‘मित्र’ पूँजीपतियों को लाभ पहुंचाने के लिए लरकार लेकप आई दिवाला अध्यादेश: विपक्ष
लोकसभा में लगभग सम्पूर्ण विपक्ष ने दिवाला मामले में जल्दबाजी में अध्यादेश लाने के औचित्य पर सवाल खड़े करते हुये सरकार पर आज आरोप लगाया कि वह कुछ ‘मित्र’ पूँजीपतियों को अनावश्यक लाभ पहुँचाने के लिए

नयी दिल्ली। लोकसभा में लगभग सम्पूर्ण विपक्ष ने दिवाला मामले में जल्दबाजी में अध्यादेश लाने के औचित्य पर सवाल खड़े करते हुये सरकार पर आज आरोप लगाया कि वह कुछ ‘मित्र’ पूँजीपतियों को अनावश्यक लाभ पहुँचाने के लिए अध्यादेश लेकर आयी है। विपक्ष ने संबंधित संशोधन विधेयक को संसद की स्थायी समिति के पास भेजने की सिफारिश भी की।
रेवॉल्यूशनरी सोशलिस्ट पार्टी (आरएसपी) सदस्य एन.के. प्रेमचंद्रन ने दिवाला एवं शोधन अक्षमता संहिता (संशोधन) अध्यादेश, 2018 को निरस्त करने संबंधी सांविधिक संकल्प पेश करते हुए सरकार से जानना चाहा कि आखिर ऐसी क्या जल्दबाजी थी कि उसे अध्यादेश का रास्ता चुनना पड़ा, जबकि संविधान के अनुच्छेद 123 के तहत अध्यादेश का इस्तेमाल असाधारण स्थिति में किया जाता है।
प्रेमचंद्रन ने आरोप लगाया कि सरकार ने केवल ‘मित्र’ पूँजीपतियों को फायदा पहुंचाने के लिए संविधान के अनुच्छेद 123 का दुरुपयोग किया है। उन्होंने कहा कि दिवाला कानून आने के दो साल के भीतर दो अध्यादेश लाना इस बात का प्रमाण है कि सरकार ने शुरुआत से ही सूझबूझ का परिचय नहीं दिया था। उन्होंने कहा कि ऐसे महत्वूपूर्ण संशोधन विधेयक को पेश करने से पहले स्थायी समिति में भेजा जाना चाहिए था, लेकिन ऐसा नहीं हुआ और सरकार ने अध्यादेश का रास्ता अपनाया और अब वह दूसरा संशोधन विधेयक लेकर आयी है।
इससे पहले वित्त मंत्री पीयूष गोयल ने दूसरे संशोधन विधेयक के बारे में कहा कि इसके कानून में बदलने के बाद न केवल दिवाला हो चुकी कंपनियों को पुनर्जीवित किया जा सकेगा और लोगों के राेजी-रोजगार को सुरक्षित रखा जा सकेगा, बल्कि सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम क्षेत्र की कंपनियाँ और बंद हो चुकी या इस कगार पर पहुंची आवासीय परियोजनाओं में निवेश करने वाले घर या फ्लैट खरीददार भी लाभान्वित हो सकेंगे।
चर्चा में हिस्सा लेते हुए कांग्रेस के एम. वीरप्पा मोइली ने संबंधित विधेयक को स्थायी समिति को भेजने की सरकार को सलाह दी। उन्होंने कहा कि प्रस्तावित कानून की समग्रता को ध्यान में रखकर इसे वित्त संबंधी स्थायी समिति को भेजा जाना चाहिए, क्योंकि कई ऐसे सवाल हैं जो अब भी विधेयक में अनुत्तरित हैं।
मोइली ने कहा कि महत्वपूर्ण विधेयकों को संबंधित स्थायी समितियों को भेजे जाने की पुरानी लोकतांत्रिक परम्परा रही है, ताकि सदस्यों के विचार-विमर्श से बेहतर से बेहतर कानून बन सके, लेकिन मोदी सरकार में इस परंपरा का लोप हो चुका है। सत्ता पक्ष में असहिष्णुता का भाव घर कर गया है। उन्होंने दावा किया कि प्रस्तावित विधेयक के संसद से पारित होने के बाद बैंकिंग स्वायत्तता बुरी तरह प्रभावित होगी।


