभी न जाने कितनी जिम्मेदारियां सम्हालना है। यह प्रसंग जून-जुलाई 2001 का है। दो माह बाद ही 30 सितंबर को विमान दुर्घटना में उनकी मृत्यु हो ग्ई। मैं आज भी सोचता हूं कि क्या उन्हें मृत्यु का पूर्वाभास होने लगा था!!'
(देशबन्धु में 22 अक्टूबर 2020 को प्रकाशित)
https://lalitsurjan.blogspot.com/2020/10/20.html


