ललित सुरजन की कलम से- विदेशों में कालाधन?
यह प्रकरण आपातकाल का था जिसमें श्री नायर को जिनेवा के एक बैंक खाते में छह मिलियन डॉलर जमा करने भेजा गया था

' यह प्रकरण आपातकाल का था जिसमें श्री नायर को जिनेवा के एक बैंक खाते में छह मिलियन डॉलर जमा करने भेजा गया था। मोरारजी देसाई को संदेह हुआ कि हो न हो, यह खाता संजय गांधी का है।'
'जब छानबीन पूरी हुई तो मामला कुछ और ही निकला। 1974 के पोखरण आण्विक प्रयोग के बाद अमेरिकी सरकार ने भारत को दी जाने वाली सहायता में भारी कटौती कर दी थी। देश में गंभीर आर्थिक संकट था। तब भारत सरकार ने ईरान के शाह से दो सौ पचास मिलियन डॉलर का कर्ज आसान शर्तों पर मांगा था।
इसके लिए इंदिरा सरकार ने हिन्दूजा बंधुओं की सेवाएं लीं (जिनके बहुत अच्छे संबंध शाह के साथ थे)। उन्होंने शाह की बहन अशरफ पहलवी के माध्यम से ऋण हेतु आवेदन करवाया और शाह ने भारत को सहायता देना स्वीकार कर लिया। इस राशि का एक हिस्सा कर्नाटक की कुदुर्मुख लौहअयस्क परियोजना में लगना था और दूसरे भाग का उपयोग देश की आवश्यक वस्तुओं की आयात करने के लिए होना था।
शाह की बहन अशरफ पहलवी ने इस ऋण पर छह मिलियन डॉलर का कमीशन एक ईरानी नागरिक रशीदयान को देने के लिए कहा। यह व्यक्ति अशरफ का घनिष्ठ मित्र था। हिन्दूजा के माध्यम से भारत सरकार को संदेश मिलने पर रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया ने जिनेवा के एक बैंक को टेलेक्स पर इस राशि का ड्राफ्ट बनाकर श्री नायर को सौंपने का निर्देश दिया। इसके बाद वित्त मंत्रालय ने श्री काव से आग्रह किया कि नायर जिनेवा जाकर बैंक ड्राफ्ट हासिल कर लें और उसे रशीदयान के खाते में जमा कर दें।
बात यहां खत्म हो गई।'
(देशबन्धु में 21 अगस्त 2014 को प्रकाशित)
https://lalitsurjan.blogspot.com/2014/08/blog-post_21.html


