ललित सुरजन की कलम से- स्वच्छ प्रशासन की चिंता-2
सर्वोच्च न्यायालय ने अभी हाल में टीएसआर सुब्रह्मण्यम और 83 अन्य की जनहित याचिका पर प्रशासनिक सेवाओं के बारे में जो निर्देश दिए हैं

'सर्वोच्च न्यायालय ने अभी हाल में टीएसआर सुब्रह्मण्यम और 83 अन्य की जनहित याचिका पर प्रशासनिक सेवाओं के बारे में जो निर्देश दिए हैं उनमें एक यह भी है कि प्रशासनिक अधिकारी मंत्री के मौखिक आदेश पर कोई काम न करें।
इस निर्देश की जरूरत क्यों पड़ी? इससे यह प्रतिध्वनित होता है कि मंत्रीगण मनमाने आदेश करते हैं और अधिकारी आंख मूंदकर उनका पालन करते हैं। यह कोई राजशाही या तानाशाही का जमाना तो है नहीं कि अधिकारी सिर झुकाकर राजनेता की हर बात मान ले।
मंत्री अगर अधिकारी से नाखुश है तो वह मुख्यमंत्री से शिकायत कर सकता है और मुख्यमंत्री के पास ज्यादा से ज्यादा ऐसे अधिकारी के तबादला करने का ही अधिकार है। बीच-बीच में अधिकारियों के निलंबित करने के प्रकरण भी हुए हैं, लेकिन वैसा सामान्यत: नहीं होता।
ध्यान रहे कि हम यह चर्चा उच्च प्रशासनिक अधिकारियों विशेषकर आईएएस इत्यादि के संबंध में कर रहे हैं। जिनका चयन संघ लोक सेवा आयोग द्वारा किया जाता है। कुछ माह पूर्व ही उत्तर प्रदेश की आईएएस अधिकारी दुर्गाशक्ति नागपाल के प्रकरण में हमने देखा कि अखिलेश सरकार को निलंबन आदेश वापिस लेना पड़ा।
(देशबंधु में 14 नवम्बर 2013 को प्रकाशित)
https://lalitsurjan.blogspot.com/2013/11/2.html


